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पुलिस सुधार के लिए जनहित याचिका दायर- बॉम्बे हाईकोर्ट ने 4 सप्ताह के भीतर राज्य से मांगा जवाब 

LiveLaw News Network
10 March 2020 3:45 AM GMT
पुलिस सुधार के लिए जनहित याचिका दायर- बॉम्बे हाईकोर्ट ने 4 सप्ताह के भीतर राज्य से मांगा जवाब 
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दो सामाजिक कार्यकर्ताओं संजय काले और मीरा कामथ की तरफ से दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। इस जनहित याचिका में पुलिस सुधार को लेकर उठाए गए सवालों के जवाब में यह हलफनामा दायर करने के लिए कहा गया है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बी.पी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति एन.आर बोरकर की खंडपीठ ने पूछा है कि इस मुद्दे पर शीर्ष न्यायालय और हाईकोर्ट की तरफ से दिए गए पिछले आदेशों के बावजूद कोई जवाब दाखिल क्यों नहीं किया गया?

मार्च 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधार के मामले को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अपनी रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि वह प्रत्येक राज्य के पुलिस विभाग में रिक्तियों से संबंधित रिकॉर्ड संबंधित उच्च न्यायालय को भेजें।

इसके बाद, अगस्त में, हाईकोर्ट ने राज्य को एक नोटिस जारी करते हुए निर्देश दिया था कि वह सभी संबंधित सामग्रियों या तथ्यों को रिकॉर्ड पर रखें या पेश करें।

वर्तमान जनहित याचिका पिछले साल दायर की गई थी, इसमें पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ाने की मांग की गई थी ताकि पुलिस थानों में 8 घंटे की शिफ्ट के पैटर्न लागू किया जा सकें। ताकि पुलिस कर्मियों के पेशेवर या काम के तनाव और मानसिक स्वास्थ्य पर अंकुश लगाने, शहरी पुलिसिंग, आदि के उद्देश्य पूरा किया जा सकें।

वहीं पुलिस की ताकत में वृद्धि करने और पुलिस कर्मियों की शिकायतों के निवारण के साथ-साथ उनके खिलाफ दायर शिकायतों के निवारण के लिए राज्य पुलिस आयोग की स्थापना करने की भी मांग की गई थी।

याचिका में पुलिस तंत्र को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए भी दिशा-निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी।

याचिका में कई रिपोर्टों का हवाला दिया गया है,जो याचिका में मांगी गई राहत का आधार हैं। इन सभी रिपोर्टों से यह निष्कर्ष निकलता है कि बिना किसी साप्ताहिक अवकाश के लंबे समय तक काम करने के कारण, पुलिस कर्मियों में व्यावसायिक या पेशे संबंधी जोखिम बढ़ रहे हैं।

जनहित याचिका में कहा गया है- ''महाराष्ट्र राज्य में पुलिस-जनसंख्या का अनुपात बहुत कम है, जिसमें 1,00,000 आबादी के लिए केवल 145 पुलिस कर्मी स्वीकृत किए गए हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार पुलिस बल का न्यूनतम मानदंड प्रति 100000 जनसंख्या पर 222 है।

महाराष्ट्र राज्य में, केवल 2,41,813 पद स्वीकृत हैं, जबकि उक्त पदों में से केवल 2,13,382 पद ही भरे गए हैं। लगभग 30,000 पद अभी भी खाली पड़े हैं। जबकि आईपीएस अधिकारियों के लिए 317 स्वीकृत पद हैं,जिसमें से केवल 255 पद भरे हुए हैं।''

वर्ष 2000 में पद्मनाभैया समिति की रिपोर्ट ने सिफारिश की थी कि एक कुशल पुलिस बल बनाने के लिए कांस्टेबलों की तुलना में अधिक पुलिस उप-निरीक्षकों की भर्ती करना आवश्यक है।

उक्त शासनादेश के बावजूद, महाराष्ट्र राज्य ने वर्ष 2017-2018 में पुलिस सब-इंस्पेक्टर के पद पर कोई नियुक्ति नहीं की और अब भी राज्य सब-इंस्पेक्टरों की तुलना में अधिक कांस्टेबल नियुक्त कर रहा है।

प्रत्येक राज्य द्वारा पुलिस के सुधार, प्रशिक्षण और आधुनिकीकरण के लिए आवंटित किए जाने वाले बजट पर केंद्रीय गृह मंत्रालय, केंद्रीय पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (बीपीआरडी) की एक रिपोर्ट का हवाला भी इस जनहित याचिका में दिया गया है।

महाराष्ट्र के संबंध में, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आँकड़े भयावह हैं। वर्ष 2018-19 में महाराष्ट्र राज्य को केंद्र और राज्य सरकार से आधुनिकीकरण अनुदान के रूप में लगभग 91.35 करोड़ मिले थे, हालांकि, केवल 9 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

जनहित याचिका में कहा गया है कि केरल राज्य में आठ घंटे की शिफ्ट पैटर्न को सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है, अब महाराष्ट्र राज्य में इसे लागू करने की आवश्यकता है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से तलेकर एंड एसोसिएट्स की एडवोकेट माधवी अय्यप्पन उपस्थित हुईं।

कोर्ट ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

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