बिहार के जेल मैनुअल में बदलाव के खिलाफ जनहित याचिका

Brij Nandan

28 April 2023 7:25 AM GMT

  • बिहार के जेल मैनुअल में बदलाव के खिलाफ जनहित याचिका

    बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह 27 अप्रैल यानी गुरूवार को रिहा हो गए। उनकी रिहाई की चर्चा पूरे देश में है। इन सबके बीच उनकी रिहाई के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई।

    जनहित याचिका में क्या-क्या कहा गया है उस पर जाएंगे, लेकिन उससे पहले आनंद मोहन को किस मामले में सजा मिली थी और क्या सजा मिली थी वो जान लीजिए।

    बिहार के सहरसा जिले में एक गांव है- पनगछिया। इसी गांव में आनंद मोहन सिंह का जन्म हुआ था। बुहत ही कम उम्र में राजनीति में आ गए। उनके एक मित्र थे छोटन शुक्ला। छोटन शुक्ला मुजफ्फरपुर के जाने माने नेता हुआ करते थे। साल 1994 में छोटन शुक्ला की हत्या कर दी जाती थी। मामला यहीं से गरमा जाता है। अंतिम यात्रा के दौरान पास से गौपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की गुजर रहे थे। भीड़ ने गाड़ी पर हमला किया और कृष्णैया को पीट पीटकर मार डाला। आनंद मोहन पर हत्या का आरोप लगा। आनंद पर आरोप लगा कि उन्होंने ही भीड़ को उकसाया था। मामला कोर्ट पहुंचा। ट्रायल कोर्ट ने 2007 में मौत की सजा सुनाई। एक साल बाद यानी 2008 में पटना हाईकोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदल दी। आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया था, लेकिन कोई राहत नहीं मिली थी। हालांकि बिहार सरकार ने हाल ही में जेल नियमावली में कुछ बदलाव किए और आनंद सिंह को रिहा किया गया। इसी के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका में क्या-क्या कहा गया है वो भी जान लीजिए।

    हाईकोर्ट में अमर ज्योति नाम के एक व्यक्ति ने याचिका दायर की है। इस याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने जेल मैनुअल 2012 के नियम 481(i) (a) में संशोधन किया है। इसमें से एक लाइन ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या को हटा दिया गया है। बिहार में पहले प्रावधान था कि लोकसेवक की हत्या के दोषी को जेल से रिहाई नहीं मिलेगी। उसे छूट सहित 20 साल के कारावास से गुजरना होगा। मगर, मैनुअल में बदलाव किया गया। जिससे लोक सेवक की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा पाने वाले दोषी भी रिहा हो सकते हैं। इस बदलाव की वजह से आनंद मोहन के साथ अन्य 26 लोगों को जेल से मु्क्त किया गया है।

    स्पष्टता के लिए, उक्त नियम (संशोधन से पहले) इस प्रकार पढ़ा जाता है,

    "481. निम्नलिखित श्रेणियों के कैदी सजा की समीक्षा और समय से पहले रिहाई के लिए बोर्ड द्वारा विचार किए जाने के पात्र होंगे:

    1. आजीवन कारावास की सजा काट रहा प्रत्येक सजायाफ्ता कैदी, चाहे वह पुरुष हो या महिला और सीआरपीसी की धारा 433ए के प्रावधानों के अंतर्गत आता है, वास्तविक कारावास की 14 साल की सजा पूरी करने के तुरंत बाद जेल से समय से पहले रिहाई के लिए विचार करने का पात्र होगा, यानी बिना छूट के। आजीवन कारावास की सजा काट रहे सीआरपीसी की धारा 433ए के तहत आने वाले सजायाफ्ता कैदियों की निम्नलिखित श्रेणियां छूट सहित 20 साल की सजा काटने के बाद ही समय से पहले रिहाई के लिए पात्र होंगी:

    क) बलात्कार के साथ हत्या, डकैती के साथ हत्या, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 के तहत एक अपराध में शामिल हत्या, दहेज के लिए हत्या, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की हत्या, कई हत्याएं, जेल के अंदर सजा के बाद की गई हत्या, पैरोल के दौरान हत्या, एक आतंकवादी घटना में हत्या, तस्करी अभियान में हत्या, ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या जैसे जघन्य मामलों में हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए अपराधी।"

    याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार के इस फैसले से सरकारी सेवकों का मनोबल गिरा है। वो ड्यूटी पर काम करने में डरेंगे, इसके कारण परेशानी राज्य को उठानी होगी।

    याचिका में ये भी कहा गया है कि याचिका में ये भी कहा गया है कि राज्य की इस कार्रवाई ने राज्य के नागरिक की अंतरात्मा को झकझोर दिया है क्योंकि ये अधिसूचना और निर्णय मनमानी है। नियम 481 (I) (ए) के एक प्रावधान के हिस्से को हटाकर सरकार ने अनुचित काम किया है। ड्यूटी पर तैनात लोक अधिकारी की नृशंस हत्या करने वाले खूंखार अपराधियों को सुरक्षा देने का काम किया गया है। इस संशोधन को रद्द किया जाए।



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