गर्भवती महिला को किया अस्पताल में भर्ती करने से इनकार क्योंकि COVID-19 की नेगेटिव रिपोर्ट साथ नहीं लाई थी, बॉम्बे हाईकोर्ट ने विवरण मांगा
LiveLaw News Network
17 May 2020 11:45 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ग्रेटर मुंबई नगर निगम (एमसीजीएम) को निर्देश दिया है कि वह गर्भवती महिलाओं की जरूरतों के लिए बनाए गए मातृत्व घरों और क्लीनिकों का विवरण प्रस्तुत करे।
इस मामले में दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि एक गर्भवती महिला को इस आधार पर जेजे अस्पताल में प्रसव के लिए प्रवेश देने से मना कर दिया गया क्योंकि वह अपने COVID-19 टेस्ट की नेगेटिव रिपोर्ट साथ नहीं लाई थी।
चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एए सैयद की पीठ ने मोहिउद्दीन वैद की तरफ से दायर जनहित याचिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से पेश होते हुए पीठ से मांग की थी कि निगम को निर्देश दिया जाए कि वह गर्भवती महिलाओं के लिए उचित उपाय करे।
एजीपी ज्योति चव्हाण ने जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों का पुरजोर विरोध किया। उन्होंन राज्य की ओर से दायर हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि जेजे अस्पताल में ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई है।
कॉर्पोरेशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ए वाई सकरे ने दलील दी कि ऐसे मातृत्व घरों और क्लीनिकों की संख्या बहुत अधिक है, जो गर्भवती महिलाओं की जरूरतों को पूरा करते हैं। उन्होंने अदालत से यह भी कहा कि अगर उनको कुछ समय दे दिया जाए तो वह इस संबंध में एक हलफनामा दायर करेंगे और निगम की स्थिति को स्पष्ट कर देंगे।
कोर्ट ने एमसीजीएम को निर्देश दिया है कि वह एक हलफनामा दायर करे, जिसमें उन मातृत्व घरों और क्लीनिकों के नाम और अन्य विवरणों के बारे में पूरी जानकारी दी जाए, जो इस समय गर्भवती महिलाओं की देखभाल कर रहे हैं। वहीं यह भी बताया जाए कि पिछले कुछ हफ्तों में इन मातृत्व घरों और क्लीनिकों में कितनी गर्भवती महिलाओं ने डिलीवरी करवाई है।
इस मामले की सुनवाई को 22 मई तक स्थगित करते हुए न्यायालय ने निगम से कहा है कि मामले की अगली सुनवाई तक हलफनामा दायर कर दिया जाए।
पीठ ने कहा कि-
'' हलफनामे में निगम द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले विवरणों को देखने के बाद, हम इस जनहित याचिका को अगली सुनवाई पर निपटाने का प्रयास करेंगे।''
इस जनहित याचिका का विषय महत्व रखता है क्योंकि इस संबंध में काफी रिपोर्ट सामने आई हैं, जिनमें बताया गया है कि COVID-19 की महामारी के कारण दबाव में आई स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का खामियाजा शहर की गर्भवती महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है।
एक अन्य मामले में, एक नौ महीने की गर्भवती महिला को बांद्रा में एक निजी अस्पताल में प्रवेश देने से मना कर दिया गया क्योंकि वह भी COVID-19 रिपोर्ट साथ नहीं लाई थी।