"व्यक्तिगत हित के लिए दायर याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2 सरकारी अधिकारियों के खिलाफ एसआईटी जांच की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

Brij Nandan

9 Sep 2022 4:30 AM GMT

  • व्यक्तिगत हित के लिए दायर याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2 सरकारी अधिकारियों के खिलाफ एसआईटी जांच की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में लोक निर्माण विभाग के दो सरकारी अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जांच और एसआईटी जांच की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करके करोड़ों रुपए कमाए हैं।

    जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी साख का खुलासा नहीं किया और ऐसा प्रतीत होता है कि वह किसी और के कहने पर काम कर रहा है।

    इसके अलावा, उत्तरांचल राज्य बनाम बलवंत सिंह चौफल (2010) 3 एससीसी 402 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत हित के लिए दायर याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसी याचिकाओं को खारिज कर दिया जाना चाहिए।

    एक रत्नेश कुमार ने उच्च न्यायालय का रुख किया था, जिसमें यूपी सरकार और अन्य को भ्रष्टाचार मामले में लोक निर्माण विभाग में दो सरकारी अधिकारियों, वी.के.सिंह और श्री एस.पी. सक्सेना के खिलाफ एसआईटी जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

    शुरुआत में, कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा किए गए दावों के संबंध में रिट याचिका बिना किसी ठोस या विश्वसनीय सबूत के दायर की गई है और आरोप केवल विभागीय अधिकारियों द्वारा वर्ष 2007-2008 में किए गए कुछ विभागीय पत्राचार के आधार पर लगाए गए थे।

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी साख स्थापित करने में पूरी तरह से विफल रहा है जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नियमों के अध्याय XXII के नियम 1 में नियम (3-ए) के अनुसार एक अनिवार्य शर्त (पीआईएल दाखिल करने वाले व्यक्ति के लिए) है।

    कोर्ट ने कहा,

    "याचिकाकर्ता ने जो कुछ भी कहा है वह यह है कि वह एक "सार्वजनिक उत्साही नागरिक" है और जनता की भलाई के लिए "इतनी गतिविधियों" में शामिल है और चाहता है कि शासन में कानून का शासन कायम हो। जैसा कि याचिकाकर्ता ने खुद को एक सार्वजनिक उत्साही नागरिक वर्णित किया है, वह किन विशेष गतिविधियों में लगा हुआ है, इसका खुलासा याचिकाकर्ता ने नहीं किया है।"

    अंत में, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ने विभाग के अधिकारियों द्वारा किए गए कुछ अन्य विभागीय पत्राचार पर भरोसा किया था। हालांकि, याचिका में कोई अन्य विश्वसनीय दस्तावेज या सबूत संलग्न नहीं किया गया ताकि कथित भ्रष्टाचार अनियमितताओं के बारे में किसी भी निर्णायक या ठोस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके।

    कोर्ट ने जनहित याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल - रत्नेश कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या – 523 ऑफ 2022]

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