"याचिकाकर्ता के लिए स्टोन ऐज में जीने का रास्ता खुला है, कोर्ट नहीं बता सकते कि मीडिया और सोशल मीडिया कैसे काम करेंगे": मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

3 March 2021 8:51 AM GMT

  • याचिकाकर्ता के लिए स्टोन ऐज में जीने का रास्ता खुला है, कोर्ट नहीं बता सकते कि मीडिया और सोशल मीडिया कैसे काम करेंगे: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने उत्तरदाताओं (भारत संघ सहित) को निर्देश देने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सोशल प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण और निगरानी रखने और इसके साथ ही इसके लिए आवश्यक सेंसर सदस्यों का पैनल बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने की मांग की गई थी।

    मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति आर. हेमलता की खंडपीठ इस याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका द्वारा एस उमामहेश्वरन ने अदालत के समक्ष भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 क्षेत्राधिकार का उपयोग करके सेंसर बोर्ड की भूमिका निभाते हुए सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले कंटेन्ट पर निगरानी रखने और नियंत्रित करने के लिए प्रार्थना की थी।

    यह देखते हुए कि यह याचिकाकर्ता के लिए स्टोन ऐज में रहने या अपने परिवार या अपने बच्चों को बढ़ती प्रौद्योगिकी से बचाने के लिए किया गया हो, बेंच ने टिप्पणी की कि,

    " शिकायतों पर ध्यान दिया गया है, हालांकि अदालतें मीडिया या सोशल मीडिया को कैसे संचालित करना है, इस पर प्रतिबंधों या दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए नहीं हैं और यह कार्य विधायिका द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय के आधार अन्य एजेंसियों द्वारा किया जाता है।"

    इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता को इसकी स्वतंत्र है कि जो भी उसको सही नहीं लगता है उसका खुलासा कर सकता है और इसके साथ ही अपनी पंसद की चीजों का प्रचार करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।

    न्यायालय ने उसे उसके विचार प्रभावित होने पर उपयुक्त विधायिका या कार्यकारी (यदि वह चाहे तो अपनी इच्छा से) संपर्क करने के लिए कहा।

    अंत में, अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की इच्छाओं के अनुसार शर्तों को लागू नहीं कर सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने उसे इसके लिए प्राधिकारी से संपर्क करने की स्वतंत्रता प्रदान की।

    दिलचस्प बात है कि मद्रास उच्च न्यायालय ने पिछले महीने दूरदर्शन पोदिगई तमिल टेलीविजन चैनल पर संस्कृत समाचार टेलीकास्ट के खिलाफ दायर एक याचिका का निपटारा किया, जिसमें कहा था कि इसमें निर्णय लेने का काम सरकार है।

    मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश की खंडपीठ ने टिप्पणी की थी कि,

    "याचिकाकर्ता के पास रास्ता है कि वह टेलीविज़न को बंद कर दे और संस्कृत न्यूज देखने के बजाय मनोरंजन के कुछ अन्य रूप प्राप्त कर ले।"

    कोर्ट ने आगे कहा था कि,

    "जब रिट याचिकाकर्ता को संस्कृत न्यूज सही नहीं लगता है या उपयोगी लगता है, तो उसे बंद कर देना चाहिए, याचिकाकर्ता को यह चैनल देखने के लिए कोई बाध्यता नहीं है।"

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि 25 फरवरी को केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (इटरमीडियर दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया नैतिकता संहिता) नियम, 2021 के बारे में अधिसूचित किया है, जिसका उद्देश्य सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों (ओवर द टॉप) को विनियमित करना है।

    केस का शीर्षक: एस. उमामहेश्वरन बनाम भारत संघ और अन्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story