बचाव पक्ष अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट को स्वीकार कर लेता है तो इसे महत्वपूर्ण सबूत माना जा सकता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

1 Jan 2020 4:45 AM GMT

  • बचाव पक्ष अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट को स्वीकार कर लेता है तो इसे महत्वपूर्ण सबूत माना जा सकता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बचाव पक्ष अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट को जायज़ बताकर स्वीकार कर लेता है तो उसके बाद इसे महत्त्वपूर्ण सबूत माना जा सकता है।

    मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की पीठ ने कहा,

    "अगर बचाव पक्ष ने निचली अदालत के समक्ष पेश पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सही मान लिया है तो इस दस्तावेज़ की वास्तविकता साबित हो चुकी है और उसे सीआरपीसी की धारा 294 के तहत सबूत माना जा सकता है।"

    निचली अदालत में सुनवाई के दौरान इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के औपचारिक सबूत कोई परे कर दिया गया था, क्योंकि इसके कंटेंट को बचाव पक्ष ने स्वीकार किया था। फिर, प्रत्यक्षदर्शी की गवाही के आधार पर अपीलकर्ता को दोषी माना गया और उसे अपनी सौतेलि मां की हत्या के आरोप में दंड सुनाया गया।

    अपीलकर्ता का कहना था कि जिस डॉक्टर ने पोस्टमार्टम किया उससे कोर्ट में पूछताछ नहीं की गई है और इसलिए उसकी रिपोर्ट को सीआरपीसी की धारा 294 के तहत साक्ष्य नहीं माना जा सकता।

    अदालत ने इस दलील को नकारते हुए कहा,

    "क़ानून की नज़र में अगर कोई पक्ष दूसरे पक्ष द्वारा पेश किए गए दस्तावेज़ की वास्तविकता पर आपत्ति नहीं करता है तो उसे सीआरपीसी की धारा 294 (3) के तहत वास्तविक माना जा सकता है।" इस बारे में अख़्तर बनाम उत्तरांचल राज्य, (2009) 13 SCC 722 मामले में आए फ़ैसले का हवाला दिया गया।

    इसके अलावा अदालत ने सादिक़ एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 1981 CrLJ 379 मामले में आए पूर्ण पीठ के फ़ैसले का भी हवाला दिया।

    हालांकि अदालत के समक्ष रखे गए दस्तावेज़ों पर एक बार फिर ग़ौर करने के बाद अदालत ने कहा कि जिस प्रमुख गवाह के बयान पर इस मामले में फ़ैसला दिया गया वह बयान पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मेल नहीं खाता है, इसलिए अदालत ने दोषी माने जाने के निर्णय को ख़ारिज कर दिया।

    अदालत ने कहा,

    "अदालत में पेश किए गए साक्ष्यों और अभियोजन के साक्ष्यों से इनकी तुलना के बाद हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि अभियोजन अपीलकर्ता को किसी भी संदेह से परे दोषी ठहराने में विफल रहा है और इसलिए अपीलकर्ता को संदेह का लाभ प्राप्त करने का अधिकार है।"




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