चुनाव न होने की अवधि में ईसीआई के पास राजनीतिक दलों द्वारा जाति रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति नहीं': ईसीआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में कहा

Sharafat

14 March 2023 7:40 AM GMT

  • चुनाव न होने की अवधि में ईसीआई के पास राजनीतिक दलों द्वारा जाति रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति नहीं: ईसीआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में कहा

    भारत के चुनाव आयोग ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसके पास उस अवधि में जब चुनाव नहीं हो रहे होते हैं, राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगाने या बाद में उन्हें चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    चुनाव निगरानी संस्था ने मोती लाल यादव द्वारा हाईकोर्ट में वर्ष 2013 में दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका में यह दलील दी। इस याचिका में ऐसी सभी राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी, जिनमें जाति रैलियों का आयोजन होता है। जनहित याचिका में ऐसी रैलियों का आयोजन करने वाले राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने के लिए ईसीआई को निर्देश देने की भी मांग की गई है।

    हाईकोर्ट ने वर्ष 2013 में याचिका पर सुनवाई करते हुए ईसीआई के साथ-साथ अन्य राजनीतिक दलों को एक नोटिस जारी किया और इसने उत्तर प्रदेश में ऐसी सभी जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अंतरिम निर्देश भी जारी किए थे। हालांकि, चूंकि नवंबर 2022 तक, प्रतिवादियों की तरफ से कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया, कोर्ट ने उन्हें नए नोटिस जारी किये।

    कोर्ट के पिछले साल के आदेश के अनुसार ईसीआई ने पिछले महीने इस मामले में एक जवाब दायर किया जिसमें उसने कहा कि उसके पास गैर-चुनाव अवधि के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा जाति के आधार पर बैठकों और रैलियों के आयोजन को प्रतिबंधित करने और बाद में उन पर चुनाव लड़ने से प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं है।

    गौरतलब है कि ईसीआई ने प्रस्तुत किया कि उसने सख्त नियमों का एक सेट तैयार किया है जो सांप्रदायिक आधार पर चुनाव प्रचार, या जाति, पंथ या धर्म के आधार पर वोट मांगने पर रोक लगाता है। हालांकि चुनाव अवधि के बाहर इसके उल्लंघन की स्थिति में ईसीआई इससे नहीं निपट सकता।

    ईसीआई ने अदालत को यह भी सूचित किया कि वह केवल चुनाव अवधि के दौरान (आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद) चुनाव लड़ने वाले आपराधिक उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों और उनके एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, जो अपने चुनाव अभियान में जाति के आधार पर अपील करते हैं, लेकिन इस अवधि के बाहर वह राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता।

    राजनीतिक दल के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने के संबंध में ईसीआई ने प्रस्तुत किया कि जबकि वह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत एक पार्टी को रजिस्टर्ड कर सकता है, आयोग के पास किसी राजनीतिक दल का रजिस्टर्ड रद्द करने की कोई शक्ति नहीं है [सिवाय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाम समाज कल्याण संस्थान और अन्य (2002) 5 SCC 685] के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उल्लिखित सीमित आधार के जबकि संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया हो या धारा 29ए (5) के तहत ECI को दिए गए उनके अंडरटैकिंग का उल्लंघन किया गया हो।

    उल्लेखनीय है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मामले (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि एक राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है जबकि,

    (1) ईसीआई को पता चलता है कि संबंधित राजनीतिक दल ने धोखाधड़ी या जालसाजी के माध्यम से रजिस्ट्रेशन प्राप्त किया है।

    (2) जब राजनीतिक दल धारा 29ए (5) के प्रावधानों के अनुरूप प्रावधानों को निरस्त करते हुए एसोसिएशन, नियमों और विनियमों के अपने नामकरण को बदलता है या आयोग को सूचित करता है कि भारत के संविधान के प्रति उसकी आस्था और निष्ठा समाप्त हो गई है या समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के लिए, या यह भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए नहीं रखेगा।

    (3) जब केंद्र सरकार एक रजिस्टर्ड राजनीतिक दल को अवैध घोषित करती है, उदाहरण के लिए यूएपीए 1967 की शर्तों के तहत।

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