हर छह माह पर श्रीनगर और जम्मू के बीच राजधानी को बदलने का कोई औचित्य नहीं : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 148 साल पुराने 'दरबार मूव' पर पुनर्विचार करने की बात कही

LiveLaw News Network

7 May 2020 2:51 AM GMT

  • हर छह माह पर श्रीनगर और जम्मू के बीच राजधानी को बदलने का कोई औचित्य नहीं : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 148 साल पुराने दरबार मूव पर पुनर्विचार करने की बात कही

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने संवैधानिक अथॉरिटी से हर छह माह पर होने वाले 'दरबार मूव' पर पुनर्विचार करने का निर्देश जारी किया है।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्तिरजनेश ओसवाल की पीठ ने इस मूव कि ख़िलाफ़ कई कारण गिनाए हैं पर इस बारे में संवैधानिक अथॉरिटीज़ को अंतिम निर्णय लेने को कहा है।

    दरबार मूव 148 साल पुरानी परंपरा है जब जम्मू-कश्मीर के सरकारी अधिकारी छह-छह महीने दोनों ही राजधानियों जम्मू और श्रीनगर में बिताते हैं।

    पीठ ने कहा,

    "…इस बारे में अपनी सीमाओं को समझते हुए हम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के हित में इस मामले के बारे में निर्णय लेने की ज़िम्मेदारी उन लोगों पर छोड़ते हैं जिनको संविधान के तहत यह निर्णय करने का अधिकार दिया गया है।"

    इस मामले की सुनवाई के बाद अदालत के निष्कर्ष इस तरह से थे -

    I. प्रशासनिक सक्षमता, क़ानूनी औचित्य या संवैधानिक आधार दरबार मूव का समर्थन नहीं करता।

    II. जम्मू और श्रीनगर दोनों ही क्षेत्रों को सालों भर बिना किसी रुकावट के प्रशासन और शासन की जरूरत है। किसी एक क्षेत्र को पूरे छह महीने के लिए सरकार की पहुँच से बाहर कर देना अनुचित और जनहित में नहीं है।

    III. इसकी वजह से पूरे छह सप्ताह तक केंद्र शासित प्रदेश में प्रशासन रुक सा जाता है। मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन में इस तरह के गैप की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह जनहित के ख़िलाफ़ है।

    IV. दरबार को बदलने का कारण मौसम की वजह से पैदा होनेवाली मुश्किलें होती हैं। पर अब मौसम नियंत्रण की आधुनिक विधियों को देखते हुए इस आधार पर राजधानी को बदलना उपयुक्त आधार नहीं है। इस तरह दरबार मूव के सभी कारण असंगत हो चुके हैं।

    V. राजधानी बदलने में महत्त्वपूर्ण सरकारी दस्तावेजों और संसाधनों को ख़तरा उत्पन्न हो जाता है क्योंकि उन्हें लाने-ले जाने कि लिए ट्रंकों में पैक करना पड़ता है और भाड़े के ट्रकों में इनकी 300 किमी तक ढुलाई होती है। इससे राज्य और राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरनाक परिणाम हो सकते हैं।

    VI. तकनीकी प्रगति और एलेक्ट्रोनिक मोड्स की वजह से इन परिसंपत्तियों को ढोकर ले जाने की ज़रूरत नहीं है।

    VII. अगर सचिवालय और विभाग अलग अलग स्थानों पर मौजूद हैं तो सूचना तकनीक की मदद से इन्हें एकीकृत सचिवालय में तब्दील किया जा सकता है और इसके लिए मानव संसाधन के न्यूनतम मूवमेंट की ज़रूरत होती है।

    VIII. आज बड़े पैमाने पर जिस तरह लॉजिस्टिक्स की ज़रूरत होती है उसे देखते हुए दरबार मूव की वजह से जो आर्थिक दबाव बढ़ता है उसे सिर्फ़ मौसम के आधार पर उचित ठहराया नहीं जा सकता।

    IX. हज़ारों सरकारी कर्मचारियों को उनके परिवार से छह माह के लिए दूर जाना पड़ता है जिससे परिवार के सदस्य कई तरह से प्रभावित होते हैं और इस वजह से दरबार मूव में शामिल अधिकारी का अपने कामों में दिल नहीं लग सकता है।

    X. साल दर साल प्रशासनिक ज़रूरतों के लिए कर्मचारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान शिफ़्ट करना मनमाना है और इससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है।

    XI. दरबार मूव की वजह से पुलिस, सुरक्षा बलों पर दबाव बढ़ता है। दरबार मूव की सुरक्षा लागात भी बहुत ही बड़ा होता है और इससे देश पर वित्तीय और मानव शक्ति का दबाव बढ़ता है।

    XII. जीवन, शिक्षा, स्वास्थ्य और अच्छे वातावरण जैसे अधिकार जीवन की गारंटी के अधिकार जम्मू-कश्मीर की जनता के संवैधानिक अधिकारों के आवश्यक हिस्से हैं। पर केंद्र शासित प्रदेश अपने सभी लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य एवं न्यायिक बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं करा पा रही हैं जिसकी वजह से यहाँ की जनता का जीवन का अधिकार प्रभावित होता है। राज्य के बहुमूल्य संसाधनों - वित्तीय और भौतिक की इस तरह अनावश्यक प्रयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    XIII. दरबार मूव की वजह से राष्ट्रीय राजमार्ग पर चार दिनों तक साल में दो बार अनावश्यक ट्राफ़िक मूव्मेंट होता है।

    XIV. जम्मू-कश्मीर पहले से ही भारी वित्तीय घाटे का सामना कर रहा है और दरबार मूव पर खर्च एक अनावश्यक खर्च है और इससे केंद्र शासित प्रदेश का संसाधन कम होता है। सरकारी ख़ज़ाने पर इससे अनावश्यक दबाव बढ़ता है और करदाताओं की गाढ़ी कमाई से होनेवाले योगदान का अपव्यय है।

    XV. इस मद में खर्च होनेवाली राशि का प्रयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को और सभी स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में सुधार पर खर्च किया जा सकता है। कोविड-19 महामारी से लड़ने और स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाओं, परिवहन, तकनीक, सुरक्षा, समाज कल्याण, बेरोजगारी और खाद्य ज़रूरतों के लिए भारी संसाधन की ज़रूरत है। दरबार मूव समय और ऊर्जा की बर्बादी है। इससे अक्षमता बढ़ती है और प्रशासन में गिरावट आती है। कर्मचारियों को वेतन दिए जाने के रूप में भारी वित्तीय लागात भी आता है और यह व्यवस्था अंततः आम लोगों के हितों के ख़िलाफ़ है।

    XVII. न्यायपालिका को दरबार मूव के साथ शिफ़्ट होने की ज़रूरात नहीं है। इससे न्याय प्रशासन और न्याय दिलाने पर असर पड़ता है।

    XVIII. न्याय दिलाने में विलंब होता है क्योंकि सरकारी रेकर्ड्स वकीलों को एक क्षेत्र में छह महीने के लिए उपलब्ध नहीं होते हैं।

    XIX. रेकर्ड नहीं मिलने से मामले पर बार-बार स्थगन लेना पड़ता है क्योंकि मामले में समय पर जवाब दाखिल करना मुश्किल होता है। इस तरह दरबार मूव न्याय तक पहुँच में बाधा आने से मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 में दी गई है।

    XX. आम हित में और लगातार सक्षम प्रशासन के लिए यह ज़रूरी है कि कर्मचारियों और भौतिक परिसंपत्तियों का मूव्मेंट न्यूनतम हो। दरबार मूव का युक्तिसंगत साबित करना अत्यावश्यक है।

    XXI. कोविड-19 के कारण चल रहे लॉकडाउन की स्थिति में दरबार मूव के ख़तरनाक परिणाम हो सकते हैं। इस वजह से भी दरबार मूव नहीं हो सकता है।

    XXII. अगर इस परंपरा को युक्तिसंगत बनाया जाता है तो इससे जो धन, संसाधन और समय की बचत होगी उसे इस केंद्र शासित प्रदेश के विकास और कल्याण में लगाया जा सकता है जहां काफ़ी उथल-पुथल होता रहा है।

    निर्देश

    (i) इस फ़ैसले की जानकारी सचिव, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, शास्त्री भवन, नई दिल्ली को इस निर्देश के साथ भेजा जाए कि इसे उचित अथॉरिटीज़ के समक्ष रखा जाए जो इस बारे में उचित निर्णय लें।

    (ii) यह फ़ैसला मुख्य सचिव, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर को इस निर्देश के साथ भेजा जाए कि इसे उचित अथॉरिटीज़ के समक्ष रखा जाए जो इस बारे में उचित निर्णय लें।

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