पुलिस कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने के मामले में न्यूज चैनल हेड की गिरफ्तारी पर राजस्थान हाईकोर्ट ने लगायी रोक, प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने की भी दी अनुमति

SPARSH UPADHYAY

13 Jun 2020 10:05 AM GMT

  • पुलिस कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने के मामले में न्यूज चैनल हेड की गिरफ्तारी पर राजस्थान हाईकोर्ट ने लगायी रोक, प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने की भी दी अनुमति

    राजस्थान के पाली में न्यायिक अभिरक्षा (Judicial Custody) में एक श्रमिक नेता की संदिग्ध मौत से जुड़े मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली की सवाल उठाने और आलोचना करने वाली खबर को व्हाट्सएप्प (WhatsApp) पर प्रसारित करने के मामले में 'न्यूज-30 राजस्थान' के चैनल हैड, वीरेन्द्रसिंह राजपुरोहित को राहत देते हुए, राजस्थान हाईकोर्ट ने उनकी सीधी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है।

    न्यायमूर्ति पुष्पेन्द्र सिंह भाटी की एकल पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि यदि याचिकाकर्ता 10 दिन की अवधि के भीतर, अन्वेषण अधिकारी को दस्तावेज सहित अपना प्रतिवेदन/प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करेंगे, तो अन्वेषण अधिकारी विधिक प्रक्रिया अपनाते हुए अन्वेषण के नतीजे तक पहुंचने से पहले प्रतिवेदन/प्रतिनिधित्व पर विचार करेंगे।

    दरअसल, याचिकाकर्ता ने राजस्थान उच्च न्यायालय के समक्ष सीआरपीसी, 1973 की धारा 482 के तहत यह याचिका दाखिल करते हुए पुलिस स्टेशन, कोतवाली पाली, जिला पाली में दर्ज एफआईआर को रद्द करने और इस मुद्दे के निवारण के लिए संबंधित अन्वेषण प्राधिकरण के समक्ष सभी संबंधित दस्तावेजों के साथ एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने की अनुमति की मांग की थी। वहीँ, सुनवाई के दौरान राजकीय अधिवक्ता ने पुलिस की ओर से प्रकरण की तथ्यात्मक रिपोर्ट भी पेश की।

    क्या था यह मामला?

    राजस्थान के जिला पाली में महाराजा श्री उम्मेद मिल में श्रमिकों और मिल मालिक के बीच विवाद हुआ, और पुलिस से हुई झड़प के बाद पुलिस ने कई श्रमिकों और श्रमिक नेता रामनाथ सिंह को गिरफ्तार किया था। इसके पश्च्यात, कथित तौर पर पुलिस अभिरक्षा में उनके साथ मारपीट की तस्वीरें मीडिया में वायरल हुई थीं।

    इसी के मद्देनजर, रामनाथ सिंह को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया था, जहां पर संदिग्ध अवस्था में उनकी मौत हो गई। इसी सम्बन्ध में, डिजिटल न्यूज चैनल, 'न्यूज-30 राजस्थान' के चैनल हेड, वीरेन्द्रसिंह राजपुरोहित ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और उनके द्वारा पुलिस की कार्यप्रणाली पर तमाम सवाल उठाए गए थे।

    इसके अलावा, उनके द्वारा व्टाहट्सएप्प पर सिटी कोतवाली एसएचओ गौतम जैन को सम्बन्धित न्यूज संदेश भेज दिया गया था। परिणामस्वरूप, गौतम जैन ने वीरेन्द्रसिंह के खिलाफ सिटी कोतवाली पुलिस थाने में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 388, 116, 500, 501, 506 और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 67 के तहत FIR दर्ज करवा दी।

    'पेशेवर उत्तरदायित्व के तहत सवाल उठाना है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता'

    अदालत में वीरेन्द्र सिंह की ओर से पेश अधिवक्ता गोवर्धन सिंह और रजाक के. हैदर ने आपराधिक विविध याचिका दायर कर उनके खिलाफ दाखिल इस एफआईआर को चुनौती दी। अधिवक्ता रजाक के. हैदर की ओर से यह दलील दी गयी कि, याचिकाकर्ता पत्रकार ने न्यायिक अभिरक्षा में संदिग्ध व्यक्ति मौत की एक गंभीर घटना पर अपने 'पेशेवर उत्तरदायित्व' के तहत पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं, जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार की श्रेणी में आता है।

    यह भी कहा गया कि, व्टाट्सएप्प पर न्यूज संदेश भेजने मात्र से पुलिस निरीक्षक गौतम जैन द्वारा अपने ही पुलिस थाने में आपराधिक मुकदमा दर्ज करवाना, अपने पद एवं कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यह मीडिया की स्वतंत्रता और स्वायत्ता को दबाने का भी प्रयास है।

    10 दिन में देना होगा प्रतिवेदन, तबतक गिरफ्तारी से रहेगी छूट

    अदालत ने सभी दलीलों को सुनने के पश्च्यात, याचिकाकर्ता की सीधी गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दिया, ताकि याचिकाकर्ता बिना किसी भय के अपना पक्ष रख सके। हाईकोर्ट के आदेशानुसार, अन्वेषण अधिकारी को याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी से पहले 15 दिवस का नोटिस देना अनिवार्य है।

    हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकरण/मामले के तथ्यों को देखते हुए गिरफ्तारी को लेकर सीमित संरक्षण देना न्याय हित में उचित है। अदालत ने याचिकाकर्ता को भी पुलिस अन्वेषण में अपना सहयोग करने को कहा है। साथ ही अन्वेषण में किसी भी विधिक प्रक्रिया के पालन न होने की स्थिति में, फिर से न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की छूट दी गई है।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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