"सुनियोजित हत्या का मामला नहीं": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'काफिर' कहे जाने पर हत्या के मामले में दोषी व्यक्ति की सजा को कम किया

Brij Nandan

12 Aug 2022 4:02 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में हत्या मामले (Murder Case) में आरोपी की सजा को आईपीसी धारा 302 से धारा 304 भाग 1 में बदला क्योंकि यह नोट किया गया कि 'काफिर' (धर्म में विश्वास न करने वाला व्यक्ति) कहे जाने पर बिना सोचे-समझे गैर इरादतन हत्या की गई थी।

    जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की पीठ ने दोषी जावेद की सजा को संशोधित किया क्योंकि उसने जोर देकर कहा कि यह घटना इसलिए हुई क्योंकि मृतक ने उसे (आरोपी/अपीलकर्ता) काफिर कहा था, यह नहीं कहा जा सकता कि यह एक पूर्व नियोजित हत्या थी।

    पूरा मामला

    शिकायतकर्ता मो. मकसूद खान ने आरोप लगाया कि 4 नवंबर 1996 की सुबह आरोपी जावेद से किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई और उसके पिता (मृतक), मां और रिश्तेदार ने उसे डांटा। इस तकरार के दौरान जावेद ने कुरान शरीफ को लेकर अपशब्द कहे।

    इस पर मृतक के पिता (मोहम्मद असलम) ने बताया कि जो व्यक्ति कुरान को नहीं मानता उसे 'काफिर' कहा जाता है। इसके जवाब में जावेद ने मृतक को धमकाया।

    इसके बाद उसी दिन दोपहर करीब दो बजे जब शिकायतकर्ता और उसके पिता अपने घर जा रहे थे तो जावेद देसी पिस्टल लेकर वहां आया और मृतक पर गोली चला दी। जावेद/आरोपी ने शिकायतकर्ता को धमकाकर भाग गया। शिकायतकर्ता उसके पिता को अस्पताल ले गया लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।

    अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक कोर्ट नंबर 2), फतेहपुर ने आरोपी को आईपीसी की धारा 302 के तहत आदेश और 6 फरवरी, 2002 के फैसले के तहत आजीवन कारावास और 5000 / - रुपये के जुर्माने के साथ दोषी ठहराया। इसे चुनौती देते हुए दोषी ने वर्तमान अपील दायर की।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि वर्तमान अपील के लंबित रहने के दौरान, आरोपी को जमानत पर रिहा कर दिया गया था क्योंकि उसने छह साल जेल में बिताए थे।

    कोर्ट के सामने पेश न होने पर जावेद को गिरफ्तार कर लिया गया और सितंबर 2019 में उसे जेल में बंद कर दिया गया।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    मामले के तथ्यों, संबंधित परिस्थितियों और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि घटना स्थल पर गवाहों की उपस्थिति को दोष नहीं दिया जा सकता है।

    इसलिए, अदालत ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराते हुए निचली अदालत द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों से सहमति व्यक्त की। हालांकि, कोर्ट ने धारा 302 आईपीसी के तहत अपीलकर्ता को दोषी ठहराने में निचली अदालत के साथ मतभेद किया।

    अदालत ने पाया कि आरोपी ने जल्दबाजी और रोष में, जैसा कि उसे मृतक द्वारा काफिर कहा जाता था, क्रोधित हो गया और उस जल्दबाजी में उसने एक गोली चला दी।

    कोर्ट ने कहा,

    "मामला धारा 304 भाग I के अंतर्गत आता है, हालांकि घटना बाद में उकसाने पर हुई थी, जो कि एफआईआर में वर्णित पहली घटना थी। हम सजा को कम करने के लिए अपीलकर्ता के वकील से सहमत हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके पिता ने उसे काफिर कहा, यह नहीं कहा जा सकता कि यह एक सुनियोजित हत्या थी।"

    चिकित्सा अधिकारी की राय के साथ मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्र जांच पर, न्यायालय की राय में आई.पी.सी की धारा 304 (भाग-I) के तहत अपराध दंडनीय होगा क्योंकि तात्कालिक मामला आईपीसी की धारा 300 के अपवाद (1) और (4) के अंतर्गत आता है।

    आईपीसी की धारा 299 पर विचार करते हुए, किया गया अपराध आईपीसी की धारा 304 (भाग- I) के तहत आएगा और इस प्रकार, अदालत ने उसे आईपीसी की धारा 304 (भाग- I) के तहत दोषी ठहराया और उसे सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

    अपीलार्थी की ओर से एडवोकेट मानवेन्द्र सिंह पेश हुए।

    केस टाइटल - जावेद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [आपराधिक अपील संख्या – 890 ऑफ 2002]

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ 363

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