"आरोपी केवल इसलिए लाभ नहीं ले सकता क्योंकि पीड़िता का धर्म यौवन के बाद शादी की अनुमति देता है" : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने POCSO के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

Manisha Khatri

22 Nov 2022 6:45 PM IST

  • आरोपी केवल इसलिए लाभ नहीं ले सकता क्योंकि पीड़िता का धर्म यौवन के बाद शादी की अनुमति देता है : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने POCSO के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में पॉक्सो अधिनियम के तहत उस आरोपी को राहत देने से इनकार कर दिया, जिसने इस आधार पर जमानत की रियायत मांगी थी कि पीड़िता एक मुस्लिम लड़की है, जो नाबालिग होने के बावजूद युवावस्था की उम्र प्राप्त कर चुकी थी और उसके द्वारा दी गई सहमति कानून में मान्य है।

    जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल पीठ ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ नाबालिग मुस्लिम लड़कियों को युवावस्था में आने के बाद शादी करने की अनुमति देता है। हालांकि, इस मामले में दोनों पक्षकारों के बीच शादी नहीं हुई थी। पीठ ने अलीम पाशा बनाम राज्य के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भी ध्यान दिया, जहां यह माना गया था कि पॉक्सो अधिनियम एक विशेष अधिनियम है और यह पर्सनल लॉ को ओवरराइड करता है (इस प्रकार यौन गतिविधियों में शामिल होने की आयु 18 वर्ष है)।

    अदालत ने आगे आवेदक के मामले और उसके द्वारा उद्धृत मामले के कानूनों के बीच तथ्यात्मक अंतर को इंगित किया।

    आवेदक ने कई निर्णयों पर भरोसा किया था, जहां न्यायालयों ने उन मुस्लिम पुरुषों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखा है, जिन्होंने नाबालिग मुस्लिम महिलाओं से शादी की थी,लेकिन उन्होंने युवावस्था प्राप्त कर ली थी। अदालत ने हालांकि कहा कि उन मामलों में वैवाहिक पक्ष शामिल है जबकि मौजूदा मामले में ''स्थिति अलग हैैं क्योंकि आवेदक ने पीड़िता के साथ शादी करने का (झूठा) वादा किया है''।

    यह भी कहा गया, ''आवेदक द्वारा भरोसा किए गए मामलों से उसे मदद नहीं मिलेगी क्योंकि उसने पीड़िता के साथ शादी नहीं की थी, इसलिए उसे यौवन की उम्र का लाभ नहीं दिया जा सकता है।''

    यहां आवेदक और पीड़िता धर्म से मुसलमान हैं। आवेदक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 366केए, 376, 376(2)(एन) और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012(पॉक्सो) की धारा 3/4, 5/6 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाया गया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, उसने शादी के वादे पर 16 वर्षीय पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए। हालांकि, उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि आवेदक पहले से शादीशुदा है। अंततः आवेदक को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में, उसने जमानत के लिए न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया।

    आवेदक ने प्रस्तुत किया कि शारीरिक संबंध सहमति से बने थे और उन्होंने यह तर्क देने के लिए हाईकोर्ट के विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया कि मुस्लिम कानून के तहत, पीड़िता द्वारा दी गई सहमति, भले ही वह नाबालिग हो, लेकिन युवावस्था की उम्र तक पहुंच गई है तो अमान्य नहीं है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि ऐसी परिस्थितियों में, यदि किसी व्यक्ति पर पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया जाता है, तो उसे जमानत देने पर विचार किया जा सकता है। मोहम्मद वसीम अहमद बनाम राज्य मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर बहुत भरोसा किया गया, जहां एक मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ अपनी नाबालिग पत्नी को गर्भवती करने के लिए पॉक्सो का मामला दर्ज किया गया था और कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।

    वहीं राज्य ने तर्क दिया कि आवेदक द्वारा उद्धृत मामले के कानून उसके मामले पर लागू नहीं होते क्योंकि पक्षकार विवाहित नहीं हैं। आगे प्रस्तुत किया गया कि आवेदक ने अपनी वैवाहिक स्थिति के बारे में पीड़िता को अंधेरे में रखा था। यह भी बताया गया कि 15 वर्ष की आयु के बाद यौवन के अनुसार वयस्क होने वाली लड़की को पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शासित किया जाएगा या नहीं, यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है।

    कोर्ट ने राज्य के तर्कों में योग्यता पाई। यह नोट किया गया कि आवेदक द्वारा उद्धृत केस कानूनों से उसे कोई मदद नहीं मिली क्योंकि उसका विवाह पीड़िता से नहीं हुआ है। इसके अलावा, अदालत ने पीड़िता द्वारा दी गई सहमति के संबंध में भी आवेदक के तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसकी सहमति अमान्य थी-

    पक्षकारों के वकील द्वारा दी गई दलीलों व रिकॉर्ड पर विचार करने और ऊपर दिए गए निर्णय को देखने के बाद, प्रथम दृष्टया मेरी राय है कि जिन मामलों पर आवेदक के वकील भरोसा कर रहे हैं, वे वर्तमान तथ्यों और परिस्थितियों पर लागू नहीं होते हैं। इधर इस मामले में, आवेदक ने सिर्फ पीड़िता से शादी का वादा किया था, जिसकी उम्र लगभग 16 साल है और इस तथ्य का खुलासा भी नहीं किया कि वह पहले से ही शादीशुदा है और उसके साथ शारीरिक संबंध बना लिए। पीड़िता के बयान से यह स्पष्ट है कि वह अपनी इच्छा से आवेदक के साथ गई थी लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि शारीरिक संबंध विकसित करने के लिए उसकी सहमति वैध सहमति थी। जिन मामलों पर आवेदक के वकील द्वारा भरोसा किया गया है, उन मामलों में पीड़िता ने नाबालिग होते हुए शादी कर ली थी और शारीरिक संबंध बनाए थे, ऐसी परिस्थितियों में जिसे अमान्य नहीं माना गया था।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने मामले को जमानत के लिए उपयुक्त नहीं पाया और तदनुसार, आवेदन को खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल- मोहम्मद अंसार बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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