‘मां ने अपने अवैध संबंध को अधिक महत्व दिया, बच्चे के लिए नैतिक मूल्य महत्वपूर्ण’: कर्नाटक हाईकोर्ट ने 7 साल की बच्ची की कस्टडी पिता को सौंपी

Manisha Khatri

6 Feb 2023 3:15 PM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है,जिसमें सात साल की एक बच्ची की मां को निर्देश दिया गया था कि वह बच्ची की कस्टडी उसके पिता को सौंप दे। यह निर्देश देते हुए फैमिली कोर्ट ने कहा था कि वह खुद अपने बच्चे के कल्याण पर ध्यान देने के बजाय अपने अवैध संबंधों के प्रति अधिक ध्यान दे रही है।

    जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने महिला द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया और कहा,

    ‘‘यदि उक्त एस (नाम संपादित) के साथ अपीलकर्ता के संबंध के मुद्दे की तुलना बच्ची के कल्याण के साथ की जाए, तो ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता ने कथित एस (नाम संपादित) के साथ अपने अवैध संबंध को अधिक महत्व दिया है और बच्ची की उपेक्षा की है... उसने बच्ची की कस्टडी अपने माता-पिता को सौंप दी थी, जो चंडीगढ़ के पंचकुला में रह रहे हैं, जबकि वह एस (नाम संशोधित) के साथ बेंगलुरु में रह रही है।’’

    यह भी कहा,

    ‘‘अदालतों को न केवल बच्चे के आराम और लगाव पर विचार करने की आवश्यकता है, बल्कि उस परिवेश को भी ध्यान में रखना चाहिए जिसमें बच्चा पल रहा है, वह नैतिक मूल्य जो बच्चा अवलोकन से सीखता है, देखभाल और स्नेह की उपलब्धता जब बच्चे को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है और उसके बाद एक संतुलन बनाएं जो बच्चे के कल्याण और हित के लिए अधिक फायदेमंद होगा।’’

    फैमिली कोर्ट ने बच्ची के पिता द्वारा हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत दायर याचिका को स्वीकार कर लिया था।

    अपील में, मां ने तर्क दिया कि उसे और बच्ची को वैवाहिक घर से ‘‘बाहर निकाल दिया गया’’ था और बच्ची अब अच्छे माहौल में पल रही है और अपनी पढ़ाई कर रही है। इसके अलावा उसने तर्क दिया कि प्रतिवादी के घर में लड़की की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, जबकि वह खुद एक अच्छा कमाने वाली डॉक्टर है और वह बच्ची की देखभाल करने में सक्षम है।

    दूसरी ओर प्रतिवादी-पिता ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता ने बच्ची के जन्म के एक साल बाद 2016 में अपने कार्यस्थल पर अवैध संबंध बना लिए थे। वह सप्ताहांत के दौरान अपने प्रेमी के साथ बाहर चली जाती थी जबकि वह और उसके माता-पिता एक नौकरानी की मदद से बच्ची की देखभाल करते थे। इसके बाद उसने 2018 में बच्ची के साथ ससुराल छोड़ दिया। उसने दावा किया कि अपीलकर्ता और उसके प्रेमी के बीच अवैध संबंध के बीच बच्ची ‘‘अपवित्र माहौल’’ में पल रही थी। इसलिए यह आशंका है कि बच्ची और उसका भविष्य वहां सुरक्षित नहीं है।

    शुरुआत में, हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी-पिता ने सफलतापूर्वक साबित कर दिया कि अपीलकर्ता का एस (नाम संशोधित) के साथ संबंध बिजनेस मीटिंग से परे था। “यदि बैठकें किसी व्यावसायिक लेन-देन के संबंध में थीं, तो उन्हें कॉफी शॉप में या होटल की लॉबी में या मीटिंग रूम में करने की आवश्यकता थी। हालांकि, ईएक्स.पी-15 दस्तावेज स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अपीलकर्ता और उक्त एस (नाम संपादित) ने होटल में कमरा बुक करवाया था और वे कुछ अवसरों पर रात भर भी उस कमरे में रहे थे।’’

    यह भी व्यक्त किया कि हालांकि सामान्य परिस्थितियों में, बच्ची की इच्छा भी उक्त बच्ची की कस्टडी तय करने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगी। हालांकि, रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री और इस तथ्य के संबंध में कि बच्ची को हमेशा पिता से दूर रखा गया है और अपीलकर्ता मां द्वारा उसे समझाया गया होगा, अदालत ने कहा कि बच्ची से उसकी इच्छा का पता लगाने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

    कोर्ट ने यह भी कहा,‘‘एक बच्चे की इच्छा और चाह का पता तभी लगाया जा सकता है जब बच्चा एक बुद्धिमान वरीयता और निर्णय बनाने के लिए पर्याप्त परिपक्व हो, अन्यथा यह अदालत पर निर्भर है कि वह सामग्री का विश्लेषण करके और बच्चे के सर्वोपरि हित को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले।’’

    कोर्ट ने आगे कहा,

    ‘‘जब बच्चे को माता-पिता के प्यार से वंचित किया जाता है, तो उसका समग्र विकास और खुशी प्रभावित होती है और ऐसी स्थिति में, न्यायालयों को न केवल बच्चे के आराम और लगाव पर विचार करने की आवश्यकता होती है, बल्कि उस परिवेश को भी ध्यान में रखना चाहिए जिसमें बच्चा बढ़ रहा है, नैतिक मूल्य जो बच्चा अवलोकन से सीख रहा है, देखभाल और स्नेह की उपलब्धता, जब बच्चे को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है और उसके बाद एक संतुलन बनाता होता है जो बच्चे के कल्याण और हित के लिए अधिक फायदेमंद होगा।’’

    आगे यह देखते हुए कि अपीलकर्ता ने अपना घर छोड़ने के बाद पति के खिलाफ मामले दायर किए थे, पीठ ने कहा, ‘‘ये सभी पहलू स्पष्ट रूप से प्रतिवादी के प्रति अपीलकर्ता के रवैये और शत्रुता को दिखा रहे हैं, जबकि उसने वैवाहिक घर छोड़ने के बाद पूर्वोक्त एस (नाम संपादित) के साथ अपने अवैध संबंध को जारी रखे हुए है।’’

    इसके अलावा पीठ ने कहा कि महिला ने प्रतिवादी को मुलाकात का अधिकार प्रदान करने वाले अदालत के कई आदेशों का सम्मान नहीं किया और उसने सफलतापूर्वक बच्ची को प्रतिवादी से दूर रखा।

    अदालत ने महिला के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि चूंकि प्रतिवादी ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65बी के तहत आवश्यक प्रमाण पत्र पेश नहीं किया है, इसलिए प्रतिवादी द्वारा पेश की गई उन तस्वीरों को सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है,जो अपीलकर्ता व उसके प्रेमी को एक साथ दर्शा रही हैं।

    यह भी कहा, ‘‘फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 की धारा 14 के मद्देनजर, फैमिली कोर्ट किसी भी ऐसी रिपोर्ट, बयान, दस्तावेज, सूचना को साक्ष्य के रूप में प्राप्त करने के लिए अधिकृत या सशक्त है, यदि कोई हो, जो उसकी राय में विवाद से प्रभावी ढंग से निपटने में सहायता करेंगे,इस बात पर ध्यान दिए बिना कि क्या यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत प्रासंगिक या स्वीकार्य है?’

    कोर्ट ने कहा कि महिला ने ससुराल छोड़ने के बाद बच्ची की कस्टडी चंडीगढ़ में अपने माता-पिता को सौंप दी थी, ‘‘इसलिए यह बहुत स्पष्ट है कि अपीलकर्ता द्वारा अपने ससुराल छोड़ने से पहले और उसके वैवाहिक घर छोड़ने के बाद भी, उसने बच्ची की देखभाल नहीं की थी और यह प्रतिवादी और उसके माता-पिता ही थे जो बच्ची की देखभाल कर रहे थे, जब वह ससुराल में रह रही थी।’’

    तदनुसार, अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने मां को मुलाकात का अधिकार भी दिया और कहा, ‘‘हमें लगता है कि अगर बच्ची की कस्टडी प्रतिवादी को सौंप दी जाए तो यह नाबालिग बच्ची के हित में होगा, लेकिन समय-समय पर नाबालिग से मिलने के लिए अपीलकर्ता के पास पर्याप्त पहुंच रहेगी।’’

    केस टाइटल-एबीसी और एक्सवाईजेड

    केस नंबर- एमएफए नंबर 2786/2022

    साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (केएआर) 42

    आदेश की तिथि-31 जनवरी 2023

    प्रतिनिधित्व-अपीलकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट आर.वी.एस.नाइक व उमर शरीफ

    प्रतिवादी के लिए एडवोकेट- सीनियर एडवोकेट एस श्रीवत्स व एन गौतम रघुनाथ

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