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COVID-19 लॉकडाउन के बीच जम्मू-कश्मीर में 2G मोबाइल इंटरनेट स्पीड बनी रहेगी

COVID-19 लॉकडाउन के बीच जम्मू-कश्मीर में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं 2G स्पीड पर रहेंगी, क्योंकि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 15 अप्रैल तक डेटा कनेक्शन पर मौजूदा प्रतिबंधों को बनाए रखने का निर्णय लिया है, जब तक कि इसे पहले संशोधित नहीं किया जाता।
शुक्रवार को जारी आदेश में, जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह विभाग ने कहा कि इंटरनेट स्पीड प्रतिबंधों ने "COVID-19 नियंत्रण उपायों या ऑनलाइन शैक्षणिक सामग्री की उपयोगकर्ता तक पहुंच में कोई बाधा नहीं डाली है।
सरकार के प्रधान सचिव, शालीन काबरा IAS द्वारा पारित आदेश में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर अधिवास कानून में हाल के बदलाव के बाद "सार्वजनिक शांति के लिए खतरे की आशंका है। यह भी कहा कि एक तरफ हथियारों की बड़ी बरामदगी हुई है और दूसरी तरफ आतंकवादियों द्वारा नागरिकों की हत्या की गई हैं। इसके अलावा उत्तेजक सामग्री अपलोड करके आतंकवाद को प्रोत्साहित करने" के प्रयास भी हुए।
इन आधारों का हवाला देते हुए, प्रशासन ने 26 मार्च को जारी किए गए आदेश के अनुसार, टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5 (2) और दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन के नियम 2 (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम 2017 के तहत जारी प्रतिबंधों को बरकरार रखने का फैसला किया।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जम्मू और कश्मीर के यूनियन टेरेटरी (यूटी) में 4G मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बहाल करने की मांग करते हुए याचिका भी दायर की गई है।
यह जनहित याचिका सरकार के उस आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई है जिसमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 21A का उल्लंघन करते हुए मोबाइल डेटा सेवाओं में इंटरनेट की गति को 2G तक ही सीमित कर दिया गया है। केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य में धारा 370 को रद्द करते हुए इंटरनेट संचार ब्लैकआउट कर दिया था।
पांच महीने बाद जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर जिसमें इंटरनेट शटडाउन को अवैध कहा और उसके बाद मोबाइल उपयोगकर्ताओं के लिए केवल 2G की गति पर इंटरनेट को आंशिक रूप से बहाल कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि इंटरनेट का अनिश्चितकालीन निलंबन स्वीकार्य नहीं है और इंटरनेट पर प्रतिबंधों को अनुच्छेद 19 (2) के तहत आनुपातिकता के सिद्धांतों का पालन करना होगा।
याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया है कि स्वास्थ्य संकट के इस समय में सरकार को दायित्व के तहत "डिजिटल बुनियादी ढांचे" तक पहुंच सुनिश्चित करना नागरिकों के स्वास्थ्य के अधिकार को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है।