मेडिकल इमरजेंसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलने का बहाना नहीं हो सकती : तेलंगाना हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

23 May 2020 3:15 AM GMT

  • मेडिकल इमरजेंसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलने का बहाना नहीं हो सकती : तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि मेडिकल इमरजेंसी के नाम पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलने की इजाज़त नहीं दी जा सकती जो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिया गया है।

    COVID 19 की जांच सिर्फ़ उन्हें चिह्नित सरकारी अस्पतालों से ही कराने के सरकारी आदेश को न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति के लक्ष्मण की खंडपीठ ने ख़ारिज कर दिया। यह आदेश लोगों को जांच के लिए निजी अस्पतालों में जाने की इजाज़त नहीं देता, जबकि इन अस्पताओं को आईसीएमआर को जांच करने की अनुमति मिली है।

    अदालत ने महाधिवक्ता की इस दलील को नहीं माना कि राज्य में COVID 19 महामारी को देखते हुए इमरजेंसी जैसी स्थिति है और इस स्थिति में राज्य की कार्रवाई उचित है।

    इसके अलावा, 44वां संविधान संसोधन कर अनुच्छेद 359 को संशोधित किया गया और कहा गया कि अगर अनुच्छेद 21 और 21 का उल्लंघन होता है तो राष्ट्रपति अदालत में इसको चुनौती देने और अपने अधिकारों की बहाली की अपील करने से नहीं रोक सकता है।

    अदालत ने गंटा जय कुमार बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य के इस मामले में कहा,

    "उपरोक्त निर्णय (एडीएम जबलपुर मामले में) का आधार यह था कि संविधान सर्वोच्च है और अगर उसको लगता है कि किसी व्यक्ति को ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से गिरफ़्तार गिया गया है तो उसे अपनी निजी स्वतंत्रता के अधिकार की बहाली की अनुमति नहीं होगी और अदालत इसे लागू करने के लिए बाध्य थी… पर इस फ़ैसले को केएस पुत्तस्वामी बनाम भारत संघ मामले में 9 जजों की पीठ ने पलट दिया।"

    इस क्रम में अदालत ने लिवरसिद्ज बनाम एंडरसन मामले में र्सिदगे लॉर्ड ऐट्किन की इस प्रसिद्ध उक्ति को भी उद्धृत किया : 'इस देश में हथियारों की लड़ाई में क़ानून मूक नहीं है। वे भले ही बदल जाएं लेकिन वे युद्ध में भी वही भाषा बोलते हैं जो शांति में।"

    अदालत ने कहा,

    "सुप्रीम कोर्ट का उपरोक्त निर्णय महाधिवक्ता की दलील का पूरी तरह से उत्तर देता है कि चूंकी मेडिकल इमरजेंसी है या युद्ध का आपातकाल है इसीलिए राज्य कुछ भी कर सकता है और इसके तहत वह अनुच्छेद 21 के तहत राज्य अपने नागरिकों को स्वास्थ्य का जो अधिकार दिया है, उसे भी वह सीमित कर सकता है।

    किसी भी तरह की इमरजेंसी अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों को कुचलने का बहाना नहीं हो सकता और अदालत को यह अधिकार है कि वह यह सुनिश्चित करे कि इमेरजेंसी में राज्य उचित, निष्पक्ष और संगत तरीक़े से कार्य करे। राज्य ने ऐसा किया है कि नहीं है इसकी सुप्रीम कोर्ट ने जो क़ानून निर्धारित किया है उसके आलोक में न्यायिक समीक्षा हो सकती है।"

    निजी अस्पतालों पर महामारी से लड़ने पर रोक नहीं

    अदालत ने कहा,

    "स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालाय और आईसीएमआर के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने महामारी बीमारी अधिनियम, 1897 के प्रावधानों को नज़रंदाज़ किया है और यह अदालत मानती है कि भारत सरकार और आईसीएमआर ने निजी प्रयोगशालाओं और अस्पताओं को COVID 19 के मरीज़ों की जाँच और इलाज की अनुमति देते समय क़ानून के इन प्रावधानों को उचित महत्व दिया है।"

    अदालत ने कहा,

    "ऐसा तो है नहीं कि COVID 19 का कोई इलाज ढूंढ लिया गया है, और तेलंगाना राज्य के सिर्फ़ गांधी अस्पताल के ही पास इसका टीका है और इसलिए तेलंगाना राज्य के सभी लोगों को जो इस वायरस से संक्रमित हैं, को इसी अस्पताल में आना है। हो सकता है कि इस अस्पताल में सुविधाएं अच्छी होंगी या निर्धारित सरकारी अस्पताल बहुत अच्छे हैं, पर इसका यह मतलब नहीं है कि प्रतिवादी, महामारी रोकने के बहाने नागरिकों को अपना डॉक्टर या अस्पताल चुनने की स्वतंत्रता को सीमित करे और अगर वह कोविड-19 से संक्रमित है तो इसकी जाँच या इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में ही जाने के लिए बाध्य करे।"

    अदालत ने कहा,

    "राज्य को यह नहीं भूलना चाहिए कि चूंकि उसके अस्पताल सभी ग़रीबों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं करा पाते इसलिए उसने निजी क्षेत्र के मेडिकल हेल्थ केयर को इसके लिए उत्साहित किया है और 'आरोग्यश्री' जैसी योजना को अपने आरोग्यश्री हेल्थ केयर ट्रस्ट के माध्यम से लागू किया है। COVID 19 महामारी ने राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति को बेनक़ाब कर दिया है जहां सरकारी क्षेत्र में सिर्फ़ गिने-चुने ही अस्पताल/प्राथमक स्वास्थ्य केंद्र है, बहुत कम डॉक्टर और नर्स हैं, दवाएँ नहीं हैं और कुछ अपवादों को छोड़कर मेडिकल सुविधाओं की गुणवत्ता बहुत ही ख़राब है।"

    अदालत ने कहा कि अब लॉकडाउन को आसान किया जा रहा है ताकि राज्य और निजी व्यवसाय की वित्तीय मुश्किलें कम हो सके, 11 मई 2020 को ट्रेन की बुकिंग भी शुरू हो गई; शराब की दुकानें खोल दी गयी हैं और ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन में में सीमित औद्योगिक गतिविधियों की इजाज़त भी दे दी गई है।

    इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही है कि लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद संक्रमण बढ़ेगा। तेलंगाना की जनसंख्या 3.5 करोड़ है और सिर्फ़ कुछ सरकारी अस्पताल और जांच केंद्र संक्रमण में भारी वृद्धि से निपटने में सक्षम नहीं हो पाएगा।

    अंततः अदालत ने कहा कि राज्य तेलंगाना के लोगों को COVID 19 की जांच और इसका इलाज सिर्फ़ एनआईएमएस/गांधी मेडिकल हॉस्पिटल या अन्य निर्धारित स्थान पर ही कराने को बाध्य नहीं कर सकता, जिनका चुनाव उसने ख़ुद किया है जबकि लोग आईसीएमआर से अनुमति प्राप्त करने वाले निजी अस्पतालों और लैब्ज़ में इलाज और जांच का खर्च वहन करने के लिए तियार हैं।

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