मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस को सोशल मीडिया के दुरुपयोग की जांच के लिए विशेष सेल गठित करने का निर्देश दिया
LiveLaw News Network
2 Feb 2020 10:30 AM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया है कि वे राज्य के हर पुलिस थाने में समर्पित प्रकोष्ठ या सेल का गठन करें, जो न केवल संवैधानिक और सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ बल्कि आम लोगों के खिलाफ भी सोशल मीडिया पर अपमानजनक सामग्री पोस्ट करने वाले अनैतिक, असामाजिक अपराधियों से निपट सकें।
न्यायमूर्ति एम.ढंडापानी ने कहा कि-
''जब तक कि इस संकट से कड़े हाथों से नहीं निपटा जाएगा, यह एक भयावह मुद्दा है, जो दूर-दूर तक अपनी पहुंच को फैला रहा है और जो न केवल व्यक्तियों के स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन को खाएगा, बल्कि पूरे देश को भी खतरे में डाल देगा।
वहीं समाज के मामलों की पतवार तैयार करने वाले व्यक्तियों को इन व्यक्तियों की दया पर छोड़ दिया जाएगा, इसलिए, अब समय आ गया है कि उपयुक्त और आवश्यक निर्देश कानून लागू करने वाली एजेंसी को जारी किए जाने चाहिए, जो इस तरह के बेईमान साथियों या व्यक्तियों के खिलाफ आवश्यक दंडात्मक कार्रवाई करके इस गंभीर खतरे से निपट सके, जो बिना किसी सबूत के किसी भी सोशल मीडिया का दुरुपयोग करते हैं।''
पीठ ने आदेश दिया है कि दो महीने के भीतर विशेष प्रकोष्ठों की स्थापना की जाए और इन सेल में प्रतिनियुक्त किए गए कर्मियों को सभी कौशल और ज्ञान प्रदान किया जाए, जो ऐसे व्यक्तियों को ट्रैक करने या इनसे निपटने और अनचाही घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक है।
पीठ ने आगे कहा कि-
''एक गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार संविधान के तहत गारंटीकृत है और उसी को कुछ असामाजिक तत्वों की खुशी के लिए भंग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो किसी भी व्यक्ति के खिलाफ अपमानजनक, निंदापूर्ण और असंसदीय बयान देते हैं, चाहे वह एक आम आदमी है, कोई एक संवैधानिक प्राधिकारी है या एक सरकारी अधिकारी या राज्य/ केंद्र, सार्वजनिक/निजी क्षेत्र के रोजगार में उच्च पद धारण करने वाला कोई भी व्यक्ति। इस प्रकार के सस्ते प्रचार और निंदनीय कृत्य की कली या अंकुर को दबा या मसल दिया जाना चाहिए, अगर इसमें विफल हो गए,तो यह बड़े पैमाने पर शुरू हो जाएगा।''
पुलिस अधीक्षक, साइबर सेल, क्राइम ब्रांच-क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीबीसीआईडी) द्वारा रिकॉर्ड पर रखी गई असंतोषजनक रिपोर्ट को देखने के बाद यह निर्देश जारी किए गए थे।
इस रिपोर्ट में अदालत के अनुसार, भविष्य में ऐसे गलत व्यक्तियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी,उसके संबंध किसी भी उचित तंत्र का उल्लेख नहीं किया गया था। न ही यह बताया गया कि ऐसे असंगत या असामाजिक तत्वों के खिलाफ क्या कार्रवाई की मांग की गई है।
एक जमानत की अर्जी का निपटारा करते समय ये टिप्पणियां की गई थीं, जिसमें आरोपी के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश और एक वकील के खिलाफ और पूरी न्यायिक व्यवस्था के खिलाफ मानहानि और बेबाक बयान वाले वीडियो प्रसारित करने का आरोप है और उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 502 और 509 के तहत आरोप लगाया गया था।
याचिकाकर्ता-अभियुक्त का मामला यह था कि उसने यह बयान जानबूझकर नहीं दिए थे और उसने परिणामों की कल्पना किए बिना ,केवल अपनी शिकायत के रूप में यह बयान दिया था।
हाईकोर्ट ने बिना शर्त माफी मांगने के बाद उसकी जमानत अर्जी मंजूर कर ली। साथ ही कहा कि-
''यह ध्यान दिया गया है कि यद्यपि यह याचिकाकर्ता का इरादा नहीं था, जैसा कि उसके बयान से देखा गया है, हालांकि, उनके द्वारा दिए गए बयान न केवल अवज्ञाकारी या उद्दंड हैं, बल्कि समान रूप से अस्वीकार्य हैं और कानून के सभी कैनन के खिलाफ हैं।
अदालत को नीचा दिखाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, लेकिन साथ ही, तथ्यों के सारे पहलू पर विचार करते हुए आत्म-बोध को भी ध्यान में रखना होगा। याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत माफी के मद्देनजर, यह न्यायालय उपरोक्त शपथ पत्र को रिकॉर्ड में लेने के लिए इच्छुक है और, तदनुसार, याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत माफी को स्वीकार कर लिया गया है।''
अनुपालन का आकलन करने के लिए मामले में सुनवाई के लिए अब 30 मार्च की तारीख तय की है।
इसी तरह का एक आदेश 2018 में केरल हाईकोर्ट द्वारा भी पारित किया गया था, जिसके तहत राज्य पुलिस को आह्वान किया गया था या कहा गया था कि वह साइबर अपराधों से निपटने के लिए डिजिटल साक्ष्य के लिए एक अच्छा अभ्यास मार्गदर्शक लाए और साथ ही वर्तमान और उभरती हुई प्रौद्योगिकियां के आपराधिक दुरुपयोग से निपटने के लिए पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करे।
पिछले साल सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह ऑनलाइन गोपनीयता और राज्य संप्रभुता के हितों को संतुलित करके सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के बारे में एक हलफनामा दायर करे।
जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने तब यह टिप्पणी की थी कि-
''सोशल मीडिया का दुरुपयोग खतरनाक हो गया है। सरकार को जल्द से जल्द इस मुद्दे से निपटने के लिए कदम उठाना चाहिए। हमें इंटरनेट के बारे में क्यों चिंता करनी चाहिए?
हम अपने देश के बारे में चिंता करेंगे। हम यह नहीं कह सकते कि हमारे पास तकनीक नहीं है,जिससे ऑनलाइन अपराधों की उत्पत्ति या मूल को ट्रैक नहीं कर सकें या निपट सकें। यदि ऐसा करने के लिए जनक या आरंभक के पास तकनीक है, तो हमारे पास इसका मुकाबला करने और प्रवर्तक या जनक को ट्रैक करने की तकनीक है या उनसे निपटने की तकनीक है।''
मामले का विवरण-
केस नंबर-सीआरएल.ओपी नंबर 34166/2019
कोरम-न्यायमूर्ति एम. ढंडापानी
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें