मद्रास हाईकोर्ट ने बांध सुरक्षा अधिनियम की शक्तियों को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा

LiveLaw News Network

11 Jan 2022 7:33 AM GMT

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के उल्लंघन के रूप में हाल ही में अधिनियमित बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया।

    एक्टिंग चीफ जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस पीडी औदिकेसवालु की पीठ ने मामले में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए एएसजी आर. शंकरनारायणन द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए भारत संघ को तीन सप्ताह का समय दिया।

    मयिलादुथुराई से द्रमुक सांसद एस. रामलिंगम ने यह याचिका दायर करते हुए कहा कि केंद्र विवादित कानून के माध्यम से राज्य सरकार की शक्तियों को हड़पता है और संघीय ढांचे को बिगाड़ता है। पिछले सप्ताह वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने इस मामले का उल्लेख न्यायालय के समक्ष किया था।

    वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि संसद में कानून बनाने के लिए विधायी क्षमता का अभाव है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत सूची II में प्रविष्टि 17 का अर्थ है- जल, अर्थात जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकासी और तटबंध, जल भंडारण और जल शक्ति सूची की प्रविष्टि 56 के प्रावधानों के अधीन है।

    इस प्रकार, यह याचिकाकर्ता का मामला है कि संसद इस विषय पर कानून बनाने में अक्षम है।

    वकील ने कहा कि चुनौती दिए गए कानून के मूल और सार में बांध के अधिरचना पर नियंत्रण शामिल है, अर्थात जिस भूमि पर इसे बनाया गया उसके साथ-साथ बांध के संचालन के साथ-साथ प्रवेश 17 सूची II के विपरीत है।

    विल्सन ने यह भी अनुरोध किया कि जब तक रिट याचिका का निपटारा नहीं हो जाता तब तक केंद्र को राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा समिति का गठन करने से बचना चाहिए।

    पीठ ने जब पूछा कि क्या ऐसे प्राधिकरण पहले ही गठित किए जा चुके हैं तो एएसजी आर. शंकरनारायणन ने अदालत को सूचित किया कि यह अभी तक नहीं किया गया। पीठ ने जवाबी हलफनामा दायर किए जाने तक उस पहलू पर फैसला नहीं लेने को कहा।

    पृष्ठभूमि

    विवादित बांध सुरक्षा अधिनियम 14 दिसंबर को राजपत्र में अधिसूचित किया गया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के घोर उल्लंघन के लिए लगाए गए अधिनियम को 'गैर-कानूनी' और 'शुरू से शून्य' करार देते हुए डीएमके सांसद की याचिका में उन अन्य आधारों का भी उल्लेख किया गया है जिनके तहत चुनौती जारी रहेगी।

    याचिकाकर्ता का कहना है कि आक्षेपित अधिनियम जो केंद्र सरकार को 'निर्दिष्ट बांधों' को नियंत्रित करने की अनुमति देता है, राज्य सरकार की शक्तियों को हड़पता है और संघीय ढांचे में गड़बड़ करता है।

    याचिका में मुख्य रूप से आरोप लगाया गया कि आक्षेपित अधिनियम संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत राज्य सूची (सूची- II) की प्रविष्टि 17 के अनुरूप नहीं है। प्रविष्टि 17 के तहत राज्यों के पास सूची I की प्रविष्टि 56 के प्रावधानों के अधीन "जल, जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकासी और तटबंध, जल भंडारण और जल शक्ति" पर कानून बनाने का अधिकार है।

    सूची I की प्रविष्टि 56, सूची II की प्रविष्टि 17 में उल्लिखित एकमात्र अपवाद, 'अंतर-राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के विनियमन और विकास ...' से संबंधित है। याचिकाकर्ता यह भी प्रस्तुत करता है कि जहां तक ​​बांधों के संचालन का संबंध है, सूची II से प्रविष्टि 18 और प्रविष्टि 35 भी राज्य सरकार के पक्ष में हैं।

    याचिकाकर्ता का तर्क है कि चार प्रविष्टियों को एक साथ पढ़ने से पता चलता है कि राज्य के पास बांधों, तटबंधों और अन्य प्रकार की जल भंडारण इकाइयों के संबंध में या राज्य में या उसके कब्जे में निहित कार्यों, भूमि और भवनों के संबंध में भूमि पर अधिकार सहित विशेष शक्ति है।

    केस शीर्षक: एस.रामलिंगम बनाम भारत संघ और अन्य

    केस नंबर: डब्ल्यूपी/166/2022 (पीआईएल)

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