मुवक्किल के निर्देश पर पेशेवर रूप से काम करने वाले वकील को मानहानि के अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता : मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

2 Oct 2020 10:43 AM GMT

  • मुवक्किल के निर्देश पर पेशेवर रूप से काम करने वाले वकील को मानहानि के अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता : मद्रास हाईकोर्ट

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि अपने मुवक्किल के निर्देश के अनुसार पेशेवर रूप से काम करने वाले वकील को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 के तहत मानहानि के अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि निर्देश के प्रतिकूल कदम उठाये जाने का उसके खिलाफ लगाया गया आरोप स्थापित नहीं हो जाता।

    इस मामले में, एक वकील ने शिकायतकर्ता को हटाने एवं इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 की धारा 27 के तहत अन्य रेजॉल्यूशन प्रोफेशनल की नियुक्ति की मांग को लेकर ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) ओर से राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण, चेन्नई के समक्ष अर्जी लगायी थी। उसके बाद वकील और ऋणदाताओं की समिति के खिलाफ एक आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया था कि अर्जी में दिये गये बयान मानहानि वाले थे। वकील और अन्य ने उनके खिलाफ दायर शिकायत को निरस्त करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    न्यायमूर्ति जी के इलंथिरैयान ने 'आयशा बी बनाम पीरखान साहिब, एआईआर 1954 मद्रास 741' के मामले में दिये गये एक फैसले का हवाला देते हुए कहा :

    "यह व्यवस्था दी गयी है कि वकील एक अधिवक्ता होता है जो दूसरे की ओर से बहस करता है। स्वाभाविक रूप से मुवक्किल जो बताता है, वकील के पास उसकी सत्यता या असत्यता के परीक्षण का अवसर नहीं होता है। इसलिए किसी भी वकील को उसके मुवक्किल से मिले दिशानिर्देश को लेकर कभी भी मानहानि के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि यदि यह कहा जाता है कि वकील का काम है कि वह दिशानिर्देशों पर सही तरीके से कार्य करे और उसका जो भी परिणाम होगा उसके लिए वकील जिम्मेदार होगा, कोई और नहीं, तो यह कहना वकील के विशेषाधिकार और उसके कार्य के दायरे को परिभाषित करने वाले सभी फैसलों के खिलाफ होगा ।"

    कोर्ट ने 'अरुण ठाकुर बनाम छत्तीसगढ़ सरकार' मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के उस फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि

    अपने मुवक्किल के निर्देश के अनुसार पेशेवर रूप से काम करने वाले वकील को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 के तहत मानहानि के अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि दिशानिर्देश के प्रतिकूल कदम उठाये जाने का उसके खिलाफ लगाया गया आरोप स्थापित नहीं हो जाता। कोर्ट ने कहा :

    "सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया और विभिन्न हाईकोर्ट ने भी बार-बार कहा है कि अपने मुवक्किल के दिशानिर्देशों के अनुसार पेशेवर रूप से काम करने वाले वकील को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 के तहत मानहानि के अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि दिशानिर्देश के प्रतिकूल कदम उठाये जाने का उसके खिलाफ लगाया गया आरोप स्थापित नहीं हो जाता।"

    कोर्ट ने उसके बाद यह कहते हुए वकील एवं अन्य के खिलाफ शिकायत निरस्त कर दी कि ऋणदाताओं की समिति की ओर से वकील द्वारा दायर अर्जी में लगाये गये आरोप मानहानि वाले नहीं हैं।

    केस का नाम : एम. एल. गणेश बनाम वी. वेंकट शिव कुमार

    केस नंबर : क्रिमिनल ओ. पी. नंबर 4669 एवं 5115 / 2020

    कोरम : न्यायमूर्ति जी के इलंथिरैयान

    वकील : एडवोकेट एस. अरुण कुमार

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