एंटी-सीएए प्रोटेस्ट के लिए अनुमति देने से मना करने वाले पुलिस के आदेश को मद्रास हाईकोर्ट ने रद्द किया

LiveLaw News Network

20 March 2020 6:46 AM GMT

  • एंटी-सीएए प्रोटेस्ट के लिए अनुमति देने से मना करने वाले पुलिस के आदेश को मद्रास हाईकोर्ट ने रद्द किया

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक, त्रिची (ग्रामीण) द्वारा पारित उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के खिलाफ सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

    न्यायमूर्ति जी. आर .स्वामीनाथन, जिन्होंने यह आदेश पारित किया। हालांकि उन्होंने COVID 19 महामारी के मद्देनजर सरकार की तरफ से जारी किए गए निषेधात्मक आदेशों पर ध्यान देते हुए याचिकाकर्ताओं को प्रदर्शन की अनुमति देने से इंकार कर दिया है।

    न्यायमूर्ति जी. आर .स्वामीनाथन ने कहा,

    ''इसलिए, उक्त आदेश को रद्द करते हुए भी, मैं 20 मार्च 2020 को याचिका में उल्लेखित कार्यक्रम की अनुमति देने के लिए पहले प्रतिवादी को निर्देशित करने की स्थिति में नहीं हूं। नोवल कोरोनो वायरस महामारी के चलते सरकार द्वारा जारी प्रतिबंध को हटाने के तुरंत बाद क्षेत्र का संबंधित उप पुलिस अधीक्षक याचिका में उल्लेखित स्थल पर इस आयोजन की अनुमति देने की कार्यवाही शुरू करें।"

    न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन ने हाल ही में न्यायमूर्ति पी. डी.देसाई मेमोरियल लेक्चर में सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति डी .वाई. चंद्रचूड़ द्वारा दिए गए भाषण का उल्लेख किया, जहां उन्होंने लोकतंत्र के विकास में असंतोष के महत्व के बारे में बात की थी। इसी तरह का भाषण एससीबीए व्याख्यान श्रृंखला में न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता द्वारा दिया गया था। इस भाषण को भी निर्णय में संदर्भित किया गया है।

    न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने अपने निर्णय में कहा कि

    ''सार्वजनिक बैठक आयोजित करने का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 19 (1) (बी) के तहत मिला है। ये प्रावधान सभी नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बिना हथियार के शांति से इकट्ठा होने का अधिकार देते हैं।''

    इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले (1973) 1 एससीसी 277 (हिमत लाल के. शाह बनाम पुलिस आयुक्त) का भी हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि सार्वजनिक बैठक आयोजित करने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) ( बी) के तहत आता है और राज्य अनुचित प्रतिबंध नहीं लगा सकता है।

    पीठ ने कहा कि

    ''जब मौलिक अधिकारों को बनाए रखने की बात आती है, तो यह स्थानीय प्रशासन का कर्तव्य है कि वह इसकी सहायता के लिए खड़ा हो। यदि कोई कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होती है, तो उससे उचित तरीके से निपटा जाना चाहिए। मौलिक अधिकारों का हनन करते हुए ,पुलिस को आसान विकल्प नहीं चुनना चाहिए।''




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