फास्ट टैग होल्डर्स को विशेष छूट देने के मामले को दी चुनौती, मद्रास हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस

LiveLaw News Network

11 March 2020 10:48 AM GMT

  • फास्ट टैग होल्डर्स को विशेष छूट देने के मामले को दी चुनौती, मद्रास हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को भारत संघ और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को एक याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में फास्ट टैग के उपयोगकर्ताओं को विशेष छूट देने के मामले को चुनौती दी गई है।

    15 जनवरी, 2020 को जारी किए गए एक परिपत्र या सर्कुलर को इस याचिका में चुनौती दी गई है। इस सर्कुलर के तहत एनएचएआई ने शुल्क प्लाजा पर दी जाने वाली छूटों को लागू किया है जैसे कि वापसी किराया छूट और स्थानीय छूट। परंतु यह छूट केवल फास्ट टैग के माध्यम से किए गए भुगतानों पर ही लागू होंगी।

    इस परिपत्र में कहा गया है,

    ''15 जनवरी, 2020 से नकद या किसी अन्य तरीके से टोल का भुगतान करने पर वापसी यात्रा की कोई छूट प्रदान नहीं की जाएगी। इसी तरह, सभी स्थानीय या लोकल छूटों को कंसेसियनार/टोल प्लाजा ऑपरेटरों को 15 जनवरी 2020 से केवल फास्ट टैग के जरिए ही उपलब्ध कराया जाएगा।''

    याचिकाकर्ता ने इसे फास्ट टैग डिवाइस नहीं रखने वाले वाहनों और फास्ट टैग डिवाइस वाले वाहनों के बीच भेदभाव बताते हुए इस परिपत्र को चुनौती दी है।

    उन्होंने तर्क दिया है कि किसी विशेष प्रकार के भुगतान के लिए किसी छूट को प्रतिबंधित करने के लिए एक परिपत्र जारी करना एक कार्यकारी कार्रवाई थी, जो किसी भी कानून द्वारा समर्थित नहीं है।

    मुख्य रूप से, राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों और संग्रह का निर्धारण) नियम, 2008 के नियम 9 के साथ-साथ राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क ( दरों और संग्रह का निर्धारण ) संशोधन नियम, 2016 ,उन मामलों में छूट प्रदान करते हैं जब प्लाजा को पार करने के लिए कई यात्राएं की जाती हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि भुगतान किस तरीके से किया गया है, इसलिए तर्क दिया गया कि प्रतिवादी केवल फास्ट टैग के उपयोगकर्ताओं को एक परिपत्र के माध्यम से छूट प्रदान नहीं कर सकता है, जब वैधानिक बल वाले नियमों में इस तरह का कोई भेदभाव नहीं किया गया है।

    याचिकाकर्ता ने दलील दी कि

    ''यदि कोई कार्यकारी कार्रवाई किसी भी व्यक्ति के लिए पूर्वाग्रही है, तो वह आवश्यक रूप से एक कानून द्वारा समर्थित होनी चाहिए ... सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति नकद भुगतान करता है, उसे उस छूट से वंचित नहीं किया जा सकता है,जब रूल्स 2008 के नियम 9 और रूल्स 2016 के तहत इस तरह की छूट प्रदान की गई हो।''

    याचिकाकर्ता को सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि 2016 के नियमों के तहत फास्ट टैग को लागू करने के बाद भी, राष्ट्रीय राजमार्ग का एक उपयोगकर्ता ,जो कई बार शुल्क प्लाजा को पार करता था, वह छूट का हकदार था, चाहे भुगतान का तरीका नकद था या फास्ट टैग। हालांकि, चार साल बाद, केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी करके यह कह दिया या प्रतिबंधित कर दिया कि छूट का अधिकार सिर्फ उन्हीं वाहनों को मिलेगा,जिनमें फास्ट टैग लगे हैं।

    सरकार के उक्त कदम के बारे में अपनी शंकाओं को रोकते हुए, मुख्य न्यायाधीश ए.पी शाह और न्यायमूर्ति सुब्रमणियम प्रसाद की खंडपीठ ने इस न्यायिक परिपत्र की वैधता की जांच करने का फैसला किया है। जिसमें केवल फैस्ट टैग के उपयोगकर्ताओं को छूट के देने के मामले ही ही जांच की जाएगी या विचार किया जाएगा।

    पीठ ने कहा कि

    ''यह माना गया है कि परिपत्र, वैधानिक बल वाले नियमों में संशोधन नहीं कर सकते हैं। इसी तरह, छूट देने या उन्हें वापस लेने की शक्ति सामान्य रूप से राज्य के अधिकार क्षेत्र में है। वहीं, यदि कार्यकारी निर्देश नियमों के विपरीत हैं, तो नियम प्रबल होंगे न कि कार्यकारी निर्देश। इसलिए अब हम इस बात की जांच करेंगे कि क्या सरकार द्वारा जारी किया गया सर्कुलर उस छूट को सीमित कर सकता है जो नकद देकर शुल्क प्लाजा के उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध थी और क्या इस नुकसान को वापस लिया जा सकता है।''

    अदालत ने नोटिस जारी करते हुए भारतीय संघ और एनएचएआई,दोनों को एक सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है,जिसमें निम्नलिखित सवालों के जवाब देने को कहा गया है।

    (1) क्या परिपत्र दिनांक 15 जनवरी 2020 (यहां रिट याचिका में लगाया गया है) रूल्स 2016 के नियम 9 के संशोधन का प्रभाव है।

    (2) यदि उत्तर हां है, तो क्या यह परिपत्र नियम का अल्ट्रा वायर्स या शक्ति से बाहर नहीं है।

    (3) यदि धारा 6 के तहत निर्देश के स्वरूप में परिपत्र जारी हो सकता है, तो क्या ऐसा निर्देश जारी किया जा सकता है, जो स्वयं संशोधित नियम को प्रभावित करता हो।

    इस मामले की अगली सुनवाई 30 मार्च को होगी।

    मामले का विवरण-

    केस का शीर्षक- पी सरवनन बनाम भारत संघ

    केस नंबर-डब्ल्यूपी नंबर 2472/2020

    कोरम- मुख्य न्यायाधीश ए.पी शाह और न्यायमूर्ति सुब्रमणियम प्रसाद

    प्रतिनिधित्व-एडवोकेट ए.मोहम्मद इस्माइल (याचिकाकर्ता के लिए)व भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल जी. कार्तिकेयन (प्रतिवादियों के लिए)


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करेंं




    Next Story