ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 के तहत कार्यवाही की सूचना एक अनिवार्य आवश्यकता : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
1 Aug 2022 11:24 AM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि हाईकोर्ट के लिए ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 के तहत अर्जी का नोटिस जारी करना अनिवार्य है और इसका पालन न करने से मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए पूरी कार्यवाही प्रभावित होगी।
जस्टिस आनंद पाठक की पीठ एक आदेश के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके द्वारा धारा 11 (6) के तहत अर्जी की अनुमति दी गई थी और एक मध्यस्थ नियुक्त किया गया था।
कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 11 के तहत कार्यवाही प्रकृति में न्यायिक है, इसलिए सुनवाई का अवसर दोनों पक्षों को समान रूप से दिया जाना चाहिए।
तथ्य
पक्षों ने वर्ष 2015 में एक समझौता किया, जिसके तहत प्रतिवादी को हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के परिसर में स्थापित करने के लिए सीसीटीवी कैमरों की आपूर्ति करनी थी।
याचिकाकर्ता ने कैमरों को घटिया गुणवत्ता का पाया, इस प्रकार, उसने प्रतिवादी को एक वर्ष की अवधि के लिए कालीसूची में डाल दिया था। प्रतिवादी ने ब्लैकलिस्टिंग आदेश के खिलाफ एक रिट याचिका दायर की, जिसे हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था और उस आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी गई थी, उसके बाद, प्रतिवादी ने एक एसएलपी दायर की, जो प्रतिवादी को याचिकाकर्ता/सक्षम प्राधिकारी के सक्षम एक नया अभ्यावेदन देने की स्वतंत्रता के साथ खारिज कर दिया गया।
फिर से, प्रतिवादी के अभ्यावेदन को याचिकाकर्ता द्वारा खारिज कर दिया गया और प्रतिवादी ने एक रिट याचिका में याचिकाकर्ता के निर्णय को चुनौती दी, जिसे प्रतिवादी को समझौते के तहत उपलब्ध सुलह/मध्यस्थता खंड का लाभ उठाने की स्वतंत्रता देते हुए खारिज कर दिया गया था।
इसके बाद, प्रतिवादी ने मध्यस्थता का नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ता से मध्यस्थ नियुक्त करने का अनुरोध किया। प्रतिवादी के अनुरोध को याचिकाकर्ता ने ठुकरा दिया, इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 (6) के तहत कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाईकोर्ट ने ए एंड सी अधिनियम की धारा 11(6) के तहत कार्यवाही का नोटिस जारी नहीं किया, हालांकि, आक्षेपित आदेश पारित करने के समय एक सरकारी वकील अदालत में मौजूद था।
प्रतिवादी ने आक्षेपित आदेश के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका दायर की।
पार्टियों की दलीलें
याचिकाकर्ता ने आक्षेपित आदेश को निम्नलिखित बिंदुओं पर चुनौती दी:
1. याचिकाकर्ता को कार्यवाही से संबंधित कोई नोटिस नहीं दिया गया
2. सरकार ने प्रतिवादी की याचिका पर कोई जवाब दाखिल नहीं किया और आक्षेपित आदेश पारित करते समय उसकी आपत्तियां भी कोर्ट के समक्ष नहीं थीं।
3. ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 के तहत कार्यवाही एक न्यायिक कार्यवाही है; इसलिए दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
4. म.प्र. हाईकोर्ट नियमावली एवं आदेश, 2008 के अध्याय XIII नियम 8 में प्रावधान है कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले सरकार को नोटिस देना आवश्यक है।
5. म.प्र. मध्यस्थता नियमावली, 1997 के नियम 4-ए के तहत कोर्ट को विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करने की आवश्यकता है।
6. गुण-दोष के आधार पर भी मामले को मध्यस्थता के लिए नहीं भेजा जा सकता, क्योंकि पार्टियों के बीच समझौता एक 'कार्य अनुबंध' है, इसलिए, मध्य प्रदेश मध्यस्थता अधिकरण अधिनियम, 1983 की धारा 2(1) के अनुसार, मामले को पंचाट न्यायाधिकरण, भोपाल को संदर्भित किया जाना चाहिए था। ।
प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधारों पर याचिकाकर्ता की दलीलों का प्रतिवाद किया:
1. याचिकाकर्ता प्रतिवादी के अनुरोध पर मध्यस्थ नियुक्त करने में विफल रहा, इसलिए, ए एंड सी अधिनियम की धारा 4 के मद्देनजर, उन्होंने मध्यस्थ की नियुक्ति पर आपत्ति करने के अपने अधिकार को छोड़ दिया है। (दातार स्विचगियर बनाम टाटा फाइनेंस, (2000) 8 एससीसी 151 पर भरोसा जताया गया)
2. पार्टियों के बीच समझौता अगर आपूर्ति को आसान बनाने के लिए है, इसलिए मध्य प्रदेश मध्यस्थम अधिकरण अधिनियम, 1983 के तहत प्रतिबंध के संबंध में आपत्ति बिना किसी मेरिट के है।
3. इसके अलावा, सरकारी वकील मामले में पेश हुए।
कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट के लिए ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 के तहत अर्जी का नोटिस जारी करना अनिवार्य है और इसका पालन न करने से मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए पूरी कार्यवाही प्रभावित होगी। इसने कहा कि धारा 11 के तहत कार्यवाही प्रकृति में न्यायिक है, इसलिए सुनवाई का अवसर दोनों पक्षों को समान रूप से दिया जाना चाहिए।
इसके अलावा, कोर्ट ने देखा कि म.प्र. हाईकोर्ट नियमावली और आदेश, 2008 के अध्याय XIII नियम 8 में प्रावधान है कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले सरकार को नोटिस देना आवश्यक है। इसी प्रकार म.प्र. मध्यस्थता नियमावली, 1997 के नियम 4-ए के तहत कोर्ट को विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करने की आवश्यकता है।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था, इसलिए यह याचिकाकर्ता के हित और न्याय के कारण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसलिए, यह आदेश और बाद की कार्यवाही का उल्लंघन करता है। यह माना गया कि दूसरे पक्ष को कार्यवाही की सूचना जारी करने की आवश्यकता का अनुपालन न करना रिकॉर्ड की दृष्टि से स्पष्ट त्रुटि है।
तद्नुसार, कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया और मामले की नए सिरे से सुनवाई बहाल कर दी।
केस टाइटल : मध्य प्रदेश सरकार बनाम निधि इंडस्ट्रीज, पुनर्विचार याचिका संख्या 518/2021
तारीख : 28.07.2022
याचिकाकर्ता के वकील : तेजसिंह महादिक और देवेश शर्मा
प्रतिवादी के वकील : सिद्धार्थ शर्मा
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