COVID-19 : महामारी के कारण काम पर नहीं आ रहे हैं वकील, राजस्थान हाईकोर्ट ने कई मामलों में वकीलों की अनुपस्थिति में दी जमानत

LiveLaw News Network

17 April 2020 10:41 AM GMT

  • COVID-19 : महामारी के कारण काम पर नहीं आ रहे हैं वकील, राजस्थान हाईकोर्ट ने कई मामलों में वकीलों की अनुपस्थिति में दी जमानत

    COVID-19 महामारी के प्रकोप से बनी अभूतपूर्व स्थिति के कारण अधिवक्ताओं की गैर मौजूदगी के बावजूद भी राजस्थान हाईकोर्ट ने यह संकट शुरू होने के बाद से अब तक सौ से अधिक मामलों में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई की है।

    बुधवार को ही हाईकोर्ट ने वकीलों की अनुपस्थिति के बावजूद लगभग 20 जमानत आवेदनों को स्वीकार कर लिया है। जो आईपीसी , एनडीपीएस अधिनियम आदि के तहत दर्ज आपराधिक मामलों से संबंधित थी।

    इन जमानत अर्जियों पर न्यायमूर्ति मनोज कुमार गर्ग की पीठ ने सुनवाई की थी। जिन्होंने खुद रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री का आकलन करने का बीड़ा उठाया और मामले के तथ्यों से संतुष्ट होने के बाद आवेदकों को जमानत पर रिहा कर दिया।

    एक मामले में, जस्टिस गर्ग ने एक आरोपी किशोर की तरफ से दायर रिविजन या पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार किया है। जो आईपीसी की धारा 376 डी के तहत दर्ज सामूहिक बलात्कार के मामले में आरोपी है। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड और विशेष पाॅक्सो कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने जेजे बोर्ड और विशेष पाॅक्सो कोर्ट के आदेशों को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को जमानत दे दी है। साथ ही स्पष्ट किया कि अपराध की गंभीरता किशोर की जमानत याचिका को खारिज करने का आधार नहीं हो सकती है।

    कुछ मामलों में जमानत देते समय इन दलीलों को ध्यान में रखा गया था कि कथित अपराध छोटे-मोटे हैं या आरोपियों को हिरासत में रखने की अब आवश्यक नहीं है और मामले की सुनवाई शुरू होने में अभी ''काफी समय'' लगेगा।

    न्यायमूर्ति गर्ग ने कहा कि-

    ''मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है। साथ ही यह भी देखा गया है कि आरोपी-याचिकाकर्ता लंबे समय से सलाखों के पीछे हैं। वहीं मामले की सुनवाई पूरी होने में अभी काफी समय लगेगा। इसलिए आरोपियों को जमानत का लाभ दिया जाना चाहिए।''

    कोरोना वायरस से उत्पन्न हुए खतरे के कारण राजस्थान हाईकोर्ट वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से केवल अत्यंत आवश्यक मामलों की सुनवाई कर रही है।

    मंगलवार को जारी एक अधिसूचना के माध्यम से हाईकोर्ट ने सूचित किया था कि सभी लंबित जमानत आवेदनों को ''बिना उल्लेख किए'' ही संबंधित पीठों के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा। यह भी निर्णय किया गया था कि यदि कोई वकील किसी मामले में पेश नहीं हो पाता है तो कोई प्रतिकूल आदेश पारित नहीं किया जाएगा। साथ ही कहा था कि लिखित उल्लेख और प्रस्तुतियों पर विचार करते हुए संबंधित मामले को स्थगित कर दिया जाएगा।

    जमानत की याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर भी प्राथमिकता दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देशों में कहा था कि जेलों में बंद कैदियों के वर्ग निर्धारित किए जाए। उसके बाद जिनको पैरोल/अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है,उनको रिहा कर दिया जाए ताकि जब तक महामारी का खतरा कम नहीं हो जाता है,जेलों में भीड़ कम हो सकें।

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