COVID-19: सात साल तक की सजा वाले अपराधों में जेल में बंद कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए-केरल हाईकोर्ट ने दिया आदेश,अंतरिम आदेशों की अवधि 18 मई तक बढ़ाई

LiveLaw News Network

31 March 2020 4:45 AM GMT

  • COVID-19: सात साल तक की सजा वाले अपराधों में जेल में बंद कैदियों को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए-केरल हाईकोर्ट ने दिया आदेश,अंतरिम आदेशों की अवधि 18 मई तक बढ़ाई

    केरल हाईकोर्ट की फुल बेंच ने स्वत संज्ञान लेते हुए उन सभी अंतरिम आदेशों की अवधि 18 मई तक बढ़ा दी है,जो हाईकोर्ट व उसके अधीनस्थ न्यायालयों ने पारित किए थे। इससे पहले, हाईकोर्ट ने सभी अंतरिम आदेशों की अवधि को 14 अप्रैल तक बढ़ा दिया था।

    हालांकि, सोमवार को पारित एक आदेश में न्यायमूर्ति सी.के अब्दुल रहीम, न्यायमूर्ति सी.टी रविकुमार और न्यायमूर्ति राजा विजयराघवन वी की पीठ ने कहा कि-

    ''यह स्पष्ट किया जाता है कि इस न्यायालय के 25 मार्च 2020 के आदेश के तहत अंतरिम आदेशों की अवधि को बढ़ाया गया था। इस अवधि को अब 18 मई 2020 तक बढ़ाया जा रहा है। जो मध्य गर्मियों की छुट्टी के बाद अदालतों को फिर से खोलने की तिथि है। हालांकि जो पक्षकार इस तरह के आदेशों से संतुष्ट न हो,वह इन आदेशों के खिलाफ उपयुक्त कोर्ट में जाने के लिए स्वतंत्र हैं।''

    इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन करते हुए पीठ ने कहा है कि ऐसे सभी कैदियों को 30 अप्रैल तक अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया जाए,जिनको सात साल तक की सजा हुई है या वो ऐसे आरोप में जेल में बंद है,जिसमें उनको सात साल तक की सजा हो सकती है ताकि जेलों की भीड़ को कम किया जा सकें।

    विशेष रूप से, यह आदेश आदतन अपराधियों, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों आदि पर लागू नहीं होगा।

    सोमवार, 23 मार्च को मुख्य न्यायाधीश एस. ए .बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वह 'उच्च स्तरीय कमेटियां' गठित करें,जो कैदियों के उस वर्ग का निर्धारण कर सकें,जिनको चार से छह सप्ताह के लिए पैरोल पर रिहा किया जा सकें। यह भी कहा गया था कि जेलों में भीड़ कम करने के लिए उन कैदियों को पैरोल दी जा सकती है,जिनको सात साल तक की सजा हो चुकी है या जिन पर ऐसे आरोपों के तहत केस चल रहा है,जिनमें सात साल तक की सजा का प्रावधान है।

    इस फैसले के मद्देनजर, हाईकोर्ट ने कहा था कि इस मामले में 'उच्चाधिकार समिति' स्वंय फैसला लें। हालाँकि, किसी भी प्रकार की देरी से बचने के लिए, पूर्ण पीठ या फुल बेंच ने आदेश दिया है कि-

    ''इस अदालत ने राज्य के भीतर की जेलों में बंद सभी अंडर-ट्रायल /रिमांड वाले ऐसे कैदियों को अंतरिम जमानत दे दी है,जो ऐसे आरोपों में बंद है,जिनमें 7 साल या उससे कम की सजा होनी है और साथ में जुर्माना हो भी सकता है। उपरोक्त आदेश उन कैदियों पर लागू नहीं होगा,जो आदतन अपराधी है या जिनको पहले भी सजा हो चुकी है या जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि है। या फिर अंडर-ट्रायल /रिमांड वाले ऐसे कैदी,जिनके खिलाफ एक से ज्यादा केस चल रहे हैं।

    ऊपर दी गई अंतरिम जमानत 30 अप्रैल 2020 तक या सरकार द्वारा लॉक डाउन की अवधि खत्म करने की तिथि तक सीमित रहेगी,इनमें से जो भी तिथि पहले आएगी।

    यदि लॉक डाउन की अवधि 30 अप्रैल 2020 से आगे बढ़ा दी जाती है, तो अंतरिम जमानत उस अवधि तक जारी रहेगी,जितनी अवधि के लिए लाॅकडाउन को बढ़ाया जाएगा। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है अंतरिम जमानत की अवधि समाप्त होने के बाद, रिहा किए गए व्यक्ति को 3 दिनों के भीतर अपने क्षेत्राधिकार की अदालत के समक्ष पेश होना होगा। इस तरह उपस्थित होने के बाद संबंधित अदालत जमानत के लिए उस आरोपी के आवेदन पर विचार करेगी और सभी परिस्थितियों और कारकों पर विचार करने के बाद उचित आदेश पारित करेगी।''

    ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया और बाहर निकलने के बाद इन कैदियों द्वारा जिन नियमों का पालन करना होगा,उसके बारे में अदालत ने कहा कि-

    -संबंधित जेलों के अधीक्षक उन कैदियों की श्रेणी को रिहा करेंगे,जिनको उपरोक्त आदेश के तहत अंतरिम जमानत दी गई है। इन सभी कैदियों को इसके लिए एक घोषणा पत्र देना होगा,जिसमें उनके निवास का स्थान,वहां का टेलिफोन नंबर और उनके परिवार के किसी सदस्य या रिश्तेदार का टेलिफोन नंबर आदि होना चाहिए। साथ ही एक व्यक्तिगत बांड देना होगा,जिसके लिए जमानती की जरूरत नहीं है। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सकें कि जब भी आवश्यक हो वह संबंधित अदालत में या जेल अधीक्षक के समक्ष पेश हो सकें।

    - अंतरिम जमानत पर रिहा होने वाले कैदियों को अपने अधिकार क्षेत्र में पहुंचने के तुरंत बाद अपने निवास स्थान के स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा या सूचित करना होगा।

    जेल प्रशासन ऐसे कैदियों की रिहाई के संबंध में संबंधित पुलिस स्टेशनों को भी सूचित करें। कैदियों द्वारा दी जाने वाली घोषणा या अंडरटेकिंग में यह भी वादा करना होगा कि वे घोषित लॉक डाउन के मद्देनजर सामाजिक दूरी बनाने के संबंध में जारी दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करेंगे। उनको यह भी अंडरटेकिंग देनी होगी कि वह अपने बताए गए स्थान या घर पर ही रहेंगे और वे किसी भी प्रकार की यात्रा या जनता के संपर्क में आने से पूरी तरह से से बचेंगे।

    -हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि उपरोक्त अंतरिम जमानत पर रिहा किए जाने वाला कोई भी व्यक्ति अगर उपरोक्त निर्धारित शर्तों का पालन नहीं करता है तो उसको गिरफ्तार करके संबंधित क्षेत्र की अदालत के समक्ष पेश किया जा सकता है। या वे किसी भी ऐसी गतिविधि में लिप्त पाए जाते हैं जो कानून और व्यवस्था को खतरे में डालती हो या सार्वजनिक व्यवस्था और शांति को भंग करती हो या किसी भी तरह से गवाहों को डराने या प्रभावित करने का काम करते हो, तो भी उनको गिरफ्तार किया जा सकता है।

    ऐसे विचाराधीन/रिमांड वाले कैदी जिनको इस आदेश के तहत अंतरिम जमानत नहीं दी गई है। उनके संबंध में व साथ ही

    ही सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत दायर की जाने वाली वैधानिक जमानत पर विचार करने के लिए न्यायालय ने राज्य के सत्र न्यायाधीशों को अधिकृत किया है।

    ''ई-मेल व विडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से प्रस्तुत किए गए जमानत आवेदनों पर विचार करने और उनका निपटान करने के लिए संबंधित वकील व सरकारी वकील का पक्ष सुना जाए। उसके बाद ही इन आवदेन का निपटारा किया जाए। ऐसे जमानत आवेदनों पर विचार करने और उनको निपटाने के संबंध में इस अदालत की रजिस्ट्री द्वारा तौर-तरीके या प्रक्रिया निर्धारित की जाएगी। जिसे कार्यालय ज्ञापन या आॅफिस मैमोरंडम के माध्यम से सभी अदालतों को भेज दिया जाएगा।''

    हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जमानत आवेदनों सहित अत्यंत आवश्यक मामलों की सुनवाई के लिए जिन डिवीजन बेंच को नियुक्त किया गया है वो लाॅकडाउन की अवधि के दौरान भी मामलों की सुनवाई जारी रखेंगी।




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