बेंगलुरु में असहाय और बेघर लोगों की सहायता न करने के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने बीबीएमपी को लगाई फटकार 

LiveLaw News Network

11 April 2020 6:45 AM GMT

  • बेंगलुरु में असहाय और बेघर लोगों की सहायता न करने के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने बीबीएमपी को लगाई फटकार 

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) को कड़ी फटकार लगाई है क्योंकि बीबीएमपी ने यह पता लगाने के लिए कोई व्यवस्थित प्रयास नहीं किया कि बेंगलुरु शहर में कितने प्रवासी, बेघर और फंसे हुए या असहाय लोग सड़कों पर रह रहे हैं या फ्लाईओवर के नीचे जैसी सार्वजनिक जगहों पर रहने को मजबूर हैं।

    मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति बी.वी नागरथना की खंडपीठ ने इस मामले में दायर याचिकाओं पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की है। पीठ ने 7 अप्रैल को बीबीएमपी को निर्देश दिया था कि वह प्रवासी श्रमिकों के लिए आश्रय गृह स्थापित करने के लिए तत्काल कदम उठाएं। साथ ही कहा था कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इनको सभी सुविधाएं मिल सकें।

    कर्नाटक राज्य कानूनी सहायता सेवा प्राधिकरण (केएसएलएसए) की तरफ से पेश वकील ने दलील दी थी कि बेंगलुरु शहर में प्रवासी श्रमिकों की स्थिति परेशान करने वाली है। जिसके बाद पीठ ने उपरोक्त निर्देश दिए थे। पता चला था कि 2000 से अधिक लोग मजेस्टिक रेलवे स्टेशन और बलपेट सर्कल के आसपास एकत्रित हो गए थे।

    निगम की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता बी.वी.शंकरनारायण राव ने नगर आयुक्त द्वारा हस्ताक्षरित एक रिपोर्ट कोर्ट में पेश की। जिसमें बताया गया था कि केवल 100 लोग मजेस्टिक रेलवे स्टेशन के आसपास एकत्रित हुए थे।

    अदालत ने कहा कि

    ''हमें उम्मीद थी कि कम से कम 7 अप्रैल, 2020 के आदेश के बाद बीबीएमपी का कोई उपयुक्त अधिकारी तुरंत डीएलएसए के सदस्य सचिव से संपर्क करेगा और उस जगह का संयुक्त दौरा करेंगे। परंतु ऐसा नहीं किया गया। इस रिपोर्ट को देखने के बाद हमने पाया है कि इस मामले पर विचार करने के लिए बीबीएमपी ने कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया है।''

    गुरुवार को केएसएलएसए की वकील ने बताया कि सुबह 9.30 बजे, जब वह उस इलाके से गुजर रही थी तो वहां पर लगभग 60 से 70 लोग खड़े थे। इसके अलावा, बुधवार रात को भी डीएलएसए के सदस्य सचिव ने महादेवपुरा फ्लाईओवर का दौरा किया। उसने पाया कि काफी सारे लोग इस फ्लाईओवर के नीचे रह रहे हैं,जिनमें बच्चे भी शामिल हैं। उनमें से कुछ लोगों को एनजीओ की तरफ से खाना मिल रहा है।

    इसके जवाब में बीबीएमपी ने अदालत के समक्ष एक दस्तावेज पेश किया। जिसमें बताया गया था कि प्रवासियों व अन्य के लिए 13 आश्रय गृह बनाए गए हैं और उनमें 652 लोग रह सकते हैं। जबकि वर्तमान में लगभग 451 लोग इन आश्रय घरों में रह रहे हैं।

    हालाँकि, बेंगलुरु शहरी जिले की डीएलएसए के सदस्य सचिव की तरफ से दायर रिपोर्ट के अनुसार बीबीएमपी के 8 जोन हैं। जिनमें से वेस्ट जोन में तीन निर्दिष्ट कैंप बनाए गए है। बाकी किसी जोन में प्रवासियों के लिए बीबीएमपी ने कोई आश्रय गृह स्थापित नहीं किया है।

    केएसएलएसए की वकील ने यह भी बताया कि बीबीएमपी ने जिन 13 शेल्टर होम को स्थापित करने की सूची दी है,उनमें गुड्स शेड रोड पर स्थित एक आश्रय गृह के साथ अन्य 3 आश्रय गृह को भी शामिल किया गया है, जबकि यह सब पहले से ही मौजूद हैं और ये नए आश्रय गृह नहीं हैं।

    जिस पर पीठ ने कहा कि

    ''7 अप्रैल 2020 की रिपोर्ट पर गंभीर संदेह पैदा हो रहा है। क्या प्रवासियों व बेघरों आदि के लिए स्थापित 13 नए आश्रय गृह बीबीएमपी की सीमा के भीतर आते हैं या नहीं, इसलिए बीबीएमपी को निर्देश दिया जाता है कि वह लिखित में एक रिपोर्ट दायर करके इस पहलू को स्पष्ट करें। यह रिपोर्ट 13 अप्रैल 2020 को या उससे पहले दायर कर दी जाए।''

    अदालत ने नागरिक निकाय को यह बात भी याद दिलाई कि पूरे राज्य में कोरोनावायरस के कुल पाॅजिटिव मामलों में से लगभग एक तिहाई मामले बेंगलुरू शहरी जिले के हैं।

    कर्नाटक नगर निगम अधिनियम, 1976 की धारा 58 के खंड (29), (30) और (31) के तहत बीबीएमपी का यह अनिवार्य कर्तव्य बनता है कि वह आपदा से प्रभावित होने वाले नागरिकों की सुरक्षा के लिए उपाय करें।

    इसके अलावा बीबीएमपी के लिए यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सड़कों या सार्वजनिक स्थलों पर रहने के लिए मजबूरर प्रवासी, बेघर और फंसे हुए लोगों के लिए आश्रय घर उपलब्ध कराएं। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये सभी सामाजिक दूरी बनाए रखें।

    पीठ ने बीबीएमपी को सुझाव दिया कि

    "सार्वजनिक परियोजनाओं की साइटों पर काम करने वाले श्रमिकों के संबंध में भी कुछ उपाय किए जाएं। इस तरह की साइट बीबीएमपी की सीमा के अंदर बड़ी संख्या में हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि श्रमिक सुरक्षा उपायों का पालन कर रहे हैं। यहां तक​ कि उक्त अधिनियम 1976 की धारा 58 के खंड (22) के तहत बीबीएमपी का यह अनिवार्य कर्तव्य है कि वह खतरनाक बीमारियों के प्रसार को रोकने और जांचने के लिए कदम उठाएं।

    यह हमारी समझ से बाहर है कि जब तक प्रवासी श्रमिकों, बेघर लोगों और सड़कों पर फंसे लोगों का ध्यान नहीं रखा जाएगा,तब तक कैसे बीबीएमपी उक्त अधिनियम 1976 की धारा 58 के खंड (22), (29), (30) और (31) के तहत अपने वैधानिक और अनिवार्य कर्तव्यों और कार्यों को निभा पाएगा।''

    अदालत ने शहरी विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह बीबीएमपी को उचित निर्देश जारी करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सकें कि राज्य सरकार द्वारा किए गए सभी उपाय बीबीएमपी की सीमा के भीतर कार्यान्वित हो रहे हैं। राज्य सरकार माॅस्क व सैनिटाइजर उपलब्ध कराएं

    केएसएलएसए की वकील ने 8 अप्रैल को एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें बताया गया था कि यादगीर जिले में चार स्थानों पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएवसी) केवल नर्सों और कुछ स्टाफ सदस्यों द्वारा ही संचालित जा रहे हैं। ड्यूटी करने वाले डॉक्टर नदारद थे। उनका प्रशिक्षण चल रहा था। वहीं पीएचसी के कर्मचारियों को कोई माॅस्क और सैनिटाइजर नहीं दिया गया है।

    पीठ ने कहा कि

    ''राज्य सरकार सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि पीएचसी और अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में माॅस्क और सैनिटाइजर जमीनी स्तर पर उपलब्ध कराए जाएं।''

    राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि आकस्मिक योजना के अनुसार अनुमान के आधार पर एन -95 मास्क, ट्रिपल लेयर मास्क, पीपीई किट और सैनिटाइजर खरीदने की आवश्यकता पर काम किया जा रहा है। राज्य सरकार को अनुमान है कि अप्रैल 2020 के अंत तक 10,000 COVID-19 के मामले सामने आ जाएंगे और उसी के अनुसार काम किया जा रहा है।

    पीठ ने कहा कि

    ''एन -95 मास्क, ट्रिपल लेयर मास्क और पीपीई किट की बहुत कमी है। राज्य ने बताया है कि सैनिटाइजर का निर्माण प्रति दिन 50,000 लीटर से भी ज्यादा कर दिया गया है। यदि ऐसा है तो राज्य को यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि चिकित्सा और पैरामेडिकल कर्मचारियों के साथ-साथ नागरिकों में भी इसका समान वितरण व उपलब्ता हो।''

    तब्लीगी जमात के सदस्यों को रखा गया है क्वारनटाइन में

    अपनी लिखित दलीलों में राज्य ने अदालत को बताया कि राज्य में 50 विदेशी तब्लीगी जमात के सदस्यों के बारे में पता लगाया गया है और उन्हें क्वारनटाइन में रखा गया है।

    एजीए ने सुनवाई के दौरान बताया कि अभी यह संख्या 57 हो गई है। इसके अलावा यह भी बताया गया कि इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले 269 भारतीय नागरिकों की पहचान बेंगलुरु सिटी में की गई है और उन्हें क्वाइनटाइन कर दिया गया है। वहीं राज्य के अन्य हिस्सों में कुल 482 ऐसे भारतीय नागरिकों की पहचान की गई है,जो कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। उन सभी को भी संबंधित जिलों में क्वारनटाइन कर दिया गया है।

    इस प्रकार कुल 808 व्यक्तियों की पहचान की गई और उन्हें क्वारनटाइन कर दिया गया है। यह भी बताया गया है कि कर्नाटक राज्य के 581 नागरिक ऐसे हैं ,जो तब्लीगी जमात के सदस्य हैं और इस समय अन्य राज्यों में रह रहे हैं। इसलिए उनके बारे में संबंधित राज्यों को सूचित कर दिया गया है।

    खाद्य सुरक्षाः

    पहचान पत्र के आधार पर वंचित या महरूम व्यक्तियों को राशन प्रदान करने पर विचार करें

    अदालत ने दोहराया कि लाॅकडाउन के कारण बड़े स्तर पर नागरिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं और भोजन से वंचित हैं। इसके अलावा, ऐसे व्यक्तियों की श्रेणी भी हो सकती है जो अपनी दैनिक आय से वंचित हो गए हैं। इसलिए हो सकता है कि इस वर्ग से संबंध रखने वाले कई लोगों के पास राशन कार्ड ही न हो।

    न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि

    ''इसलिए, 30 मार्च 2020 के आदेश के तहत राज्य सरकार को निर्देश दिया गया था कि वह प्रमाणिक पहचान पत्र के आधार पर इस श्रेणी के लोगों को राशन उपलब्ध कराने के सवाल पर तुरंत निर्णय लें।

    साथ ही कहा था कि राज्य सरकार जब इस बारे में निर्णय ले तो इस बात को भी ध्यान में रखें कि हाशिए या अधिकारहीन श्रेणी से संबंध रखने वाले इन लोगों के पास राशन का भुगतान करने के लिए पैसा भी न हो।''

    अदालत ने समाचार पत्र ''द हिंदू'' में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट का हवाला दिया। जिसमें मुख्यमंत्री ने बयान दिया है कि उन लोगों को मुफ्त राशन की आपूर्ति की जाएगी, जिनके पास बीपीएल कार्ड नहीं हैं।

    पीठ ने कहा कि

    ''राज्य सरकार को इस मामले पर तुरंत विचार करना चाहिए। जिसमें पहचान दस्तावेजों के आधार पर राशन पर की आपूर्ति करने और उन लोगों को मुफ्त में राशन की आपूर्ति करने के मुद्दे को संबोधित किया जाए जो राशन के लिए भुगतान नहीं कर सकते हैं परंतु उनके पास बीपीएल कार्ड भी नहीं हैं।''

    Next Story