कर्नाटक विधानसभा में धार्मिक परिवर्तन और अंतर-धार्मिक विवाह पर प्रतिबंध लगाने वाला विधेयक पारित
LiveLaw News Network
23 Dec 2021 7:59 PM IST
कर्नाटक विधानसभा ने गुरुवार को धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का कर्नाटक संरक्षण विधेयक, 2021 पारित किया। यह विधेयक धर्म परिवर्तन और अंतर-धार्मिक विवाह पर प्रतिबंध लगाता है। कांग्रेस और जद (एस) के कड़े विरोध के बीच विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने मंगलवार को विधेयक पेश किया था।
विधेयक में जो धार्मिक रूपांतरण कानून के तहत नहीं किया जाएगा, उसे "गैरकानूनी रूपांतरण" के रूप में परिभाषित किया गया है। विधेयक किसी भी उपहार, संतुष्टि, धन या भौतिक लाभ, नकद, तरह का रोजगार, किसी भी धर्म निकाय द्वारा संचालित एक प्रतिष्ठित स्कूल में मुफ्त शिक्षा; शादी करने का वादा; बेहतर जीवन शैली, दैवीय नाराजगी या अन्यथा के रूप में किसी भी प्रलोभन के प्रस्तावों के माध्यम से किए गए धार्मिक रूपांतरण को गैरकानूनी रूपांतरण घोषित करता है।
बिल एक धर्म से दूसरे धर्म में गलत व्याख्या, जबरदस्ती अनुचित प्रभाव, प्रलोभन या किसी अन्य कपटपूर्ण माध्यम या विवाह द्वारा "गैरकानूनी रूपांतरण" को प्रतिबंधित करता है।
इसके अलावा, बिल कहता है कि "रूपांतरण" का अर्थ अपने धर्म का त्याग करना और दूसरे धर्म को अपनाना है। यदि यह गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह द्वारा किया जाता है तो मान्य नहीं होगा। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति अपने पिछले धर्म में पुन: परिवर्तित होता है तो उसे इस कानून के तहत रूपांतरण नहीं माना जाएगा।
प्रस्तावित कानून उस व्यक्ति पर वैध रूपांतरण के संबंध में 'प्रमाण' प्रस्तुत करने को कहता है जिसने रूपांतरण किया है, जहां ऐसे व्यक्ति पर किसी व्यक्ति द्वारा इस तरह के रूपांतरण की सुविधा प्रदान की गई है।
अंतर-धार्मिक विवाहों पर अंकुश
विधेयक के अनुसार, कोई भी विवाह जो एक धर्म के पुरुष द्वारा दूसरे धर्म की महिला के साथ गैरकानूनी धर्मांतरण या इसके विपरीत शादी से पहले या बाद में खुद को परिवर्तित करके या महिला को पहले या बाद में परिवर्तित करके किया जाता है, ऐसा विवाह शून्य घोषित किया जाएगा।
विधेयक में धर्म रूपांतरण के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गई है। यह भी अधिसूचित किया गया कि धर्मांतरण से पहले एक घोषणा और धर्मांतरण के बारे में पूर्व-रिपोर्ट निर्धारित प्रपत्र में कम से कम साठ दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को एक व्यक्ति द्वारा दी जाएगी, जो अपनी स्वतंत्र सहमति और बिना किसी बल, जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव या प्रलोभन के अपना धर्म परिवर्तित करना चाहता है।
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में गुजरात विरोधी धर्मांतरण कानून में इसी तरह के प्रावधानों को यह घोषित करके कमजोर कर दिया था कि प्रावधान स्वतंत्र सहमति पर अंतर-धार्मिक विवाह में प्रवेश करने वाले पक्षों पर लागू नहीं होंगे।
हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया टिप्पणी की थी कि गुजरात का कानून "किसी व्यक्ति की पसंद के अधिकार सहित विवाह की पेचीदगियों में हस्तक्षेप करता है। इससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है।"
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश द्वारा पारित समान कानूनों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं।
धर्म रूपांतरण की प्रक्रिया
धर्म परिवर्तनकर्ता जो एक धर्म के किसी भी व्यक्ति को दूसरे धर्म में परिवर्तित करने के लिए धर्मांतरण समारोह करता है, वह जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के पद से नीचे के किसी अन्य अधिकारी को इस तरह के रूपांतरण के फॉर्म- II में एक महीने पहले सूचना देगा।
किसी भी मानदंड का उल्लंघन प्रस्तावित रूपांतरण को अवैध और शून्य बनाने का प्रभाव होगा। प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति सजा का भागीदार होगा और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।
बिल धर्मांतरण के बाद पालन की जाने वाली एक प्रक्रिया भी निर्धारित करता है। निर्धारित प्रावधानों के उल्लंघन का प्रभाव उक्त रूपांतरण को अवैध और शून्य बनाने का होगा।
यदि किसी संस्था को किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है तो व्यक्ति, संगठन या संस्था के मामलों के प्रभारी व्यक्ति विधेयक की धारा पांच के तहत निर्धारित दंड और ऐसे संगठन के पंजीकरण के अधीन होगा। इस संबंध में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए निर्देश पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा उस समय लागू किसी भी कानून के तहत संस्था को रद्द किया जा सकता है। राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाली ऐसी संस्था या संगठन को कोई वित्तीय सहायता या अनुदान प्रदान नहीं करेगी।
उद्देश्य और कारण का बयान रेव स्टैनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश और उड़ीसा राज्य (1977) 1 एससीसी 677 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्णय को संदर्भित करता है। इसमें यह माना गया कि अनुच्छेद 25 के तहत किसी किसी व्यक्ति को अपने धर्म परिवर्तित करने के लिए प्रचार करने का अधिकार शामिल नहीं है।
इसमें यह भी कहा गया कि हाल के वर्षों में राज्य ने प्रलोभन, जबरदस्ती, कपटपूर्ण साधनों और सामूहिक धर्मांतरण के माध्यम से धर्मांतरण के कई मामले देखे हैं। इस तरह के मामले "सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी" का कारण बनते हैं। सरकार ने कहा कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए एक कानून आवश्यक है।
सज़ा
कानून में कहा गया कि "जो कोई भी किसी भी नागरिक दायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना विधेयक की धारा तीन के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, वह एक निर्धारित अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा। उस तीन साल से कम नहीं होगी। इस सजा को पांच साल तक बढ़या जा सकता है। साथ ही उक्त व्यक्ति पर जुर्माने भी लगाया जा सकता है, जो पच्चीस हजार रुपये से कम नहीं होगा।"
प्रस्तावित कानून के तहत कोई भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन या कोई अन्य व्यक्ति जो उससे खून, शादी या गोद लेने से संबंधित है, इस तरह के रूपांतरण की पहली सूचना रिपोर्ट दर्ज कर सकता है।
सामूहिक धर्मांतरण के संबंध में अपराधी को कारावास से दंडित किया जाएगा। इस सजा की अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन इसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा जो एक लाख रुपये से कम नहीं होगा।
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