कर्नाटक हाईकोर्ट के कड़े रुख के बाद हुबली बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव वापस लिया
LiveLaw News Network
28 Feb 2020 3:50 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट के कड़े रुख के बाद हुबली बार एसोसिएशन ने 15 फरवाई के अपने उस विवादास्पद प्रस्ताव को वापस ले लिया है जिसमें उसने कहा था कि उसका कोई सदस्य देश द्रोह के मामले में गिरफ़्तार कश्मीरी छात्र की पैरवी नहीं करेगा। इस छात्र पर आरोप है कि उसने सोशल मीडिया में पाकिस्तान-समर्थक वीडियो डाला था।
इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ अपील पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय ओका ने इस प्रस्ताव पर कड़ा रुख़ अपनाया था।
पीठ ने कहा "अगर वक़ील संविधान के अनुच्छेद 22(1) की रक्षा नहीं करेंगे, अगर वे आरोपी की पैरवी नहीं करेंगे तो क़ानूनी व्यवस्था की रक्षा कौन करेगा?"
महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने एसोसिएशन की पैरवी करते हुए 24 फ़रवरी को एक संशोधित प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन न्यायमूर्ति ओका ने इस बात पर ज़ोर दिया कि संघ इस प्रस्ताव को वापस ले।
नवदगी ने अदालत में कहा कि उन्हें एसोसिएशन के अधिकारियों ने बताया है कि पहले जो प्रस्ताव पास किया गया था उसे वापस ले लिया जाएगा।
जस्टिस ओका ने कहा कि अब जब ग़ैरक़ानूनी प्रस्ताव वापस ले लिया गया है, अब एसोसिएशन के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना है कि उन वकीलों के साथ कोई अप्रिय घटना नहीं घटे जो आरोपियों की पैरवी करना चाहते हैं।
नवदगी ने कहा कि हुबली में जो वक़ील आरोपी की पैरवी करना चाहते हैं उनका न केवल स्वागत हुआ बल्कि उन्हें चाय भी पिलाई गई।
पीठ ने कहा कि बार के इस फ़ैसले के बाद भी आरोपी की पैरवी करने वाले वकीलों को पुलिस सुरक्षा जारी अवश्य ही रहेगी।
पीठ ने कहा कि अगर अब कोई वक़ील इसके ख़िलाफ़ अदालत परिसर में नारे लगाते हुए पाए गए तो पुलिस उनका नाम पता करके अदालत को रिपोर्ट करेगी और ऐसे वक़ील के ख़िलाफ़ अदालत आपराधिक अवमानना की कार्रवाई का आदेश दे सकती है।
एसोसिएशन के इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ 24 वकील वक़ील मैत्रेयी कृष्णन की अगुवाई में याचिका दायर करने के लिए गए थे।
इन वकीलों ने कहा कि विरोध कर रहे वक़ील उनपर चिल्ला रहे थे और उन्हें गालियाँ दे रहे थे। वे रजिस्ट्रेशन काउंटर तक भी नहीं जा पाए थे और उन्हें वापस उनके वाहन तक ले आया गया। किसी ने उन पर पीछे से पत्थर भी फेंका।
इसके बाद वक़ील बीटी वेंकटेश ने वकीलों के समूह की ओर से याचिका दायर की। इसमें उन्होंने कहा था कि वे सब कर्नाटक में प्रैक्टिस करने वाले वक़ील हैं। उन्होंने कहा कि वे एक जनहित याचिका डाल रहे हैं क्योंकि यह मामला आम लोगों के हित में है और क़ानूनी प्रतिनिधित्व के मौलिक अधिकार से संबंधित है।
जब बुधवार को अदालत को बताया गया कि वकीलों को याचिका दायर करने से रोका गया तो अदालत ने इसे "पूरी तरह से अतिवाद" बताया था।
न्यायमूर्ति ओका ने कहा,
"हमें उम्मीद है कि एसोसिएशन के अधिकारियों ने जो आश्वासन दिया है उसको देखते हुए पहले जो घटना हुई उसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी।
आरोपी की पैरवी करने वाले वकीलों को अदालत कक्ष में प्रवेश करने दिया जाएगा और बार के सदस्य यह सुनिश्चित करेंगे कि अदालत में स्थिति अन्य दिनों की तरह ही सामान्य बनी रहे।
कोर्ट में हर दिन ज़मानत के लिए कई आवेदन पेश किए जाते हैं। इस मामले में दायर किए गए ज़मानती आवेदन को ज़मानत का सामान्य आवेदन माना जाता है। 24 फ़रवरी के आदेश के बाद स्थिति सुधार गई है। हमारा मानना है कि अगर स्थानीय बार का कोई सदस्य आरोपी की पैरवी करने को सामने आता है तो स्थिति और भी ठीक हो जाएगी।"
अदालत ने जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे वकीलों को ज़मानत की अर्ज़ी पर आरोपी के हस्ताक्षर लेने की अनुमति दें।
इस मामले की अगली सुनवाई अब 6 मार्च को होगी।