आम्रपाली मामला : सुप्रीम कोर्ट ने जेपी मॉर्गन की संपत्ति जब्त करने के आदेश दिए
LiveLaw News Network
14 Jan 2020 11:13 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को जेपी मॉर्गन की भारतीय संपत्तियों को जब्त करने के लिए कहा है जिसने कथित रूप से विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम (फेमा) और एफडीआई मानदंड का उल्लंघन कर घर खरीदारों के पैसे निकालने के लिए आम्रपाली समूह के साथ लेनदेन किया।
ईडी ने कहा है कि इसमें अमेरिका के जेपी मॉर्गन द्वारा फेमा मानदंडों का उल्लंघन पाया गया है और इस संबंध में एक शिकायत भी दर्ज की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को आम्रपाली समूह के सीएमडी अनिल कुमार शर्मा, और दो अन्य निदेशकों, शिव प्रिया और अजय कुमार, जो शीर्ष अदालत के आदेश पर जेल में हैं,
को कथित रूप से धनशोधन अपराध के संबंध में पूछताछ के लिए हिरासत में लेने की अनुमति दी है। इसमें कहा गया है कि केंद्रीय एजेंसी उन्हें तुरंत हिरासत में ले सकती है और एक बार पूछताछ के बाद उन्हें वापस जेल भेजा जा सकता है।
दरअसल जेपी मॉर्गन और आम्रपाली समूह के बीच शेयर सदस्यता समझौते के अनुसार, यूएस की कंपनी ने 20 अक्टूबर 2010 को 85 करोड़ रुपये का निवेश किया था। जेपी मॉर्गन के लाभ पर 75 प्रतिशत के अनुपात में अधिमान्य दावा और 25 प्रतिशत आम्रपाली होम्स प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड और अल्ट्रा होम के प्रवर्तक को मिलेगा।
बाद में जेपी मॉर्गन से दो कंपनियों - मेसर्स नीलकंठ और मेसर्स रुद्राक्ष ने, जो समूह के एक चपरासी और आम्रपाली के वैधानिक ऑडिटर अनिल मित्तल के ऑफिस कर्मी के स्वामित्व वाले शेयरों को वापस खरीद लिया गया।
सोमवार को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ को जेपी मॉर्गन के खिलाफ जांच की निगरानी कर रहे ईडी के संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह ने कहा कि MNC ने ये रुपये वापस अमेरिका को भेज दिए हैं।
पीठ ने कहा,
" उनकी (जेपी मॉर्गन) की भारत में बहुत सारी संपत्तियां हैं। हम चाहते हैं कि आप उनके कार्यालय या कॉरपोरेट संपत्तियों को एक राशि के रूप में अटैच करें। तब वे हमारे पास भागे आएंगे और हम इसे देखेंगे।" सिंह ने कहा कि फर्म के खिलाफ स्थगन प्रक्रिया कानून के अनुसार शुरू हो गई थी।"
दरअसल पिछले साल 2 दिसंबर को ईडी ने शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसके पास प्रथम दृष्टया मल्टी नेशनल फर्म द्वारा फेमा के उल्लंघन के सबूत मिले हैं और आम्रपाली समूह के साथ व्यवहार के संबंध में कंपनी के भारत प्रमुख के बयान दर्ज किए हैं।
हालांकि यह कहा गया था कि जांच चल रही है, प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों का भी उल्लंघन किया गया और उचित कार्रवाई की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने तब ईडी को निर्देश दिया था कि जांच तीन महीने की अवधि के भीतर निष्पक्ष और उचित तरीके से की जानी चाहिए। पिछले साल 23 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने होम बायर्स के भरोसे को तोड़ने के लिए
डिफॉल्टर बिल्डरों पर अपना चाबुक चलाया था और रियल एस्टेट कानून RERA के तहत आम्रपाली ग्रुप के पंजीकरण को रद्द करने का आदेश दिया था। पीठ ने ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच और जेपी मॉर्गन द्वारा फेमा उल्लंघन के आरोप की जांच करने का आदेश दिया था।
"होम बायर्स का पैसा डायवर्ट कर दिया गया है। डायरेक्टर्स ने डमी कंपनियों के निर्माण, प्रोफेशनल फीस वसूलने, फर्जी बिल बनाने, कम कीमत पर फ्लैट बेचने, अत्यधिक दलाली के भुगतान आदि से पैसा डायवर्ट किया। उन्होंने फेमा और एफडीआई मानदंडों का उल्लंघन करते हुए जेपी मॉर्गन से निवेश प्राप्त किया, " पीठ ने कहा था।
इसमें कहा गया था कि जेपी मॉर्गन और आम्रपाली राशि डेवलपर्स डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड की आवश्यकताओं के अनुरूप समूह के इक्विटी शेयरों को अत्यधिक कीमत पर खरीदा गया था और घर खरीदारों के फंड को डायवर्ट कर दिया था।
अदालत ने फोरेंसिक ऑडिटर्स की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए कहा, "जेपी मॉर्गन को भुगतान करने के लिए शेयरों को ओवरलैप किया गया था। इसे घर खरीदारों के पैसे को विदेशों में भेजने के लिए एक उपकरण के रूप में अपनाया गया था।"
यह भी उल्लेख किया गया था कि जेपी मॉर्गन से आम्रपाली राशि के शेयरों को क्रमशः मेसर्स नीलकंठ और मैसर्स रुद्राक्ष, एक चपरासी और एक कार्यालय कर्मी के स्वामित्व वाली शेल कंपनियों द्वारा 140 करोड़ रुपये में खरीदा गया था। "कंपनी अधिनियम के प्रावधानों से बचने के लिए जेपी मॉर्गन के साथ आम्रपाली डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड का रकम का लेनदेन स्पष्ट रूप से हुआ था," कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह स्पष्ट है कि मैसर्स रुद्राक्ष मनी लॉन्ड्रिंग के लिए बनाया गया था क्योंकि इसके दो निदेशकों और शेयरधारकों की कोई आय नहीं थी।