जेजे एक्ट-कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे के खिलाफ कार्यवाही वयस्क आरोपी के साथ नहीं चलाई जा सकतीः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
Manisha Khatri
25 July 2022 8:15 AM GMT
![P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man P&H High Court Dismisses Protection Plea Of Married Woman Residing With Another Man](https://hindi.livelaw.in/h-upload/images/750x450_punjab-and-haryana-hcjpg.jpg)
Punjab & Haryana High Court
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना है कि 'कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे (child in conflict with law)' के खिलाफ उस व्यक्ति के साथ कोई संयुक्त कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती है,जो वयस्क है।
जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज की पीठ ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 (वर्तमान याचिकाकर्ता-आरोपी पर लागू) के संदर्भ में, कोई भी आदेश मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा नहीं बल्कि केवल किशोर न्याय बोर्ड द्वारा पारित किया जा सकता है।
अदालत सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन पर विचार कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता-आरोपी को भगोड़ा अपराधी घोषित करने के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 325 (स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
कथित तौर पर, याचिकाकर्ता व 20-25 व्यक्ति हथियार लेकर कई वाहनों में आए थे और शिकायतकर्ता को घायल कर दिया। याचिकाकर्ता के पास कथित रूप से एक कृपाण थी और उस पर अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर अपराध करने का आरोप है। तथापि, याचिकाकर्ता को किसी प्रकार की क्षति पहुंचाने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था।
जहां तक याचिकाकर्ता को भगोड़ा घोषित करने के आदेश का संबंध है, अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 82 के तहत निर्धारित 30 दिनों की अनिवार्य अवधि समाप्त नहीं हुई थी।
प्रावधान यह निर्धारित करता है कि यदि किसी न्यायालय के पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति जिसके खिलाफ उसके द्वारा वारंट जारी किया गया है, फरार हो गया है या खुद को छुपा रहा है, तो ऐसा न्यायालय एक लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है जिसमें उसे एक निर्दिष्ट स्थान पर और एक निर्दिष्ट समय पर ऐसी घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम से कम तीस दिन की अवधि में उपस्थित होने की आवश्यकता होती है।
यह तथ्यात्मक पहलू विवाद में नहीं है कि उद्घोषणा का प्रकाशन 15.12.2018 को प्रभावी किया गया था और 30 दिनों की अनिवार्य अवधि 21.12.2018 को समाप्त नहीं हुई थी और मामला केवल उक्त कारण से 18.01.2019 तक स्थगित कर दिया गया था जब उक्त आदेश को जारी किया गया था।
कोर्ट ने कहा चूंकि विचाराधीन अपराध कथित रूप से 2013 में किया गया था, इसलिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) के संशोधित प्रावधान लागू थे और याचिकाकर्ता जो अपराध के समय 15 वर्ष से कम उम्र का था, इसलिए वो 'जुवेनाइल इन कन्फ्लिक्ट विद लॉ' की परिभाषा के अंतर्गत आएगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 2 (के), 2 (एल), 2 (पी), 15 और 18 को एक साथ पढ़ने से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि 'कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर' के खिलाफ एक ऐसे व्यक्ति के साथ संयुक्त कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती है,जो वयस्क है। इसलिए, केवल किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के अध्याय II के तहत गठित किशोर न्याय बोर्ड द्वारा ही आदेश पारित किया जा सकता है और उसमें अपेक्षित प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है।
चूंकि, याचिकाकर्ता को 'भगोड़ा व्यक्ति' घोषित करने के आदेश को पारित करते समय उक्त प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया था, इसलिए इसे अधिकार क्षेत्र के बिना जारी किया गया था।
इसे हर दृष्टिकोण से देखते हुए, अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 82(1) के तहत पारित आदेश सीआरपीसी के तहत निर्धारित वैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन करता है। इसके अलावा, उक्त आदेश बिना अधिकार के था क्योंकि याचिकाकर्ता की किशोरावस्था विवाद का विषय नहीं थी।
उपरोक्त को देखते हुए, अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया और उस आदेश को रद्द कर दिया जिसके तहत याचिकाकर्ता को भगोड़ा घोषित किया गया था।
केस टाइटल- साधु सिंह बनाम पंजाब राज्य व अन्य
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