पत्थलगढ़ी आंदोलन का समर्थन करने वाले आदिवासियों के खिलाफ बनता है प्रथम दृष्टया दंगे का मामला : झारखंड हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

11 Aug 2019 11:01 AM GMT

  • पत्थलगढ़ी आंदोलन का समर्थन करने वाले आदिवासियों के खिलाफ बनता है प्रथम दृष्टया दंगे का मामला : झारखंड हाईकोर्ट

    सभी दलीलों पर विचार करने के बाद एक सदस्यीय पीठ ने कहा कि जब कोई आलोचना सरकार के खिलाफ घृणा की हिंसा को जन्म देती है तो यह आईपीसी की धारा 124ए के तहत अपराध के समान है,जो संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत नहीं आता है। कोर्ट ने कहा कि फेसबुक पोस्ट से साफ जाहिर है कि प्रथम दृष्टया मंशा देशद्रोह करने की ही थी।

    झारंखड हाईकोर्ट ने उस प्रथम सूचना रिपोर्ट यानि एफआईआर को रद्द करने या अमान्य घोषित करने से इंकार कर दिया है,जो जनजाती समुदाय के चार सदस्यों के खिलाफ दर्ज की गई थी। इन सभी पर कथित आरोप है कि इन्होंने मुंडा जनजाति समुदाय के 'पत्थलगड़ी' आंदोलन का समर्थन करने के लिए फेसबुक पर दंगे या विद्रोह वाली पोस्ट ड़ाली थी।

    जस्टिस रॉन्गोन मुखोपाध्याय की एक सदस्यीय पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया चारों याचिकाकर्ता-जे.विकास कोरा,धर्म किशोर कुल्लू,एमिल वाल्टर कंडुलना और घनश्याम बिरूली के खिलाफ दंगे या विद्रोह और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने का मामला बनता है।

    पत्थलगड़ी पत्थर की पटिया खड़ी करने की एक आदिवासी परंपरा है,जो उनके गांवों के अधिकार क्षेत्र का निर्धारण करती है। झारखंड के कई आदिवासी गांव जैसे खूंटी,अर्की और मुरहू आदि पिछले दो वर्षो से 'पत्थलगड़ी' की है। मुंडा समुदाय की पारंपरिक प्रथा के आधार पर,संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आदिवासियों को मिली कानूनी गारंटी,पंचायत अधिनियम के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) (पीईएसए) और ग्राम सभा द्वारा बनाए नियम(ग्राम परिषद्) से उत्कीर्ण पत्थर की पट्टियां गांवों के प्रवेश द्वार पर खड़ी कर दी गई थी।

    याचिकाकर्ताओं पर आरोप है कि उन्होंने खूंटी गांव में 26 जून 2017 को मुंडा समुदाय के सदस्यों को उकसाया ताकि वह पुलिस पर हमला कर सके। खूंटी से भाजपा सांसद करिया मुंडा की सुरक्षा में तैनात चार पुलिसकर्मियों का कथित तौर पर गांव वालों ने अपहरण किया। यह अपहरण घाघरा में चल रही ग्राम सभा के दौरान पुलिस द्वारा किए गए हमले का बदला लेने के लिए किया गया था।

    एफआईआर में आरोप है कि यह घटना इसलिए हुई क्योंकि भोलेभाले आदिवासियों को भ्रमित किया गया और उनको 'आदिवासी महासभा' के नाम पर प्रभावित किया गया। ए.सी भारत सरकार कुटुंब परिवार ने सोशल मीडिया के जरिए संविधान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और देश-विरोधी भावना को फैलाया।

    इतना ही नहीं अलग-अलग समुदायों व जातियों के बीच के आपसी समन्वय को भी अशांत किया, इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 121 (भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना),121ए (भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रचना),124ए (दंगा या विद्रोह या देशद्रोह) और सूचना प्रोद्यौगिकी अधिनियम की धारा 66ए व 66 एफ के तहत एफ.आई.आर दर्ज की गई। परिणामस्वरूप आरोपियों ने दंड प्रकिया संहिता की धारा 482 के तहत याचिका दायर करते हुए उनके खिलाफ शुरू हुई कार्यवाही को रद्द करने की मांग की।

    याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वकील प्रेम मार्दी ने दलील दी कि इनके खिलाफ देशद्रोह और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का मामला नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि वह तो सिर्फ आदिवासी समुदायों की समस्याओं पर विचार और वाद-विवाद करने में संलिप्त थे।

    केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य,अरूप भुयन बनाम असम राज्य आदि मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों का हवाला देते हुए मार्दी ने दलील दी कि किसी आसन्न हिंसा को भड़काए बिना

    सरकार के खिलाफ विचार प्रकट करने से देशद्रोह का मामला नहीं बनता है। इस याचिका का विरोध करते हुए अभियोजन ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं ने घृणा,हिंसा और सरकार के खिलाफ अवमानना को उकसाया। अभियोजन ने फेसबुक पर ड़ाली गई कुछ पोस्ट का भी हवाला दिया। जिसमें कहा गया था-''मुझे तुम्हारा आधार कार्ड नहीं चाहिए,मेरी पहचान पत्थलगड़ी है।

    सभी संवैधानिक कदम उठाए जाने चाहिए ताकि इंग्लैंड,यूएसए और यूनाईटेड नेशनल आदिवासियों की आजादी के लिए एक्ट या काम करने के लिए मजबूर हो सके'',''खूंटी गांव सिर्फ प्रथागत या प्रचलित कानून,पीईएसए एक्ट व ग्राम सभा का पालन करना चाहता है।'',''ग्राम सभा के किनारे या तट को पूरे देश में फैला दो|

    सभी दलीलों पर विचार करने के बाद जस्टिस रॉन्गोन मुखोपाध्याय की एक सदस्यीय पीठ ने कहा कि जब कोई आलोचना सरकार के खिलाफ घृणा की हिंसा को जन्म देती है तो यह आईपीसी की धारा 124ए के तहत अपराध के समान है,जो संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत नहीं आता है। कोर्ट ने कहा कि फेसबुक पोस्ट से साफ जाहिर है कि प्रथम दृष्टया मंशा देशद्रोह करने की ही थी।

    फेसबुक पोस्ट का पहले ही हवाला दिया जा चुका है और उनसे मंशा कुछ हद तक जाहिर हो रही है जो याचिकाकर्ताओं के देशद्रोह के काम को दर्शाती है। ग्राम सभा के किनारे या तक को पूरे देश में फैलाना,आजादी के लिए यूनाईटेड नेशनस के समक्ष मुद्दे को उठाना आदि कुछ उचित आधार है जो याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए काफी है। इस तरह की देशद्रोही गतिविधियों ने उपद्रव को भड़काया और पुलिस पार्टी पर हमला करवाया। इन सभी तथ्यों को देखते हुए आईपीसी की धारा 121 व 121ए के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया केस बनता है। पीठ ने इस मामले में दायर याचिका को खारिज कर दिया है।


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