कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को चाइल्ड पोर्नोग्राफी के कथित मामले की जांच करने से पहले प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज नहीं करने के मामले में राज्य सरकार और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में संज्ञेय अपराध की जांच से पहले एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य किया था।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति हेमंत चंदागौदर की खंडपीठ ने कहा, ''ऐसा लगता है कि उनको (पुलिस अधिकारी) आपराधिक कानून का प्राथमिक ज्ञान नहीं है।''
पीठ ने यह अवलोकन पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक नीलमणि एन राजू द्वारा दायर एक हलफनामे पर किया। इस हलफनामे में यह कहा गया कि
''भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट पहले कोर्ट के समक्ष पेश की गई थी। हालांकि, यह इस तथ्य को देखते हुए आश्चर्य है कि कर्नाटक में कहीं भी इस तरह की किसी भी चाइल्ड पोर्नोग्राफी की घटना के आरोप नहीं हैं। कर्नाटक स्टेट इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्शन सोसाइटी ने उन स्थानों की जानकारी दी थी, जिन पर घटनाएँ घटित हुई थी।
सूचना मिलने के तुरंत बाद, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) ने कथित चाइल्ड पोर्नोग्राफी की घटना का पता लगाने और एक दिन के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए सभी पुलिस अधीक्षक को एक पत्र जारी किया था। यह इस आधार पर था कि पुलिस अधीक्षक ने रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी के किसी भी घटना को इंगित नहीं किया गया था।''
पीठ ने कहा कि
''कौन सा कानून शिकायत दर्ज किए बिना संज्ञेय अपराधों में जांच करने की अनुमति देता है। जब एक संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट दर्ज की जाती है तो पुलिस अधिकारियों द्वारा इस तरह की नौटंकी क्यों की जा रही है? इन लोगों को कानून के प्राथमिक सिद्धांतों को सिखाना होगा।''
न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ''ललिता कुमारी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किस तरह के मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की अनुमति है, लेकिन अब इन मामलों में पूरी प्रक्रिया कमजोर हो गई है।''
हलफनामे में यह भी कहा गया है कि ''महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार की रिपोर्ट को सूचना के स्रोत के रूप में हवाला देते हुए एफआईआर को सुधारा गया है, जिसको प्राथमिकी में शामिल किया जाना चाहिए था और आगे की जांच सीआईडी करेगी।''
एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से पेश वकील वेंकटेश पी दलवई ने कहा कि एफआईआर को पहले ही संबंधित मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जा चुका है और बाद में संशोधित किया गया है, जो कानून में अस्पष्ट है।
पीठ ने कहा कि '
'लगता है कि कोई प्राथमिक गलती हुई है।'' न्यायमूर्ति ओका की पीठ ने कहा कि वह एफआईआर और उसके संशोधन पर अपने विचार व्यक्त नहीं करेंगे, क्योंकि इससे बचाव पक्ष को लाभ होगा, लेकिन सुझाव दिया कि ''वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी यहां तक कि आईएएस अधिकारियों को भी ललिता कुमारी के फैसले से अवगत कराया जाना चाहिए। इनके लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि मुंबई में मैंने इसी तरह की पहल की थी।''
जनहित याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के 87 लड़कों और 26 लड़कियों सहित 113 बच्चे पीड़ित थे। इन सभी बच्चों को राज्य द्वारा संचालित घरों में रखा गया है। अदालत ने अब मामले में आगे की सुनवाई के लिए 7 फरवरी की तारीख तय की है। साथ ही राज्य को उपचारात्मक उपायों के साथ कोर्ट आने का निर्देश दिया है।