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प्रवेश के समय भरे गए बान्ड का पालन करते हुए छात्रों को सरकारी अस्पताल में सेवा देनी होगी : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
28 May 2020 4:48 AM GMT
Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child
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MP High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गत सप्ताह अपने एक फ़ैसले में कहा कि विशेषकर सरकारी कॉलेजों में जहां मेडिकल की पीजी की पढ़ाई पर सब्सिडी दी जाती है, पढ़ाई करना मौलिक अधिकार नहीं है। छात्रों के लिए यह ज़रूरी है वे प्रवेश के समय भरे गए बान्ड की शर्तों का पालन करें कि उन्हें सरकारी अस्पतालों में अपनी सेवाएं देनी होंगी।

पीठ ने कहा,

"प्रवेश के समय, बान्ड भरना छात्रों के लिए ज़रूरी होता है क्योंकि उन्हें कम खर्च में शिक्षा दी जाती है। इसलिए उसे बान्ड के अनुरूप विशेष सेवाएं देनी होगी। अगर वह इन शर्तों को निर्दिष्ट समय में पूरा नहीं करता है तो उसे बान्ड की राशि देनी होगी।"

याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया था कि वह डीएमई के निर्देशों के अनुरूप बान्ड की अवधि को बढ़ाए जाने का आदेश दे और कहा कि अगर यह ज़रूरत है कि मां-बाप से अतिरिक्त हलफ़नामे की ज़रूरत है तो याचिकाकर्ता को इसकी अनुमति दी जाए और याचिकाकर्ता के मूल दस्तावेज काउंसलिंग के समय उसे वापस कर दिए जाएं।

अदालत ने कहा कि बान्ड की शर्तों को चुनौती नहीं दी जा सकती है और यह कहीं से भी संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।

छात्र याचिकाकर्ता की ओर से यह कहा गया कि वह प्रतिभाशाली है और जबलपुर के नेताजी सुभाष चंदर बोस मेडिकल कॉलेज से उसने एमबीबीएस किया है। इसके बाद उसने गजरा राजा मेडिकल कॉलेज, ग्वालियर से ऑर्थपीडिक्स में पीजी डिप्लोमा किया और इस बान्ड पर हस्ताक्षर किये कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह सरकारी अस्पताल में एक साल की सेवा देगा और अगर ऐसा नहीं करता है तो वह इसके बदले 8 लाख रुपए का भुगतान करेगा। इसके तहत वह ग्वालियर के इसी कॉलेज में सेवाएं देने के लिए 6.8.2019 को भर्ती हुआ।

इसके बाद पीजी की पढ़ाई के लिए उसने एनईईटी परीक्षा दी और उसे 788वीं रैंक प्राप्त हुई। जीआरएमसी, ग्वालियर के डीन के निर्देश पर वह अपने और अपने पेरेंट्स की ओर से एक हलफ़नामा दायर करने को राज़ी हो गया जो डीएमई ने 25 फ़रवरी 2020 को जारी किया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि उसने यह कहा है कि अगर उसे एमएस ऑर्थपीडिक्स में प्रवेश मिल जाता है तो याचिककर्ता ने बॉंड की जो अवधि प्रस्तावित की है उसको बढ़ाकर दो साल से अधिक किया जा सकता है पर अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

पर प्रतिवादी के वकील ने इसका विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता गलत है। विभिन्न मौक़ों पर भरे गए बॉंड की शर्तों का उसने पालन नहीं किया है और न ही उसने इसके बदले पैसे का भुगतान किया है। अदालत ने याचिकाकर्ता को कोई राहत दिए बिना याचिका को ख़ारिज कर दिया।

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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