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साथ नहीं रहने के आधार पर तलाक लेने वाली महिला भरण पोषण की हकदार है? पढ़िए क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network
28 Sep 2019 9:07 AM GMT
साथ नहीं रहने के आधार पर तलाक लेने वाली महिला भरण पोषण की हकदार है? पढ़िए क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट
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“पति इस आधार पर अपनी पत्नी को तलाक़ नहीं दे सकता कि वह अब उसके साथ नहीं रह रही है और फिर वह उसे गुज़ारे की राशि न दे जिसकी वह हक़दार है…।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी पत्नी को उसके पति ने इस आधार पर तलाक़ दिया है कि पत्नी ने उसे छोड़ दिया है, तो उसे (पत्नी को) दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)की धारा 125 के तहत भरण पोषण की राशि प्राप्त करने का अधिकार है।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस ने इस मामले को किसी बड़ी पीठ को सौंपने से मना कर दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट लगातार यह कहता रहा है और उसका यह मत दंड प्रक्रिया संहिता के पूरी तरह अनुरूप है। पीठ ने इस संदर्भ में वनमाला बनाम एचएम रंगनाथ भट्ट और रोहतास सिंह बनाम रमेंद्री मामलों में दो जजों की पीठ और मनोज कुमार बनाम चम्पा देवी मामले में तीन जजों की पीठ के फ़ैसले का हवाला दिया। पीठ ने कहा,

"दो जजों की पीठों द्वारा दिए गए फ़ैसलों को तीन जजों की पीठ सही ठहरा चुका है और हम किसी बड़ी पीठ को यह मामला नहीं सौंप सकते। वैसे भी इस अदालत ने भी लगातार यही राय व्यक्त की है और जो राय दी गई है वह सीआरपीसी की भावना के अनुरूप है। यह दलील कि तलाकशुदा पत्नी अपने पूर्व पति के साथ रहने के लिए बाध्य है, तर्कहीन है।"

दलील

डॉक्टर स्वपन कुमार बनर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के संदर्भ में वक़ील देबल बनर्जी ने कहा कि कोई भी पत्नी जिसने अपनी पति को छोड़ दिया है वह सीआरपीसी की धारा 125 भरण पोषण की राशि का दावा नहीं कर सकती। उनकी दलील थी कि चूँकि 'पत्नी' के तहत 'तलाकशुदा महिला'भी आती है इसलिए ऐसी महिला जिसे पति को छोड़ देने के कारण तलाक़ दिया गया है, वह भी सीआरपीसी की धारा 125 की उप-धारा 4 के तहत गुज़ारा राशि की मांग नहीं कर सकती है।

उप-धारा 4 में कहा गया है कि किसी भी पत्नी को इस धारा के तहत गुज़ारे की राशि या अंतरिम गुज़ारे की राशि नहीं मिल सकती अगर वह व्यभिचार के तहत या बिना किसी पर्याप्त कारण के अपने पति के साथ रहने से मना कर देती है या अगर दोनों आपसी सहमति से अलग-अलग रह रहे हैं।

पीठ ने इस दलील को ख़ारिज करते हुए कहा -

"…सवाल है कि उप-धारा 4 के प्रावधानों को इस संदर्भ में कैसे पढ़ा जाए जब हम विशेषकर ऐसी महिलाओं की चर्चा करते हैं जिनके ख़िलाफ़ इस आधार पर तलाक़ का आदेश प्राप्त किया जा चुका है कि उन्होंने अपने पति को छोड़ दिया है। एक बार जब शादी का संबंध ख़त्म हो जाता है तो पत्नी पर अपने पूर्व पति के साथ रहने का कोई दबाव नहीं होता। यह बात कि तलाकशुदा पत्नी को पत्नी माना जाए इस बात को अतार्किकता की हद तक खींचा नहीं जा सकता कि तलाकशुदा पत्नी अपने पूर्व पति के साथ रहने के लिए बाध्य है।

पति यह आग्रह नहीं कर सकता कि वह अपनी पत्नी को इसलिए तलाक़ देना चाहता है क्योंकि उसने उसके साथ रहना बंद कर दिया है और उसके बाद वह उसको गुज़ारे की राशि देना बंद कर दे, जबकि उसे यह राशि इस आधार पर मिलना चाहिए कि तलाक़ के बाद भी वह अपने पूर्व पति के साथ नहीं रहना चाहती है।"

यह पत्नी पर निर्भर करता है कि वह गुज़ारे की राशि के लिए कब याचिका दायर करना चाहती है।

इस मामले में पति को इस आधार पर तलाक़ का अधिकार दिया गया कि पत्नी ने उसको छोड़ दिया है। एक साल बाद उसने दुबारा शादी कर ली और इसके बाद ही पत्नी ने गुज़ारे की राशि के लिए आवेदन किया। इस मामले पर पीठ ने कहा,

"हमारी राय में यह पूरी तरह पत्नी पर निर्भर करता है कि वह गुज़ारे की राशि के लिए कब याचिका दायर करती है। हो सकता है कि उस समय तक वह जो भी कमा रही थी वह उसके लिए पर्याप्त रहा होगा और हो सकता है कि वह गुज़ारे की राशि के लिए आवेदन देने के समय तक बातों को ज़्यादा खींचना नहीं चाहती थी। कारण चाहे जो भी रहा हो, पर शादी संबंधी मामलों के लंबित रहने के दौरान अगर उसने इसके लिए आवेदन नहीं दिया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह बाद में इस तरह का आवेदन नहीं दे सकती है।"

पत्नी अपने गुज़ारे लायक़ पर्याप्त राशि कमा रही है इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता है।

इस मामले में एक अन्य मुद्दा यह था कि पत्नी कलकत्ता के जादवपुर विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है और वह एक योग्य आर्किटेक्ट है और इसलिए यह मान लिया जाए कि उसकी आमदनी पर्याप्त है। पीठ ने कहा कि पति ने इस बारे में कोई सबूत पेश नहीं किया है कि पत्नी की आय पर्याप्त है और वह कहां काम कर रही है, जबकि यह सब सबूत उसे ही पेश करना है। इस तरह के किसी भी साक्ष्य के अभाव में इस बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि पत्नी ख़ुद का ख़र्चा चलाने के लिए पर्याप्त राशि कमा रही है।



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