किसी व्यक्ति का एक आपराधिक मामले में शामिल होना उसे गुंडे के रूप में सूचीबद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं, पढ़िए तेलंगाना हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

15 Oct 2019 8:24 AM GMT

  • किसी व्यक्ति का एक आपराधिक मामले में शामिल होना उसे गुंडे के रूप में सूचीबद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं, पढ़िए तेलंगाना हाईकोर्ट का फैसला

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने दोहराया है कि जब एक व्यक्ति के विभिन्न आपराधिक मामलों में संलिप्तता के बीच काफी लंबी अवधि गुजर जाती है तो ऐसे में पुलिस द्वारा इस व्यक्ति को आदतन अपराधी बताते हुए तैयार की गई गुंडा शीट में इसका नाम समाप्त हो जाता है।

    इस मामले में याचिकाकर्ता मीर सेबर अली ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उसने मांग की थी कि संबंधित अधिकारियों द्वारा आंध्र प्रदेश पुलिस मैनुअल स्टैंडिंग आदेश 601 के तहत उसके खिलाफ खोली गई गुंडा लिस्ट शीट (आपराधिक रिकॉर्ड) को बंद न करना गैरकानूनी, मनमानी और अन्यायपूर्ण है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि प्रतिवादी अधिकारियों को निर्देश दिए जाएं कि उसके खिलाफ गुंडा शीट को बंद कर दिया जाए।

    हाईकोर्ट की व्याख्या

    हाईकोर्ट ने कहा कि उल्लेखनीय रूप से याचिकाकर्ता के खिलाफ 19 आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से आखिरी केस वर्ष 2014 में दर्ज किया गया था और उसके बाद उसके खिलाफ कोई नया केस दर्ज नहीं किया गया है। इन परिस्थितियों में, न्यायमूर्ति पी. केशव राव ने विभिन्न फैसलों का आकलन किया, जिनमें किसी के खिलाफ गुंडा शीट खोलने के मापदंड तय किए गए हैं।

    विजय नारायण सिंह बनाम बिहार राज्य एआईआर 1984 एससी 1334 में, सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने माना था कि ''अभिव्यक्ति 'आदतन' का अर्थ होगा 'बार-बार' या 'लगातार' निरंतरता के एक धागे को लागू करना, इसी तरह के कार्य या गतिविधि की पुनरावृत्ति करना या एक साथ जोड़ना.. ''

    आगे बढ़ते हुए, पुट्टागुंटा पासी बनाम पुलिस आयुक्त, विजयवाड़ा, 1998 (3) एएलटी 55 (डी.बी.) मामले में ए.पी हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने आकस्मिक और यांत्रिक तरीके से गुंडा शीट खोलने के मामले में सावधानी बरतने को कहा था। इसमें साफ किया गया था कि एक व्यक्ति का नाम दो अपराधों में शामिल हो जाने या उसके आरोपी बन जाने मात्र से उस व्यक्ति को 'आदतन अपराधी' के रूप में वर्गीकृत करना सही नहीं होगा।

    वर्ष 1999 में, मोहम्मद कुदेवर बनाम पुलिस आयुक्त, हैदराबाद, 1999 (3) एएलडी 60 में, हाईकोर्ट ने यह विचार व्यक्त किया था कि किसी व्यक्ति के खिलाफ गुंडा शीट खोलने से उसकी प्रतिष्ठा पर गंभीर असर पड़ता है, इसलिए अदालत ने कहा था कि जो कानून पुलिस को गुंडा शीट बनाने और निगरानी करने के लिए अधिकृत करता है, उसे अच्छी तरह समझना होगा।

    चूंकि वर्तमान मामले में, पिछले पांच वर्षों से याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया था, न्यायमूर्ति राव ने पुला भास्कर बनाम पुलिस अधीक्षक, वारंगल, 1999 (5) एएलडी 155 में दिए गए निर्णय का उल्लेख किया, जहां यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि-

    ''यदि विचाराधीन कार्य या चूक एक ही तरह के नहीं हैं या भले ही वे एक ही तरह के हों, परंतु जब उन दोनों के किए जाने के बीच लंबी समय अवधि आ जाती है तो उन्हें आदतन के रूप में नहीं माना जा सकता।''

    इसी प्रकार, सनकारा सत्यनारायण बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, 2000 (1) एएलडी(सीआरएल.) 117 (एपी), में अदालत ने लंबे समय तक गुंडा शीट को बनाए रखने पर अपनी चिंता व्यक्त की थी और यह माना था कि इससे केवल किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन ही नहीं होता है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के तहत मिले अन्य मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन होता है।

    इन सभी फैसलों के मद्देनजर, न्यायमूर्ति राव ने कहा कि जब एक बार विभिन्न आपराधिक मामलों में संलिप्तता के बीच एक लंबा अंतराल आ जाता है तो ऐसे व्यक्ति को स्थायी आदेश 601 के तहत 'आदतन अपराधी' नहीं कहा जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    ''उपर्युक्त निर्धारित कानून के प्रकाश में, यह स्पष्ट है कि आपराधिक मामले में उसकी भागीदारी के आधार पर याचिकाकर्ता के नाम पर एक गुंडा शीट खोलना और उसे जारी रखना, उसे पुलिस कंट्रोल आर्डर के आदेश 601 के खंड-ए के तहत आदतन अपराधी मानने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह एक स्वीकार किया गया तथ्य है कि वर्ष 2014 के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई नया केस दर्ज नहीं किया गया हैं। उसके बावजूद, प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ता के नाम पर गुंडा शीट जारी रखी है...इस न्यायालय का मानना है कि याचिकाकर्ता के नाम पर गुंडा शीट और उसके बाद उसको जारी रखना, भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ता को मिले जीवन और स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन है। इसके साथ ही यह इस न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानूनों के विपरीत है।''

    फैसले की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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