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अंतर-धार्मिक विवाह- "बालिग लड़की को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द की

LiveLaw News Network
10 Sep 2021 2:49 AM GMT
अंतर-धार्मिक विवाह- बालिग लड़की को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 366 के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द की
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते एक हिंदू लड़की के कथित अपहरण और उससे शादी करने के लिए आईपीसी की धारा 366 (अपहरण या महिला को उससे शादी करने के लिए मजबूर करना आदि) के तहत एक मुस्लिम के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया।

अदालत महिला (पत्नी/याचिकाकर्ता संख्या 1) और पुरुष (आरोपी/पति/याचिकाकर्ता संख्या 2) द्वारा दायर संयुक्त याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि महिला ने अपने पैतृक घर को अपनी खुद की इच्छा से छोड़ा था और एक बालिग लड़की होने के नाते वह इस्लाम अपनाने और आरोपी के साथ यानी अपनी पसंद की शादी करने के लिए स्वतंत्र थी।

कपल द्वारा यह दावा किया गया कि आईपीसी की धारा 366 के तहत कोई अपराध नहीं बनाया जाएगा क्योंकि याचिकाकर्ता संख्या 1 बालिग लड़की है और प्रतिवादी संख्या 4 द्वारा दर्ज किया गया पूरा आपराधिक मामला कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है।

न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति साधना रानी (ठाकुर) की खंडपीठ ने सलामत अंसारी एंड अन्य बनाम यूपी राज्य एंड अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि अपनी पसंद का व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार चाहे वह किसी भी धर्म का हो, जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए अंतर्निहित है।

न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने महत्वपूर्ण रूप से टिप्पणी की,

"हम यह समझने में विफल हैं कि यदि कानून एक ही लिंग के दो व्यक्तियों को भी शांति से एक साथ रहने की अनुमति देता है तो फिर किसी व्यक्ति और एक परिवार और राज्य को दो बालिग व्यक्तियों के संबंधों पर आपत्ति हो क्यों होती है जो अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं।"

कोर्ट ने इसे देखते हुए वर्तमान मामले में कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट से आईपीसी की धारा 366 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है, क्योंकि दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और याचिकाकर्ता नंबर 1 ने स्पष्ट किया है कि उसने खुद की इच्छा से अपने पिता का घर छोड़ा और याचिकाकर्ता संख्या 2 के साथ स्वेच्छा से रहने का फैसला किया और उसके साथ एक विवाहित महिला के रूप में रह रही है।

इसलिए, रिट याचिका की अनुमति दी गई और आईपीसी की धारा 366, पीएस-तरवा, जिला- आजमगढ़ के तहत 2021 के केस क्राइम नंबर 108 के रूप में दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट दिनांक 19.07.2021 के साथ-साथ सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द कर दिया गया है।

केस का शीर्षक - फिजा @ गुड्डन शिल्पाकर एंड अन्य बनाम यूपी राज्य एंड 3 अन्य

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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