"इंडियन मेजोरिटी एक्ट लगभग 150 साल पुराना कानून; जांच करें कि क्या विवाह की न्यूनतम आयु को संशोधित करने की आवश्यकता है": पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्र, राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

28 July 2021 4:15 AM GMT

  • इंडियन मेजोरिटी एक्ट लगभग 150 साल पुराना कानून; जांच करें कि क्या विवाह की न्यूनतम आयु को संशोधित करने की आवश्यकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्र, राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि इंडियन मेजोरिटी एक्ट एक ऐसा कानून है जो लगभग 150 साल पहले अधिनियमित किया गया था। यदि ऐज ऑफ मेजोरिटी को संशोधित करने की आवश्यकता है तो केंद्र, पंजाब, हरियाणा राज्य और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ प्रशासन इसकी जांच करें। कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया।

    न्यायमूर्ति अमोल रतन सिंह की खंडपीठ ने गृह सचिव/अपर को भी निर्देश दिया है कि मुख्य सचिव द्वारा न्यायालय को सूचित किया जाए कि क्या विवाह की न्यूनतम आयु में संशोधन के संबंध में संशोधन पेश करने का कोई प्रस्ताव है।

    न्यायालय ने इस प्रकार देखते हुए सरकारों को नोटिस जारी किया कि,

    "यह अदालत इस मुद्दे पर जाने के लिए भारत संघ और पंजाब और हरियाणा राज्यों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़ को नोटिस जारी करना आवश्यक मानती है कि विवाह की न्यूनतम आयु को संशोधित करने की आवश्यकता है या नहीं। इंडियन मेजोरिटी एक्ट एक ऐसा कानून है जो लगभग 150 साल पहले (विशिष्ट होने के लिए 146 वर्ष पुराना) अधिनियमित किया गया था और अब किशोरों आमतौर पर अभी भी कभी-कभी बीसवें दशक में छात्र होते हैं, जबकि आमतौर पर उस समय की स्थिति नहीं है जब उक्त अधिनियम लागू किया गया था।"

    संक्षेप में मामला

    हाईकोर्ट का यह निर्देश लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक कपल द्वारा दायर सुरक्षा याचिका पर आया है। 29 जून को मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने हरियाणा राज्य से कपल की उम्र तय करने को कहा था।

    इस निर्देश के तहत राज्य के वकील ने पिछले सप्ताह सुनवाई के दौरान पंचकूला एसीपी द्वारा दायर एक हलफनामा दायर कर पीठ के समक्ष रखा।

    हलफनामे में कहा गया है कि स्कूल के रिकॉर्ड के अनुसार कपल की उम्र 18 साल से अधिक है और लड़का 21 साल से तीन महीने छोटा है और लड़की 19 साल से थोड़ी छोटी है।

    कोर्ट का निर्देश

    कोर्ट ने कपल की उम्र को ध्यान में रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं को वयस्क माना जाना चाहिए (मानसिक रूप से ऐसा है या नहीं, यह पूरी तरह से एक अलग मुद्दा है)।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यदि उन्होंने एक साथ रहने का रास्ता चुना है और कम से कम उनके बीच किसी भी विवाह को स्वीकार नहीं किया है, तो बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के प्रावधानों को लागू करने का कोई सवाल ही नहीं होगा। नतीजतन, इसके द्वारा कुछ भी नहीं किया जा सकता है। अदालत ने प्रतिवादी संख्या 2 और 3 को निर्देश जारी करने के अलावा यह सुनिश्चित करने के लिए जारी रखा कि याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा की जाए।"

    कोर्ट ने अंत में नोटिस जारी करते हुए यह भी नोट किया कि जारी किया गया कुछ ऐसा है जो पूरी तरह से विधायिका के क्षेत्र में है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि चूंकि इन दिनों इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं, इसलिए कम से कम इसके संबंध में सरकारों की प्रतिक्रिया प्राप्त करना आवश्यक है।

    पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा पिछले साल पारित एक फैसले में कहा गया था कि इन दिनों बच्चे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह की परिपक्वता प्राप्त कर लेते हैं, इससे पहले कि वे क़ानून द्वारा उनके लिए निर्धारित विवाह का न्यूनतम आयु पूरी कर लें।

    न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि यह वैज्ञानिक रूप से मान्यता प्राप्त तथ्य है कि लड़कियां समान उम्र के लड़कों की तुलना में अधिक परिपक्व होती हैं और यही कारण है कि न्यूनतम उम्र [विवाह के उद्देश्य से] लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 निर्धारित की गई है।

    केस का शीर्षक - आफताब एंड अन्य बनाम हरियाणा राज्य एंड अन्य।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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