'भारत में विदेशी ड्रग कंपनियां इस तरह मुनाफा नहीं कमा सकतीं': बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- स्थानीय दवाओं को विकल्प के रूप में बढ़ावा क्यों नहीं दिया गया

LiveLaw News Network

7 May 2021 11:33 AM IST

  • भारत में विदेशी ड्रग कंपनियां इस तरह मुनाफा नहीं कमा सकतीं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- स्थानीय दवाओं को विकल्प के रूप में बढ़ावा क्यों नहीं दिया गया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि केंद्र और राज्य सरकार ने COVID-19 रोगियों के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली आयातित दवाओं की जगह स्थानीय दवाओं को विकल्प के रूप में उपयोग के लिए बढ़ावा क्यों नहीं दिया।

    मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि,

    "विदेशी दवाओं को लोकप्रिय बनाने के कारण स्पष्ट हैं। लेकिन अगर हमारे पास विकल्प हैं तो स्थानीय दवाओं का उपयोग क्यों न करें। यह वहीं है। आपको हनुमान की भी आवश्यकता नहीं है। हिंदू महाकाव्य रामायण के मुताबिक कैसे एक स्थानीय औषधी वनस्पति संजीवनी से लक्ष्मण की जान बचाई गई।"

    पीठ ने कहा कि,

    "आवश्यक दवाओं की बिक्री से किसी को भी लाभ की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। आपको आगे बढ़कर सोचना होगा। रखना होगा। भारत में विदेशी ड्रग कंपनियां इस तरह मुनाफा नहीं कमा सकतीं है।"

    पीठ राज्य में COVID-19 प्रबंधन के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता रेजेश इनामदार ने बताया कि किस तरह से मुंबई के बाहर विशेष रूप से टोसिलिजुमैब (Tocilizumab) और फेविपिराविर (Faviparavir) जैसी दवाओं की उपलब्धता नहीं होने के कारण मरीज़ मर रहे हैं।

    एडवोकेट इनाममार ने कहा,

    "सिर्फ रेमडेसिविर की नहीं, टोसिलिजुमैब की भी भारी कमी है। इस दवा की कमी से युवा मर रहे हैं। पुणे के अस्पताल इस दवाई का प्रबंध खुद न करके मरीजों को कह रहे हैं कि बाहर से कैसे भी इस दवाई का प्रबंध करें।"

    अदालत ने कहा कि स्विस कंपनी 'रोचे (Roche)' टोसिलिजुमैब बनाती है और इसका विपणन भारत में सिप्ला (Cipla) द्वारा किया जाता है।

    कोर्ट ने इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे का हवाला दिया, जिसमें केंद्र का दावा है कि स्थानीय रूप में टोसिलिजुमैब की जगह इटुलिजुमैब, डेक्सामेथासोन और मिथाइल प्रेडनिसोलोन का विकल्प के रूप में समान या अधिक प्रभावी हैं। हलफनामे में कहा गया है कि यह एक गलत धारणा है कि केवल टोसिलिजुमैब द्वारा ही COVID -19 रोगियों का इलाज किया जा सकता है।

    केंद्र द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि,

    "यह गंभीर मामलों के लिए COVID-19 के लिए नेशनल क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल के तहत एक जांच चिकित्सा दवा (ऑफ-लेबल) के रूप में सूचीबद्ध है। स्थानीय रूप में टोसिलिजुमैब की जगह इटुलिजुमैब, डेक्सामेथासोन और मिथाइल प्रेडनिसोलोन को विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है यह समान या अधिक प्रभावी और बेहतर हैं। यह एक गलत धारणा है कि केवल टोसिलिजुमैब द्वारा ही COVID -19 रोगियों का इलाज किया जा सकता है। क्योंकि यह एक आयातित दवा है। इससे दवा की उपलब्धता में तीव्र कमी आई है और इसने लोगों में घबराहट पैदा कर हो गई है।"

    पीठ ने कहा कि विदेशी दवाओं के विकल्पों पर केंद्र की प्रस्तुतियां सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में उल्लिखित है।

    एडवोकेट इनामदार ने प्रार्थना की कि यह उन डॉक्टरों को दिया जाना चाहिए जो केवल महंगी आयातित दवाओं पर जोर देते रहते हैं।

    कोर्ट ने कहा कि वह अपने आदेश में विशिष्ट निर्देश जारी करेगी।

    अन्य जिलों में COVID19 रोगियों के इलाज के लिए मुंबई मॉडल अपनाना

    कोर्ट ने मुंबई में कोविड -19 मामलों में आई कमी और बेड की उपलब्धता को देखते हुए सिविक चीफ इकबाल चहल को अन्य नागरिक निकायों के प्रमुखों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस की बैठक लेने और मॉडल के बारे में चर्चा करने के लिए कहा है।

    पीठ ने सुझाव दिया कि चूंकि मुंबई में 12,000 बेड उपलब्ध हैं, इसलिए यह संभवतः पुणे के भार को कुछ हद तक हल्का क सकता है क्योंकि पुणे में कोविड मामलों की संख्या दोगुनी है। मुंबई में 86,000 कोविड सक्रिय मामले हैं और पुणे में 1.4 लाख कोरोना मामले हैं।

    एजी ने पीठ को सूचित किया कि पुणे चिकित्सकीय प्रवास का सामना कर रहा है, जहां अन्य जिलों के लोग इलाज के लिए आ रहे हैं।

    कोर्ट ने पुणे में सक्रिय मामलों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन का सुझाव दिया। एजी ने कहा कि, "सर, लोग हेलमेट तक नहीं पहन रहे हैं मास्क लगाना तो दूर की बात है।"

    कोर्ट से एजी ने लॉकडाउन का आदेश देने का अनुरोध किया।

    चीफ जस्टिस ने कहा कि,

    "हम अपनी सीमाओं को पार नहीं करना चाहते हैं। हम इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पांच शहरों में लॉकडाउन लगाने के लिए दिए गए आदेश और फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस आदेश पर लगाई गई रोक से अवगत हैं।"

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