न्यायिक समीक्षा के अभाव में संविधान के प्रति लोगों का विश्वास कम हो चुका होता : चीफ जस्टिस एनवी रमना

Manisha Khatri

23 July 2022 1:45 PM GMT

  • न्यायिक समीक्षा के अभाव में संविधान के प्रति लोगों का विश्वास कम हो चुका होता : चीफ जस्टिस एनवी रमना

    भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची द्वारा आयोजित जस्टिस एस.बी.सिन्हा स्मृति व्याख्यान, जिसका विषया था- "जज का जीवन" में उद्घाटन भाषण देते हुए कहा कि न्यायिक समीक्षा के अभाव में, भारत के संविधान के प्रति लोगों का विश्वास कम हो चुका होता।

    सीजेआई ने कहा,''यह सुनने को मिलता है कि अनिर्वाचित होने के कारण न्यायाधीशों को विधायी और कार्यकारी क्षेत्र में नहीं जाना चाहिए। लेकिन यह न्यायपालिका पर रखे गए संवैधानिक जिम्मेदारियों की उपेक्षा करता है। विधायी और कार्यकारी कार्यों की न्यायिक समीक्षा, संवैधानिक योजना का एक अभिन्न अंग है। मैं यहां तक कहूंगा कि यह भारतीय संविधान का हृदय और आत्मा है। मेरे विनम्र विचार में, न्यायिक समीक्षा के अभाव में, हमारे संविधान के प्रति लोगों का विश्वास कम हो जाता। संविधान अंततः लोगों के लिए है। न्यायपालिका वह अंग है जो संविधान में प्राण फूंकता है।''

    सीजेआई ने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका व्यापक जनहित में संविधान में कुछ अंतराल को भरने में सफल रही है।

    उन्होंने कहा कि, ''यह न्यायपालिका द्वारा की गई व्याख्या है, जिसने गणतंत्र और लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को कायम रखा है और मजबूत किया है।''

    उन्होंने 'राज्य के सबसे भरोसेमंद अंग' का हिस्सा बनने के लिए आभार व्यक्त करते हुए न्यायाधीशों की सुरक्षा के बारे में चिंता व्यक्त की। आज के समय में, न्यायाधीशों पर बढ़ रहे शारीरिक हमलों के मामलों को देखते हुए उन्होंने माना कि सुरक्षा की आवश्यकता महत्वपूर्ण है।

    ''क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक जज जिसने दशकों तक बेंच पर काम किया है, कठोर अपराधियों को सलाखों के पीछे डाल दिया है, एक बार सेवानिवृत्त होने के बाद, उसके कार्यकाल के साथ मिली सभी सुरक्षा समाप्त हो जाती है? न्यायाधीशों को बिना किसी सुरक्षा या सुरक्षा के आश्वासन के उसी समाज में रहना पड़ता है जिसमें वे लोग रहते हैं,जिनको दोषी ठहराया है।''

    उन्होंने खेद व्यक्त किया कि राजनेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों के विपरीत, न्यायाधीशों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है।

    अपने भाषण में, सीजेआई ने महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि उचित न्यायिक बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करने की आवश्यकता, न्यायिक प्रशासन में मीडिया ट्रायल द्वारा बनाई गई समस्याओं, संविधान संरक्षण में न्यायिक समीक्षा के महत्व, न्यायपालिका की भविष्य की चुनौतियों आदि पर ध्यान दिया।

    उन्होंने कहा कि लोग अक्सर भारतीय न्यायिक प्रणाली के सभी स्तरों पर लंबे समय से लंबित मामलों की शिकायत करते हैं। कई मौकों पर, मैंने लंबित और बैकलॉग के मुद्दों पर प्रकाश डाला है। मैं न्यायाधीशों को उनकी पूरी क्षमता से कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए, फिजिकल और पर्सनल, दोनों तरह के बुनियादी ढांचे को सुधारने की आवश्यकता की दृढ़ता से वकालत करता रहा हूं।

    इस अवसर पर, मैं इस देश में न्यायपालिका के भविष्य के बारे में अपनी चिंताओं को दर्ज करने से नहीं चूकना चाहता हूं। जज के लिए हर केस समान रूप से महत्वपूर्ण होता है। पहले से ही नाजुक न्यायिक ढांचे पर बोझ दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। कुछ जगहों पर बुनियादी ढांचे को बढ़ाने में घुटने के बल चलने वाली प्रतिक्रियाएं हुई हैं। हालांकि,सदी और आगे के लिए एक दीर्घकालिक विजन को छोड़कर, मैंने न्यायपालिका को निकट भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने के लिए किसी भी ठोस योजना के बारे में नहीं सुना है।

    उन्होंने कहा कि न्याय करना कोई आसान जिम्मेदारी नहीं है। यह हर गुजरते दिन के साथ चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। कई बार मीडिया में भी, खासकर सोशल मीडिया पर जजों के खिलाफ ठोस अभियान चलाए जाते हैं। एक अन्य पहलू जो निष्पक्ष कामकाज और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है, वह मीडिया ट्रायल की बढ़ती संख्या हैं। न्यू मीडिया टूल्स में व्यापक विस्तार करने की क्षमता है लेकिन वे सही और गलत, अच्छे और बुरे और असली और नकली के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं। मीडिया ट्रायल मामलों को तय करने में एक मार्गदर्शक कारक नहीं हो सकता है।

    हाल ही में, हम देखते हैं कि मीडिया कंगारू कोर्ट यानी गैरकानूनी अदालतें चला रहा है, कभी-कभी अनुभवी न्यायाधीशों को भी मुद्दों पर फैसला करना मुश्किल हो जाता है। न्याय प्रदान करने से जुड़े मुद्दों पर गैर-सूचित और एजेंडा संचालित बहस लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही है। मीडिया द्वारा प्रचारित किए जा रहे पक्षपातपूर्ण विचार लोगों को प्रभावित कर रहे हैं, लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं और व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस प्रक्रिया में न्याय वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अपनी जिम्मेदारी का उल्लंघन करके और उनसे आगे बढ़कर आप हमारे लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जा रहे हैं।

    प्रिंट मीडिया की अभी भी कुछ हद तक जवाबदेही है। जबकि, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जवाबदेही शून्य होती है क्योंकि जो दिखाता है वह धीरे-धीरे गायब हो जाता हैै। सोशल मीडिया अभी भी बदतर है। उन्होंने कहा मैं मीडिया, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया से जिम्मेदारी से व्यवहार करने का आग्रह करता हूं।

    इस अवसर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने कहा कि वह हमेशा सक्रिय राजनीति में शामिल होना चाहते थे, हालांकि, भाग्य के पास उनके लिए करियर पथ के रूप में अन्य योजनाएं थी।

    उन्होंने बताया कि मेरा जन्म एक गांव के किसान परिवार में हुआ था। अंग्रेजी तब शुरू हुई जब मैं 7वीं या 8वीं कक्षा में था। उस समय 10वीं पास करना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी। बीएससी की डिग्री प्राप्त करने के बाद मेरे पिता द्वारा प्रोत्साहित जाने के चलते मैंने अंततः कानून की डिग्री प्राप्त की।

    मैंने कुछ महीनों के लिए विजयवाड़ा की एक मजिस्ट्रेट अदालत में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। एक बार फिर, मेरे पिता द्वारा प्रोत्साहित किया गया और मैं आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू करने के लिए हैदराबाद चला गया। यह निश्चित रूप से मेरे लिए विश्वास की छलांग थी।

    जब तक मुझे जजशिप का प्रस्ताव मिला, तब तक मैंने एक अच्छी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। मैं कई हाई प्रोफाइल मामलों में तालुक स्तर की अदालतों से सुप्रीम कोर्ट तक में पेश हुआ था। मुझे अपने राज्य का अतिरिक्त महाधिवक्ता भी नियुक्त किया गया था। मैं सक्रिय राजनीति में शामिल होने का इच्छुक था, लेकिन नियति कुछ और ही चाहती थी। किसी ऐसी चीज को छ़ोडने का फैसला करना बिल्कुल भी आसान नहीं था,जिसके लिए मैंने इतनी मेहनत की थी। बार से बेंच तक की यात्रा अक्सर स्वाभाविक नहीं होती है।

    अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि मैं जस्टिस सत्यब्रत सिन्हा को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ व्याख्यान का समापन करना चाहता हूं। जस्टिस सिन्हा का जीवन और उपलब्धियां युवा वकीलों की पीढ़ियों को प्रेरित करें। मैडम उत्पला सिन्हा जस्टिस सिन्हा और परिवार के लिए ताकत का एक मजबूत स्तंभ रही हैं। पूरे समय वह उनका बहुत ख्याल रखती थी। उनके बच्चों की सफलता का पूरा श्रेय मैडम उत्पला सिन्हा को जाता है।

    मैं झारखंड हाईकोर्ट के माननीय मुख्य न्यायाधीश, भाई जस्टिस रवि रंजन को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे चांडिल और नगर उन्तारी में दो नए उप-मंडल न्यायालय परिसरों का उद्घाटन करने का अवसर प्रदान किया।

    मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इन अदालत परिसरों में क्रमशः छह और सात न्यायिक अधिकारी होंगे और ये अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे से लैस हैं। मुझे उम्मीद है कि इससे इन दो उप-मंडलों में लोगों को न्याय दिलाने में मदद मिलेगी।

    उन्होंने कहा जस्टिस एस.बी सिन्हा स्मृति व्याख्यान के आयोजन के लिए मैं प्रो. केशव राव को भी धन्यवाद देता हूं।

    प्रोजेक्ट शिशु के तहत आज छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले बच्चों को मेरी शुभकामनाएं। आप सभी को एक सफल भविष्य के लिए मेरा आशीर्वाद और शुभकामनाएं।

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