Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

मोटर दुर्घटना के मामलों में मृतक पीड़ित के वेतन का आकलन इस तथ्य के आधार पर नहीं किया जा सकता है कि वह एक प्रतिभाशाली छात्र था, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network
17 Aug 2019 6:53 AM GMT
मोटर दुर्घटना के मामलों में मृतक पीड़ित के वेतन का आकलन इस तथ्य के आधार पर नहीं किया जा सकता है कि वह एक प्रतिभाशाली छात्र था,  पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
x

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह कहा है कि केवल इसलिए कि मोटर दुर्घटना के मामले में पीड़ित एक प्रतिभाशाली छात्र था, उसके वेतन को 'एक्सेम्पलरी' (अत्यधिक) नहीं माना जा सकता है। औरंगाबाद पीठ की न्यायमूर्ति विभा कंकानवाड़ी ने रिलायंस जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से अनुमति दी और मुआवजे की राशि को रु 21.90 लाख से घटाकर 15.82 लाख कर दिया। दरअसल बीमाकर्ता ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण द्वारा पारित अवार्ड को चुनौती दी थी।

केस की पृष्ठभूमि

मृतक कृष्णा काबरा, 22 साल का एम.कॉम की पढ़ाई करने वाला एक छात्र था। वह स्वयं मोटरसाइकिल चला रहा था और उसका दोस्त उसके पीछे वाली सीट पर बैठा था। वे 31 दिसंबर 2015 को नगरपून रोड, खेड़गांव, अहमदनगर की यात्रा कर रहे थे। पीछे से एक महिंद्रा बोलेरो ने उन्हें टक्कर मार दी और दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए।

कृष्णा को सिविल अस्पताल, अहमदनगर और फिर नोबेल अस्पताल, अहमदनगर ले जाया गया। उसने इलाज के दौरान 1 जनवरी 2016 को दम तोड़ दिया। बोलेरो वाहन के चालक पर पुलिस द्वारा मुकदमा चलाया गया और दुर्घटना की तारीख को उक्त वाहन का बीमा रिलायंस जनरल इंश्योरेंस के साथ किया गया था।

यह भी पढ़िए किसी संपत्ति का हस्तांतरण सिर्फ इसलिए अवैध नहीं हो सकता, क्योंकि हस्तांतरण संपत्ति पर मुकदमा लंबित रहते किया गया, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

यह दावा अधिकरण के समक्ष कहा गया था कि वह छात्र एक निजी नौकरी कर रहा था और उसे 18,000 रुपये का मासिक वेतन मिल रहा था। वह शेयर खरीदने और बेचने के कारोबार में था और इसके अलावा, उसे हर महीने 3000 रुपये मिल रहे थे। इस प्रकार, उसकी प्रति माह कुल आय रु 21,000 थी। इसलिए, मृतक के माता-पिता ने 55 लाख रुपये के मुआवजे का दावा किया।

ट्रिब्यूनल ने दावा याचिका को आंशिक रूप से अनुमति दी और दोनों बीमाकर्ता और चालक को संयुक्त रूप से मुआवजे के रूप में 22.90 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

अदालत का निर्णय

बीमा कंपनी, रिलायंस की ओर से वी. एन. उपाध्याय पेश हुए और उन्होंने कहा कि इस मामले में अत्यधिक मुआवजा दिया गया है, जबकि कानून में सिर्फ उचित मुआवजे की आवश्यकता है। उपाध्याय ने तर्क दिया कि अधिकरण ने आय के बिंदु पर दावेदारों द्वारा जोड़े गए सबूतों को खारिज कर दिया है और कहा है कि गवाहों के महज़ शब्दों के अलावा, समर्थन के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं लाया गया है जो यह साबित करे कि मृतक को प्रति माह रु 21,000 मिल रहा था।

हालांकि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मृतक एम. कॉम की शिक्षा ले रहा था, यह आयोजित किया गया था कि मृतक के पास प्रति माह रु 21,000 अर्जित करने की क्षमता थी या होती। इस अवलोकन के लिए कोई आधार नहीं था और इसलिए काल्पनिक संख्या के आधार पर की गयी गणना से दावेदारों को अत्यधिक मुआवजा हासिल हो गया है।

मृतक के मासिक वेतन के बारे में दावेदारों की ओर से प्रस्तुति की जांच के बाद न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला-

"इस मामले में दावेदारों द्वारा आय के बिंदु के संबंध में मौखिक साक्ष्य को त्यागने के बाद जो बचा रहता है, वह मात्र अनुमान कार्य ही है जो ट्रिब्यूनल द्वारा किया गया है। बी. कॉम के डिग्री प्रमाण पत्र के रूप में दस्तावेज को पेश किया गया था, जिससे यह प्रतीत होता है कि मृतक, प्रथम श्रेणी में बी.कॉम उत्तीर्ण था। इसमें कोई शक नहीं था, कि वह एम.कॉम में शिक्षा ले रहा था। ऐसी परिस्थिति में जब दावेदार कोई केस लेकर नहीं आए हैं कि उसकी भविष्य में क्या योजनाएं थीं तो एम. कॉम की डिग्री के आधार पर मृतक को क्या हासिल हो सकता था, यह कल्पना करने की आवश्यकता है।

दुर्घटना वर्ष 2015 में हुई है। न्यायालयों को समाज में व्याप्त बेरोजगारी के तथ्य पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। यहां तक कि योग्यतम युवा भी नौकरी पाने में असमर्थ हैं और यदि वे सभी नौकरी प्राप्त करने में सक्षम भी हैं, तो उन्हें कम वेतन से संतुष्ट होना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में, केवल इस आधार पर कि मृतक एक प्रतिभाशाली छात्र था, उसके मासिक वेतन का आकलन 20,000 रुपये के रूप में नहीं किया जा सकता है, लेकिन इस निष्कर्ष पर पहुंचना वाजिब था कि एम. कॉम की उक्त योग्यता के लिए उसे प्रति माह 10,000 रुपये वेतन वाली नौकरी दी जा/मिल सकती थी।"

राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी और अन्य एवं सरला वर्मा और अन्य बनाम दिल्ली परिवहन निगम और अन्य के मामलों में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित मानदंड को देखते हुए, न्यायालय ने यह दावा किया कि दावेदारों के लिए निर्भरता का कुल नुकसान 15,12,000 रुपये था। इसके अलावा रु 15,000, 40,000 और 15,000 को क्रमशः संपत्ति के एस्टेट, कंसोर्टियम के नुकसान और अंतिम संस्कार के खर्चों के लिए निर्धारित किया गया। इस प्रकार, पीठ ने यह निर्धारित किया कि दावेदार, 15,82,000 रुपये का मुआवजा पाने के हकदार हैं।

कोर्ट ने देखा-

"ट्रिब्यूनल द्वारा गणना की गई मृतक की आय, जो कि रु 20,000 प्रति माह की दर से निर्धारित की गयी है, अत्यधिक है और इसलिए इसे सही किये जाने की आवश्यकता है। अपील को आंशिक रूप से अनुमति दी जानी चाहिए।"



Next Story