Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

अवैध रूप से विकसित चिकित्सा संस्थानों को बंद किया जाए : पटना हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
12 Dec 2019 4:45 AM GMT
अवैध रूप से विकसित चिकित्सा संस्थानों को बंद किया जाए : पटना हाईकोर्ट
x

पटना हाईकोर्ट ने उन सभी संस्थानों जैसे कि पैथोलॉजिकल लेबोरेटरीज/ डायग्नोस्टिक सेंटर/ क्लिनिक/नर्सिंग होम्स को बंद करने का निर्देश दिया है, जो बिहार राज्य में अवैध रूप से विस्तारित या विकसित हुए हैं।

मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय की खंडपीठ के एक मौखिक आदेश में कहा कि उपर्युक्त प्रतिष्ठानों या संस्थानों के विस्तार का काम बिहार राज्य में लागू नैदानिक स्थापना अधिनियम, नैदानिक स्थापना (केंद्र सरकार) नियम, 2012/2018 (Clinical Establishment (Central Government) Rules, 2012/2018) और बिहार नैदानिक स्थापना नियम 2013 (Bihar Clinical Establishment Rules 2013) के प्रावधानों के अनुपालन के बिना हो रहा है।

इसके अलावा, अदालत ने देखा कि राज्य द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण लापरवाही वाला रहा है और यह बिहार राज्य में गरीबों को उचित, पूर्ण और सही निदान और उपचार प्राप्त करने में मदद करने के बजाय इन प्रतिष्ठानों का पक्ष लेने के लिए है। अदालत ने यह भी कहा कि अधिकारियों ने इस तरह के प्रतिष्ठानों या संस्थानों को बंद करने के मामले में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला है या कोई स्टैंड नहीं लिया है। अदालत ने अधिकारियों से विधान/नियमों के तहत एक अनिवार्य काउंसिल गठित न करने के बारे में भी सवाल किया।

अदालत ने कहा,

"अनधिकृत पैथोलॉजिकल सेंटर/लैबोरेट्रीज/इंस्टीट्यूशन एंड एस्टेब्लिशमेंट का यह गैरकानूनी चलन शायद मरीजों के दोषपूर्ण या गलत निदान और उपचार का नेतृत्व या मार्गदर्शन कर रहा है या बढ़ावा दे रहा है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य ने कानून के प्रावधानों को लागू करने में कोई कार्रवाई नहीं की है। जबकि राज्य अपने इस कर्तव्य के लिए बाध्य है क्योंकि कानून का एक व्यवस्थित या तय सिद्धांत है कि चिकित्सा स्वास्थ्य का अधिकार, एक संवैधानिक अधिकार है।"

राज्य की तरफ से पेश वकील ने अदालत को सूचित किया कि बिहार स्टेट पैरा मेडिकल काउंसिल की स्थापना के लिए एक निर्णय लिया गया है और यह मामला राज्य मंत्रिमंडल के साथ अनुमोदन या अनुमति के लिए लंबित है। यह भी बताया कि काउंसिल को अनुमोदित होने या अनुमति प्राप्त करने में छह महीने का समय लगेगा।

अदालत ने कहा कि इस बात के लिए कोई कारण नहीं है कि कार्रवाई तुरंत क्यों नहीं की जा सकती है, खासकर जब इस मामले में लोगों का जीवन शामिल है और यह भी कि वर्ष 2010/2012/2018 में बनाए गए अधिनियम और नियमों के प्रावधान अधिनियमित या लागू नहीं हो पाएं है, जबकि अदालत ने पहले ही अधिकारियों को आगाह कर दिया था और उन्हें अगस्त 2018 में आवश्यक कार्यवाही करने का निर्देश दिया था।

न्यायालय ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिया है कि वे बिहार राज्य में सामान्य प्रकाशन या आम जनता को सूचित करते हुए ऐसे सभी अवैध प्रतिष्ठानों को बंद करने का निर्देश देने वाला एक पूर्ण विज्ञापन सभी अखबारों अंग्रेजी और मातृभाषा, दोनों में ही प्रकाशित करें। साथ ही, दोनों प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में व्यापक प्रचार किया जाए और लोगों को केवल ऐसी प्रयोगशालाओं/ संस्थानों में सुविधा प्राप्त करने के लिए कहा जाए जो अधिनियम/ नियमों के तहत गठित प्राधिकारी द्वारा मान्यता प्राप्त हैं।

अदालत ने आदेश दिया है कि संस्थानों या प्रतिष्ठानों को तुरंत बंद कर दिया जाए और इस काम में आदेश को जारी करने की तारीख से एक सप्ताह से ज्यादा का समय न लगे।

केस का विवरण

शीर्षक- इंडियन एसोसिएशन ऑफ पैथोलॉजिस्ट एंड माइक्रोबायोलॉजिस्ट बनाम द स्टेट ऑफ बिहार एंड अदर्स।

केस नंबर- सीडब्ल्यूजेसी नंबर .20444/2014

बेंच- माननीय मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय

प्रतिनिधित्व- वकील मोहम्मद शम्मीमुल होदा (याचिकाकर्ता के लिए) सरकारी वकील, श्री प्रशांत प्रताप (प्रतिवादी के लिए)


आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



Next Story