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काल्पनिक आय पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता : गुजरात हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
10 Jan 2020 3:30 AM GMT
काल्पनिक आय पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता : गुजरात हाईकोर्ट
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गुजरात हाईकोर्ट ने फिर कहा है कि टैक्स ऐसी ही आय पर लगाया जा सकता है जो काल्पनिक नहीं है और यह आय आकलन वर्ष में असेसी को प्राप्त होना चाहिए।

न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला और भार्गव डी करिया ने आयकर अपीली अधिकरण के मई 2019 के आदेश में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। अधिकरण ने आयकर आयुक्त को आदेश दिया था कि वह 2010-11 आकलन वर्ष में असेसी के आय में से ₹4,42,72,610 की राशि निकाल दे।

पीठ ने इस याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि इसी तरह का मुद्दा उस असेसी के मामले में 2009-10 में भी उठा था।

राजस्व ने इसके बाद सीआईटी(A) के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें असेसी के ₹5,78,28,058 की आय को निकालने का आदेश दिया गया था और कहा था कि कार्बन रसीद की बिक्री/ख़रीद उस आकलन वर्ष में नहीं हुआ।

पीठ ने इस मामले में आयकर आयुक्त बनाम एक्सेल इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला दिया। इस मामले में अदालत के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या अग्रिम लाइसेन्स का लाभ और ड्यूटी एंटाइटलमेंट पास बुक (डीईपीबी) लाभ पर क्या उस साल कर लगाया जा सकता है जिस साल इनका प्रयोग हुआ या जिस साल इसे प्राप्त किया गया।

एक्सेल इंडस्ट्रीज़ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आयकर आयुक्त बनाम शूरजी वल्लभदास एंड कंपनी मामले में अपने ही फ़ैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि काल्पनिक आय पर कर नहीं लगाया जा सकता है। अदालत ने कहा कि कर आय पर लगाया जाता है जो उस साल होना चाहिए जिस साल के आय का आकलन हो रहा है। अगर आय नहीं हो रही है तो उस पर कर नहीं लग सकता इसके बावजूद कि खाते में काल्पनिक आय की एंट्री की जाती है।

पीठ ने गोधरा इलेक्ट्रिसिटी कंपनी लिमिटेड बनाम आयकर आयुक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में शूरजी वल्लभदास एवं मोरवी इंडस्ट्रीज़ मामले में आए फ़ैसले को सही ठहराया और कहा कि असेसी को कई कारणों से बिजली के बढ़े हुए शुल्क के संदर्भ में कोई वास्तविक आय नहीं हुआ है।

कोर्ट ने कहा,

"एक कारण था गुजरात सरकार के अंडर सेक्रेटरी का असेसी को लिखा वह पत्र जिसमें असेसी को 'सलाह' दी गई थी कि बढ़े हुए शुल्कों के संदर्भ में उन्हें काम से काम छह माह तक यथास्थिति बनाए रखना चाहिए। इस अदालत का मत था कि इसके बावजूद कि इस पत्र का कोई क़ानूनी महत्व नहीं है पर व्यावहारिक दृष्टिकोण से इन पर विचार करने की ज़रूरत है। इस अदालत की राय में प्राप्ति की संभावना होने या नहीं होने की बात पर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना ज़रूरी है और यह माना गया कि असेसी को विवादास्पद बिजली की आपूर्ति पर बढ़ी हुई दर से कोई वास्तविक आय नहीं हुई।"


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