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हैदराबाद मुठभेड़ : सुप्रीम कोर्ट ने जांच आयोग के नियम और शर्तों को अधिसूचित किया

LiveLaw News Network
18 Jan 2020 7:57 AM GMT
हैदराबाद मुठभेड़ : सुप्रीम कोर्ट ने जांच आयोग के नियम और शर्तों को अधिसूचित किया
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सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के चार आरोपियों की हैदराबाद पुलिस के कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में 6 दिसंबर को हुई हत्या की जाँच के बारे में जाँच आयोग के नियम और शर्तों को अधिसूचित कर दिया।

10 जनवरी को अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इसके बारे में कहा -

"(1) हैदराबाद में 6 दिसंबर 2019 को मोहम्मद आरिफ़, चिंतकुंटा चेन्नाकेशवुलू, जोलू शिवा और जोल्लु नवीन जिन्हें पुलिस ने पशु चिकित्सक एक युवती के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में गिरफ़्तार किया था, इनकी पुलिस हिरासत में हत्या की जाँच।

(2) उस परिस्थिति की जाँच करना जिसके तहत इन उपरोक्त चार लोगों की मौत हुई और यह निर्धारित करना कि इस मामले में कोई अपराध हुआ है कि नहीं। अगर हाँ तो उस अधिकारी की ज़िम्मेदारी तय करना।

(3) उपरोक्त आयोग के अध्यक्ष को ₹1,50,000/- प्रति बैठक दी जाएगी और इसके सदस्य को ₹1,100,000/- प्रति बैठक मिलेगा। अध्यक्ष और सदस्यों को मिलनेवाली अन्य सुविधाएं इस अदालत के 12.12.2019 के आदेश के अनुरूप होंगे।

इस घटना की जाँच के आदेश मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसए बोबडे ने जीएस मणि और प्रदीप कुमार यादव की जनहित याचिका पर दिया था। इन लोगों ने इस मामले में एफआईआर दर्ज करने और इस कथित मुठभेड़ के दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की माँग की थी।

अदालत ने निर्देश दिया था कि इस मामले की जाँच की अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीएस सिरपुरकर करेंगे। आयोग के अन्य सदस्यों में बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रेखा बलदोता और सीबीआई के पूर्व निदेशक कार्तिकेयन शामिल हैं और यह जाँच 6 माह में पूरी की जाएगी।

इससे पूर्व 12 दिसंबर 2019 के अपने आदेश में अदालत ने कहा था इस मामले की कोई अन्य अदालत या इसकी अथॉरिटी जाँच नहीं करेगा। इसका मतलब यह हुआ कि इस मामले की तेलंगाना हाईकोर्ट में हो रही सुनवाई और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जाँच पर भी प्रभावी रोक लगा दी गई है।

अपने 10 जनवरी के आदेश में अदालत ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया और प्रेस काउन्सिल ऑफ़ इंडिया को भी नोटिस जारी किया जब वरिष्ठ वक़ील मुकुल रोहतगी ने यह सुझाव दिया कि मीडिया को इस मामले की आयोग से होने वाली जाँच को प्रचारित करने और इस पर या इसकी जाँच के बारे में टिप्पणी करने से रोका जाए। इस मामले पर दो सप्ताह के बाद फिर सुनवाई होगी।

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