पति-पत्नी के बीच विवाद सुलझने के बाद गुजरात हाईकोर्ट ने पत्नी के खिलाफ बेटियों को जहर खिलाने और आत्महत्या करने के प्रयास से सम्बंधित FIR रद्द की
SPARSH UPADHYAY
24 Aug 2020 10:15 AM IST
गुजरात उच्च न्यायालय ने बुधवार (19 अगस्त) को एक महिला द्वारा दायर आपराधिक आवेदन (आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत) को अनुमति देते हुए सीआर नंबर-ए/112100042001003 के तहत पंजीकृत एफआईआर (भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के तहत अपराध) को रद्द करने की अनुमति दी।
न्यायमूर्ति एपी ठाकर की पीठ ने आदेश दिया कि पति और पत्नी एक सौहार्दपूर्ण समझौते पर पहुँचे हैं और पत्नी अपने खिलाफ दायर प्राथमिकी को रद्द करने की प्रार्थना के साथ उच्च न्यायालय आई है।
विशेष रूप से, पति ने अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया कि यदि उक्त प्राथमिकी रद्द की जाती है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है। यह स्पष्ट रूप से अदालत के सामने प्रस्तुत किया गया था कि महिला ने हताशा (Frustration) के चलते यह चरम कदम उठाया था।
मामले की पृष्ठभूमि
मौजूदा मामले में आवेदक, जो कि एक महिला थी, के खिलाफ अपनी दो बेटियों की हत्या के प्रयास के लिए FIR दर्ज की गई थी।
आवेदक के लिए पेश अधिवक्ता ने यह प्रस्तुत किया कि प्राथमिकी को पढ़ने पर, यह पता चलता है कि हताशा के चलते, आवेदक-महिला ने अपने दो बच्चों को जहरीला पदार्थ खिलाया था, साथ ही उसने स्वयं भी उक्त पदार्थ का सेवन किया था क्योंकि वह आत्महत्या करना चाहती थी।
वास्तव में, पति और पत्नी के बीच पारिवारिक विवाद था और उसी के कारण, हताशा के तहत, आवेदक-महिला ने कथित अपराध किया था।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि वर्तमान आवेदक और प्रतिवादी नंबर 2 यानी पति और पत्नी के बीच एक सौहार्दपूर्ण समझौता हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि जैसा कि शिकायतकर्ता ने स्वयं एक हलफनामा दायर किया है, न्याय के हित में प्राथमिकी को रद्द करने के अनुरोध की अनुमति दी जा सकती है।
इसके अलावा, प्रतिवादी नंबर 2 (पति) के वकील ने भी आवेदक (पत्नी) के संस्करण का समर्थन किया और कहा कि शिकायतकर्ता को कोई आपत्ति नहीं है यदि वर्तमान आवेदन को अनुमति दी जाती है और आवेदक-महिला के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द किया जाता है क्योंकि उक्त विवाद को उनके बीच सुलझा लिया गया है।
उत्तरदाता नंबर 1-राज्य के लिए पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक ने अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के तहत अपराध बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ है और इसलिए, भले ही आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच समझौता हो गया हो, परंतु एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता है।
एपीपी ने आगे कहा कि उसे संबंधित पुलिस कर्मियों से निर्देश मिले हैं कि पक्षों ने विवाद सुलझा लिया है और इसलिए यदि अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि वर्तमान आवेदन को अनुमति देने की आवश्यकता है, तो, उस मामले में, आवेदक की मानसिक स्थिति का अवलोकन करना कि उसकी कोई आय नहीं है और उसका पति उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है और उसके कारण, हताशा के तहत, उसने कथित अपराध किया है, आवेदक-महिला को अपनी आजीविका के लिए, सुमन महिला गृह उद्योग, शांति भवन, नवयुग आर्ट्स कॉलेज के पीछे, रांदेर रोड सूरत में शामिल होने की सलाह दी जा सकती है।
न्यायालय का अवलोकन
अदालत ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत याचिका पर विचार करने के लिए, इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि क्या शिकायत में मौजूद आरोप के अनुसार, प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं।
अदालत का विचार था कि यह भी अच्छी तरह से तय है कि हालांकि उच्च न्यायालय के पास संहिता की धारा 482 के तहत निहित शक्तियां हैं, ये शक्तियां वास्तविक और पर्याप्त न्याय करने के लिए हैं, जिसके लिए अकेले प्रशासन मौजूद है या न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए।
इस संबंध में, न्यायालय ने पिछले साल (मार्च 2019) में मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण एवं अन्य एआईआर 2019 एससी 1296 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का उल्लेख किया। इस मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीश पीठ ने दोनों पक्षों के बीच समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के बारे में दिशानिर्देश जारी किए थे।
वर्तमान मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने देखा,
"यह उभर कर आता है कि कथित घटना के समय, आवेदक-महिला अपनी दो नाबालिग बेटियों के साथ शिकायतकर्ता से अलग रह रही था और आवेदक की गंभीर निराशा के कारण, उसने आत्महत्या करने और अपने दो बच्चों को जहरीला पदार्थ खिलाने का प्रयास किया। यह भी प्रतीत होता है कि आवेदक-महिला और प्रतिवादी नंबर 2 (पति) के बीच पति-पत्नी के रूप में पारिवारिक विवाद था। इस प्रकार, इस अजीबोगरीब तथ्य में, पति द्वारा अपनी पत्नी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।"
इसके अलावा, अदालत ने टिप्पणी की,
"पार्टियों के बीच विवाद के निपटान के मद्देनजर, किसी भी सजा का कोई मौका नहीं है और इसलिए, वर्तमान आवेदन (धारा 482 सीआरपीसी) को अनुमति देने की आवश्यकता है।"
नतीजतन, पीठ ने कहा,
"परिणामस्वरुप आवेदन को अनुमति दी जाती है। अमरोली पुलिस स्टेशन, जिला सूरत में दर्ज की गई FIR संख्या-ए /A/112100042001003 ऑफ़ 2020 को, जोकि भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के तहत दर्ज की गयी थी, और उसके बाद की सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द कर दिया जाता है।"
अंत में, अदालत ने यह टिप्पणी की,
"यह देखा गया है कि यदि आवेदक महिला, गृह उद्योग के तहत लाभ प्राप्त करना चाहती है, तो वह अपने विवेक पर खुद को महिला गृह उद्योग - सुमन महिला गृह उद्योग, शांति भवन, विपरीत रेंडर रोड, नवयुग आर्ट्स कॉलेज, सूरत के साथ संलग्न कर सकती है।"
मामले का विवरण:
केस नं .: आर/आपराधिक मिस्सिलेनियस आवेदन संख्या 10288 ऑफ़ 2020
केस का शीर्षक: लताबेन जितेशभाई लठिया बनाम गुजरात राज्य
कोरम: न्यायमूर्ति ए. पी. ठाकर
सूरत: एडवोकेट हार्दिक ए. दवे (आवेदक-महिला के लिए); एपीपी मैथिली मेहता (प्रतिवादी-राज्य के लिए); एडवोकेट पवन ए. बरोट (प्रतिवादी नंबर 2 के लिए)