हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटे के साथ जेल में बंद हत्या की आरोपी महिला को जमानत दी
Manisha Khatri
25 Nov 2022 7:00 PM IST
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को एक हत्या की आरोपी महिला को जमानत दे दी, जो तीन साल से अधिक समय से अपने नाबालिग बेटे के साथ जेल में बंद है। कोर्ट ने कहा यह जमानत इसलिए दी जा रही है ताकि बच्चे को परिवार के अन्य सदस्यों, विशेष रूप से अपने पिता के साथ जान-पहचान विकसित करने में सक्षम बनाया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि बच्चे की मां (आरोपी/जमानत याचिकाकर्ता) ने हत्या का अपराध किया है, फिर भी वह जमानत पाने की हकदार है ताकि उसके बच्चे को परिवार के अन्य सदस्यों से मिलवाया जा सके और वह परिवार के अन्य सदस्यों, विशेषकर अपने पिता के साथ रहना सीख जाए।
जस्टिस संदीप शर्मा की पीठ ने आरोपी सरबजीत को जमानत देते हुए कहा कि,
''याचिकाकर्ता (बच्चे की मां) को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए दोषी ठहराए जाने की स्थिति में, उसे लंबे समय तक जेल में रहना पड़ सकता है और उस स्थिति में, नाबालिग बच्चा, जो जमानत मांगने वाली याचिकाकर्ता के साथ जेल में रह रहा है,उसे परिवार के अन्य सदस्यों के साथ परिचित होने की जरूरत है ताकि वह अपनी मां से अलग होने के आघात से प्रभावित न हो।''
पीठ ने यह भी तर्क दिया कि नाबालिग बच्चा, जिसे अपनी मां के साथ जेल में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है, उसे उसकी मां द्वारा कथित रूप से किए गए अपराध का शिकार बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
इसलिए, उसके भविष्य को ध्यान में रखते हुए और उसके मानस पर कोई गंभीर प्रभाव पड़ने से बचाने के लिए, कोर्ट ने कहा उसे अनिश्चित काल के लिए उसकी मां के साथ जेल में रखना सुरक्षित नहीं होगा।
इसके अतिरिक्त, मुकदमे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए और यह देखते हुए कि मुकदमे के समापन में काफी समय लगने की संभावना है, अदालत ने आरोपी को जमानत पर रिहा करना उचित समझा और कहा कि मुकदमे में होने वाली देरी से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकार का उल्लंघन होगा।
कोर्ट ने कहा,''इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि जमानत याचिकाकर्ता तीन साल से सलाखों के पीछे है और 13 गवाहों की गवाही होना बाकी है, इसलिए इस अदालत के पास यह मानने का कारण है कि मुकदमे के समापन में अभी भी काफी समय लगने की संभावना है और जमानत याचिकाकर्ता को अनिश्चित काल के लिए सलाखों के पीछे रहने की अनुमति देना न्याय के हित में नहीं हो सकता है,क्योंकि यह निश्चित रूप से उसकी प्री-ट्रायल की सजा के समान होगा।''
अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता आदतन अपराधी या कठोर अपराधी नहीं है, जो जमानत पर रिहा होने की स्थिति में न्याय से भाग सकती है या फिर से ऐसी गतिविधियों में शामिल हो सकती है, बल्कि वह क्षेत्र की स्थानीय निवासी होने के नाते हमेशा ट्रायल हेतु उपलब्ध रहेगी।
संक्षेप में मामला
मामले में एफआईआर 31 मार्च, 2018 को शिकायतकर्ता (सुनील कुमार) द्वारा दर्ज करवाई गई थी, जो मृतक मंजीत का भतीजा है। उसने बताया कि अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहने वाली मृतका की मौत की खबर,उसे अपने पिता से प्राप्त हुई थी। जब उसने शव देखा, तो उसने पाया कि उसकी गर्दन पर गला घोंटने के निशान थे।
इसके अलावा, जब उसने मृतक मौसी की बहू यानी याचिकाकर्ता से मृतक के शरीर पर दिख रहे निशान का कारण पूछा, तो उसने खुलासा किया कि मृतक के सिर में दर्द था और उसने (आरोपी) मालिश की थी।
हालांकि, शिकायतकर्ता को संदेह था कि उसकी मृत मौसी की उसकी बहू यानी वर्तमान जमानत याचिकाकर्ता ने हत्या की है और इस तरह तत्काल एफआईआर दर्ज करवाई गई थी।
केस टाइटल - सरबजीत बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य,आपराधिक मिश्रित याचिका (मुख्य) 2406/2022
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