कैसे एक फ़ुटबॉल खिलाड़ी ने क़ानूनी जागरूकता के लिए तैयार किया ग्राफ़िक नोवेल

LiveLaw News Network

21 Feb 2020 3:45 AM GMT

  • कैसे एक फ़ुटबॉल खिलाड़ी ने क़ानूनी जागरूकता के लिए तैयार किया ग्राफ़िक नोवेल

    दुर्भाग्य से फ़ुटबॉल से बाहर होने के लिए मजबूर किए जाने पर 24 साल के फ़ुटबॉल कोच और क़ानूनी सलाहकार विग्नेश अवरेकड ने लोगों तक पहुंचने का एक विशेष तरीक़ा अपनाया – उसने एक रंगीन ग्राफ़िक नोवेल तैयार किया।

    "जनसामान्य कानूनु माहिती – वर्णचित्रदा किरुकादंबरी" एक "अनौपचारिक" (gonzo) ग्राफ़िक नोवेल है जिसके कर्नाटक राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (केएसएलएसए)ने प्रकाशित है ताकि राज्य के लोगों में साक्षरता और क़ानूनी जागरूकता पैदा की जा सके। इसमें बहुत ही सुंदर रंगीन ग्राफ़िक्स हैं। 92-पृष्ठ के इस कन्नड़ नोवेल के माध्यम से विग्नेश अवरेकड ने जटिल क़ानूनी शब्दों को सरल बनाने का सफल प्रयास किया है जिसकी वजह से क़ानून आम लोगों की समझ के बाहर हो जाता है।

    कौन है विग्नेश अवरेकड?

    विग्नेश अवरेकड 2013 से 2015 के बीच बेंगलुरु एफसी का 19 वर्ष से कम उम्र का एक पूर्व पेशेवर फ़ुटबॉल खिलाड़ी रहा है । भारत में खेलों में उम्र को लेकर जो धोखाधड़ी होती है उसकी वजह से उसका मन क़ानून का अध्ययन करने का हुआ। उसने क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में बीबीए एलएलबी में दाख़िला लिया क्योंकि यह एक मात्र ऐसा संस्थान था जो उसे फ़ुटबॉल के साथ साथ क़ानून के अध्ययन की इजाज़त भी दे रहा था।

    पर 2012 में उसे चोट लगी जिसने आगे उसके फ़ुटबॉल खेलने की सारी संभावनाएं समाप्त कर दी। पर इस दुःख की घड़ी में भी वह अपने और अपने देश के लिए कुछ बड़ा करने का विचार नहीं छोड़ा। उसने कहा,

    "मैं बहुत ही भयंकर कम्पार्ट्मेंटल सिंड्रोम से ग्रस्त हो गया जिसने आगे मेरे फ़ुटबॉल खेलने की पूरी संभावना समय से पूर्व ही समाप्त कर दी। इस दर्द ने मेरे अंदर एक कवि और कलाकार को जन्म दिया। देश में युवा खेलों मने उम्र के बारे में धोखाधड़ी को लेकर एक शोधपूर्ण वर्किंग पेपर लिखने का अनुभव मुझे था, मैं इस बारे में दृढ़ था कि इस समस्या के ख़िलाफ़ लड़ाई सांस्कृतिक है और मैं इसको समाप्त करने के लिए काम कर रहा हूं।"

    कुछ नया करने की शुरुआत

    कानून की पढ़ाई करने के दौरान अवरेकड़ को जो अनुभव हुआ उससे उसकी आगे की योजना को आकर मिला। वह कॉलेज में विधिक मदद एवं जागरूकता समिति का सदस्य था और बेंगलुरु के आसपास में क़ानूनी सहायता शिविर लगाने में भाग लिया करता था।

    इसके तहत गाँव के लोगों को एक हैंड्बुक्स बाँटे जाते थे ताकि इसके माध्यम से लोग क़ानून को सरलता से समझ सकें।

    "हम जनसाम्यरिगे कानूनु माहिती" नामक पुस्तक की प्रतियाँ लोगों को बाँटा करते थे जिसका प्रकाशन कर्नाटक राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने किया है जिसमें कर्नाटक में ज़्यादा प्रयुक्त होने वाले क़ानूनों का वर्णन है। हालाँकि, ग्रामीण लोग जिनसे हमने बात की, उन्होंने हमें कहा कि इन पुस्तकों में जटिल क़ानूनी शब्द इस क़दर भरे हुए हैं कि उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी पैदा नहीं होती।"

    अवरेकड़ इन शिविरों के दौरान ग्रामीणों को क़ानून की जानकारी देनेवाले नुक्कड़ नाटकों में एक कलाकार के रूप में भी काम करता था। इसी तरह के एक नाटक के दौरान उसको पता चला कि संवाद का इस तरह का माध्यम न केवल क़ानून में लोगों की दिलचस्पी जगाता है बल्कि उनका मनोरंजन भी करता है।

    "इस तरह का संवाद कितना प्रभावी होगा यह दर्शकों की संख्या पर निर्भर करता है। यह जानने के बाद कि इसको अगर एक सफल फ़ॉर्मैट के रूप में पेश किया जाए तो इससे दर्शकों की संख्या बढ़ेगी, मैंने इस रचनात्मक कार्य को पूरा करने की ठान ली। चित्रांकन में अपनी कुशलता का उपयोग करते हुए मैंने इस नाटक को डिजिटल रूपांकन करना शुरू किया और उसमें अभिनय करने के साथ साथ उसे निर्देशित भी किया जिसकी परिणति अब इस ग्राफ़िक नोवेल के रूप में हुई है।"

    अवरेकड़ क्या हासिल करना चाहते हैं इससे ?

    एक दृश्य में अवरेकड़ डॉक्टर बीआर अम्बेडकर के साथ एक कार यात्रा में साथ होते हैं जो लोक अदालतों के बारे में नाराज़ कामगारों को बताते हैं। वरिष्ठ नागरिकों के बारे में एक अध्याय में माँ-बाप और वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की चर्चा की गई है जिसमें उसके सभी दादाओं के चित्र हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। इस ग्राफ़िक नोवेल का उद्देश्य बहुत ही श्रेष्ठ है।

    अवरेकड़ ने लाइव लॉ से बातचीत में कहा,

    "भारत सामाजिक विसंगतियों से भरा पड़ा है – इनमें से एक है सभी लोगों का न्याय तक पहुँच नहीं होना। न्याय तक पहुँच का मूल स्तंभ है क़ानूनी साक्षरता। दुर्भाग्य से, लोगों को जो अधिकार प्राप्त हैं उसके बारे में उनमें जागरूकता फैलाने का प्रयास सीमित रहा है। मेरा यह ग्राफ़िक नोवेल इस दिशा में पहला योगदान है जो सूचना के अंतर को पाटने का एक प्रयास है"।

    अवरेकड़ ने कहा, "मैं काग़ज़ पर और डिजिटल रूप में इस तरह के कई और काम करना चाहता हूँ ताकि लोगों को क़ानून और उनके अधिकारों के बारे में बताया जा सके। मैं निकट भविष्य में शहरी लोगों को भी यह शिक्षा देना चाहता हूँ। क़ानूनी शिक्षा को मज़ेदार और रचनात्मक बनाने की पूरी संभावना है"।

    इस बारे में उनके उत्साह को बढ़ानेवाली एक घटना का ज़िक्र करते हुए अवरेकड़ ने कहा, "केएसएलएसए ने इस पुस्तक जो जारी किया उससे पहले, मैने इस पुस्तक की तीन प्रतियाँ क़ानून की पढ़ाई के अंतिम वर्ष के क़ानूनी शिविर में एक स्कूल के छात्रों को दी। क़ानून के बारे में रंगीन किताब देखकर उनके चेहरे पर जो उत्साह दिखा उससे मुझे काफ़ी संतोष हुआ। क़ानूनी मदद शिविर में बच्चों के साथ मेरा जो अनुभव रहा है उससे मैं यह समझता हूँ कि ये बच्चे इन बातों को ख़ुद सीखेंगे और इसके बारे में अपने निरक्षर माँ-बाप को भी बताएँगे"।

    अवरेकड का नोवेल इस अर्थ में विशिष्ट है कि इसमें सारे चरित्र उसके अपने जीवन से लिए गए हैं; इसमें उसके दादा-दादियों से लेकर उसके विधि कॉलेज की क़ानूनी मदद और जागरूकता समिति से जुड़े लोग तक शामिल हैं। इस नोवेल में उसने ख़ुद को भी रखा है, उदाहरण के लिए डॉक्टर अम्बेडकर के साथ कार में यात्रा के दौरान।

    "यह एक प्रीमियर पद्मिनी कर है जो मुझे बेहद पसंद है और क़ानून के पेशे से मेरे जुड़ाव की यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है। इस दार्शनिक कार यात्रा पर मेरा सहयात्री डॉक्टर अम्बेडकर से अछा और कौन हो सकता है?"

    यह नोवेल "गोंजो" शैली से भी जुड़ा हुआ है जिसकी शुरुआत अमरीकी पत्रकार हंटर एस टॉमप्सन ने किया था जिसमें अपनी रिपोर्ट में वे ख़ुद को रखते थे; यह फ़्रीडा कहलों की अभिव्यक्ति की शैली के अनुसार भी है जिसमें वह सामाजिक गड़बड़ियों और चिंताओं को दिखाने के लिए ख़ुद की तस्वीर का प्रयोग करती थीं।

    अवरेकड़ ने कहा कि एक कार्टूनिस्ट के रूप में वह इस शैली का अनुसरण करता है क्योंकि वह ख़ुद को बीच में रखकर समाज के गोरखधंधों, उसकी कमियों, विडंबनाओं और निजी भावनाओं को लक्ष्य कर अपनी बात कहना चाहता है।

    इस समय, इस नोवेल में कई तरह के क़ानूनी मुद्दों पर ग़ौर किया गया है। इनमें शामिल हैं लोक अदालतें, मुफ़्त क़ानूनी मदद, एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, अदालतों के दर्जे, मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य, शिक्षा का अधिकार, बाल मज़दूरी और बाल विवाह, यौन उत्पीड़न, एफआईआर, अपराधों के प्रकार और दीवानी ग़लतियाँ, पीड़ित मुआवज़ा योजना, गर्भ धारण से पूर्व और जन्मपूर्व इलाज तकनीक अधिनियम, 1994, दहेज उन्मूलन अधिनियम, 1961, हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार, माँ-बाप और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007, मोटर वाहन अधिनियम, 1988, सूचना का अधिकार और भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम, उपभोक्ता संरक्षण और रोज़गार योजनाएँ।

    इसके अलावा केएसएलएसए ने अवरेकड़ से कहा है कि वह इसमें पोकसो अधिनियम और पर्यावरण क़ानून को भी जोड़ दें। उसने इस पुस्तक को अन्य संगठनों द्वारा प्रकाशित किए जाने की माँग की है ताकि यह ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँच सके। पर क़ानून के बारे में जागरूकता लाने के अवरेकड़ के प्रयास का यह अंतिम पड़ाव नहीं है।

    "इस नोवेल का कॉपीरायट केएसएलएसए को सिर्फ़ कन्नड़ भाषा के लिए दिया गया है, मैं उम्मीद करता हूँ कि इसे अन्य भाषाओं, विशेषकर हिन्दी में छापा जाए ताकि यह ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँच सके। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं लोगों से आगे आकर अपनी मदद देने का आग्रह करता हूँ।"

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