[ट्रांसफर कार्टेल] कई बार प्रभावशाली कर्मचारी शहरी इलाकों में अपनी पोस्टिंग सुरक्षित कर लेते हैं; राज्य 'कार्टेल' को खत्म करने के कदम उठाएं : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

SPARSH UPADHYAY

26 Aug 2020 4:34 PM IST

  • [ट्रांसफर कार्टेल] कई बार प्रभावशाली कर्मचारी शहरी इलाकों में अपनी पोस्टिंग सुरक्षित कर लेते हैं; राज्य कार्टेल को खत्म करने के कदम उठाएं : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    Himachal Pradesh High Court

    हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बुधवार (26 अगस्त) को कहा कि यदि कर्मचारी को बिना किसी उचित आधार के विशेष व्यक्तियों को समायोजित करने के लिए स्थानांतरित किया गया है, तो इस प्रकार के स्थानांतरण को दुर्भावनापूर्ण (malafide) करार दिया जा सकता है और सामान्य रूप से इसे समाप्त कर दिया जाएगा।

    न्यायमूर्ति तारलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवल दुआ की एक खंडपीठ ने इस मामले में देखा,

    "हिमाचल प्रदेश के शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों में सेवा करने वाले कुछ कर्मचारियों द्वारा बनाए गए कार्टेल के कारण, प्रभावशाली कर्मचारी शहरी क्षेत्रों में और आसपास के क्षेत्रों में अपने पोस्टिंग को सुरक्षित करने का प्रबंधन करते हैं, इसके चलते अन्य कर्मचारियों के लिए व्यावहारिक रूप से कोई जगह नहीं बचती है।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता एक अंग्रेजी लेक्चरर है, जो 16.08.2017 को सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, संजौली में शामिल हो गयी थी और उसके बाद उसे दिनांक 23.01.2020 को स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया और इससे व्यथित होकर उसने तत्काल याचिका दायर की कि दिनांक 23.01.2020 को लागू किया गया स्थानांतरण आदेश रद्द किया जाये।

    याचिकाकर्ता के लिए पेश अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया था, कि स्थानांतरण का आदेश उचित नहीं है, क्योंकि इसे केवल निजी प्रतिवादी/उत्तरदाता नंबर 3 को समायोजित करने के लिए गलत इरादे से जारी किया गया है।

    दरअसल, निजी प्रतिवादी/उत्तरदाता नंबर 3, अपनी मर्जी से जुलाई, 2019 में GSSS, Theog में पोस्टेड हुई और छह महीने के छोटे प्रवास के बाद, 01.01.2020 को DO नोट नंबर 199274 के आधार पर याचिकाकर्ता की जगह खुद को जीएसएसएस, संजौली में वापस स्थानांतरित करवा लिया।

    दूसरी ओर, आधिकारिक उत्तरदाताओं का रुख यह रहा कि याचिकाकर्ता को प्राधिकृत अधिकारी की पूर्व मंजूरी के साथ, प्रतिवादी नंबर 3 के मेडिकल ग्राउंड पर उप निजी प्रतिवादी नंबर 3 को स्थानांतरित किया गया था।

    स्थानांतरण के मामलों में दुर्भावनापूर्ण (malafide) का सवाल

    वर्तमान मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए विभिन्न निर्णयों का उल्लेख करते हुए, अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि, शक्ति का एक उचित अभ्यास किया गया है अथवा नहीं, इसका प्रमुख परीक्षण यह प्रश्न पूछना है कि क्या वास्तविक प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए उक्त स्थानांतरण किया गया?

    अदालत ने आगे कहा, जवाब खोजने में अदालत को स्थानांतरण आदेश के घूंघट को खोलना पड़ सकता है और देखना होगा कि स्थानांतरण के लिए ऑपरेटिव कारण क्या था। यदि निष्कर्ष प्रशासनिक आवश्यकता के साथ एक सांठगांठ प्रकट करता हैं, तो शक्ति के अभ्यास को/आदेश को बरकरार रखा जाएगा।

    हालांकि, अदालत ने कहा, ऑपरेटिव कारण में यदि कुछ उचित नहीं मिलता है, तो स्थानांतरण कमजोर माना जायेगा।

    अदालत का अवलोकन

    अदालत का विचार था कि प्रतिवादी नंबर 3 अपनी शिकायतों को चिकित्सा समस्याओं सहित अपने उच्च अधिकारियों को सौंपने और स्थानांतरण की मांग करने की अधिकारी थी लेकिन पीठ ने टिप्पणी की कि ऐसा नहीं लगता कि प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा किया गया अनुरोध वास्तविक और बोनाफाइड था।

    गौरतलब है कि अदालत ने माना कि हाल ही में, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों से संबंधित मुकदमों में उछाल देखा है। अन्य राज्यों के विपरीत हिमाचल राज्य समान रूप से बुनियादी ढांचे जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं आदि के मामलों में विकसित नहीं हुआ है।

    इस संदर्भ में, अदालत ने कहा,

    "हर कर्मचारी जिला या तहसील मुख्यालयों में पोस्टिंग की तलाश करने का प्रयास करता है जहां बुनियादी ढांचा अपेक्षाकृत अच्छी तरह से विकसित हो। शहरी क्षेत्रों में इनमें से अधिकांश पलायन सीधे बच्चों की शिक्षा से संबंधित है और इसके बाद यह अन्य उद्देश्यों जैसे बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं आदि के लिए हो सकता है।"

    राज्य सरकार को दिए गए सुझाव

    अदालत ने कहा कि उत्तरदाता (अधिकारी) न केवल कर्तव्यबद्ध हैं, बल्कि कानून द्वारा यह सुनिश्चित करना उनके लिए अनिवार्य है कि स्थानान्तरण के मामलों में, कोई एकाधिकार शक्ति का इस्तेमाल कुछ चयनित लोगों के पक्ष में नहीं किया गया है, लेकिन अधिकतम संख्या को समायोजित करने के लिए एक प्रयास किया जाना चाहिए, खासतौर पर उन शिक्षकों के लिए जिनके बच्चे बोर्ड परीक्षा या व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षा दे रहे हैं।

    अदालत ने सुझाव दिया कि राज्य के लिए उन सभी शिक्षकों, जिनके बच्चों को बोर्ड परीक्षा या एमबीबीएस, एआईईईई आदि जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षा में शामिल होना है, के विवरण की जांच करने के बाद स्थानांतरण की एक निष्पक्ष और पारदर्शी नीति अपनाने की आवश्यकता है।

    अदालत का विचार था कि इससे न केवल कुछ शिक्षकों के पक्ष में बने एकाधिकार का अंत होगा, बल्कि इससे छात्र समुदाय को भी लाभ होगा। इसके अलावा यह स्पष्ट किया गया कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और इसी तरह सभी सार्वजनिक उपक्रमों को 'मॉडल नियोक्ता' की तरह काम करने की उम्मीद है।

    राज्य की कार्रवाई उचित, न्यायपूर्ण और पारदर्शी होनी चाहिए न कि मनमानी, काल्पनिक या अन्यायपूर्ण। उचित उपचार का अधिकार न्याय का एक अनिवार्य घटक है।

    सबसे महत्वपूर्ण रूप से पीठ ने कहा,

    "इस तरह के मामलों में न्यायालय की मुख्य चिंता कानून के नियम को सुनिश्चित करना और यह देखना है कि कार्यकारी निष्पक्षता से काम करता है और अपने कर्मचारियों को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 की आवश्यकताओं के अनुरूप उचित बर्ताव/अधिकार प्रदान करता देता है। इसका यह भी अर्थ है कि राज्य को अपने कर्मचारियों का शोषण नहीं करना चाहिए और न ही उनकी असहायता और दुख का लाभ उठाना चाहिए। जैसा कि अक्सर कहा जाता है, राज्य को 'मॉडल नियोक्ता' होना चाहिए।"

    वर्तमान मामले में अदालत का फैसला

    अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता के अलावा तीसरी प्रतिवादी/उत्तरदाता स्टेट कैडर पोस्ट की हैं, फिर भी याचिकाकर्ता को जिले के बाहर पोस्ट नहीं किया गया है और उसने अपने पूरे सेवा कैरियर में शिमला में और उसके आसपास ही सेवा की है। अदालत ने आगे कहा कि प्रतिवादी नंबर 3 का मामला भी कुछ अलग नहीं है।

    इस संदर्भ में न्यायालय ने उल्लेख किया,

    "जाहिर है, ये पोस्टिंग, याचिकाकर्ता के मामले में भी, जैसा कि उत्तरदाता नंबर 3 के मामले में है, अधिकारियों के सक्रिय समर्थन के बिना संभव नहीं हो सकती थी।"

    अंत में, भले ही अदालत ने याचिकाकर्ता के स्थानांतरण को दुर्भावनापूर्ण पाया, क्योंकि यह तीसरे उत्तरदाता को बिना किसी उचित आधार के समायोजित करने के लिए दिया गया आदेश था, लेकिन अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि इसका मतलब यह नहीं होगा कि याचिकाकर्ता जीएसएसएस संजौली में रहने की हकदार होगी।

    सबसे महत्वपूर्ण रूप से पीठ ने टिप्पणी की,

    "इस मामले में किसी भी पक्ष के पक्ष में निर्णय देने से अन्य शिक्षकों के साथ अन्याय होगा, जो शिमला और अन्य जिला और तहसील मुख्यालयों में सेवा करने के इच्छुक हैं, लेकिन मुख्य रूप से प्रभावशाली शिक्षकों द्वारा गठित कार्टेल की वजह से विफल हो गए हैं।"

    पीठ ने यह कहकर निष्कर्ष निकाला कि मामले के दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों में जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, न तो याचिकाकर्ता और न ही तीसरी प्रतिवादी अपने गृह जिले में तैनात होने के लायक हैं।

    अंत में, पीठ ने टिप्पणी की,

    "हम आशा करते हैं और विश्वास करते हैं कि उत्तरदाता कार्टेल को तोड़ने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे और जहां तक संभव हो यह सुनिश्चित करेंगे कि अधिकतम शिक्षक, विशेषकर जिनके बच्चे बोर्ड परीक्षा में शामिल हों और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षा में शामिल हो रहे हों, उन्हें जिला और तहसील मुख्यालयों या जहाँ भी अपेक्षित बुनियादी ढाँचा जैसे पर्याप्त बैंड, ट्यूशन आदि की सुविधा उपलब्ध है, में सेवा करने का अवसर मिलता है।"

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



    Next Story