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जिनका उपयोग बच्चों ने न किया हो, ऐसी सेवाओं के लिए भुगतान करना माता-पिता के लिए बहुत कष्टदायक है : लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों की फीस में छूट की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network
19 Jun 2020 3:45 AM GMT
Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer
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इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है,जिसमें मांग की गई है कि राज्य के सभी निजी स्कूलों को निर्देश दिया जाएंं कि जब तक लाॅकडाउन खत्म न हो जाए तब तक वह केवल ट्यूशन शुल्क वसूलें और अन्य सहायक शुल्क से छूट दे दें।

हैदराबाद स्थित सिम्बायोसिस लॉ स्कूल के दो छात्रों ने यह याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि माता-पिता के लिए अपने बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करना बहुत मुश्किल हो गया है, क्योंकि महामारी के कारण उनके व्यवसाय काफी प्रभावित हुए हैं।

याचिकाककर्ताओं ने एडवोकेट यश टंडन के माध्यम से कहा है कि भले ही स्कूल 21 अप्रैल, 2020 और 27 अप्रैल, 2020 के सरकारी आदेश के अनुसार परिवहन शुल्क नहीं ले रहे हैं,लेकिन वे ट्यूशन शुल्क के अलावा अतिरिक्त शुल्क जैसे पाठ्येतर शुल्क,पुस्तकालय शुल्क, बिजली शुल्क, कंप्यूटर शुल्क आदि वसूल रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि-

''यूपी में सरकार का आदेश विभिन्न प्रमुखों या हेड्स के तहत शुल्क लगाने की प्रथा को रोक नहीं पा रहा है। जिसमें ट्यूशन शुल्क ही नहीं बल्कि कई अन्य शुल्क भी शामिल हैं। दोनों सरकारी आदेशों में स्कूलों को विभिन्न प्रमुखों के तहत शुल्क लेने से मना नहीं किया गया है अर्थात कंप्यूटर शुल्क, लैब चार्ज,बिजली शुल्क व पाठ्येतर शुल्क आदि।''

इसके लिए तर्क दिया गया है कि इस प्रथा को बंद किया जाना चाहिए क्योंकि इस समय शारीरिक कक्षाएं नहीं हो पा रही हैं, इसलिए छात्र उपरोक्त सेवाओं का लाभ भी नहीं ले पा रहे हैं।

यह भी दलील दी गई है कि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और असम जैसे राज्य पहले ही अलग-अलग आदेशों के आधार पर इस संबंध में स्कूलों को निर्देश दे चुके हैं। जिनमें स्कूलों से कहा गया है कि वो या तो केवल शिक्षण शुल्क (किसी अन्य शुल्क के बिना) वसूलें या कुल शुल्क पर कुछ प्रतिशत घटा दें।

याचिकाकर्ताओं ने ''संतुलित दृष्टिकोण'' अपनाए जाने का आग्रह किया है। जिसमें कहा गया है कि दोनों हितधारकों यानी माता-पिता और स्कूलों के हितों को निष्पक्ष रूप से देखा जाए या उनका ख्याल रखा जाए।

याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि

" संकट के इस समय में सभी के व्यवसाय बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। ऐसे में माता-पिता के लिए उन सभी सेवाओं का भुगतान करना बहुत ही कष्टदायक है,जो असल में उनके बच्चों ने उपयोग ही नहीं की हैं।''

यह याचिका एडवोकेट असलम अहमद ने तैयार की है।

इसी तरह की एक याचिका हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष लंबित है। जिसमें अलग-अलग विकलांग बच्चों के लिए स्कूल फीस माफ करने की मांग की गई है क्योंकि वह अपनी बेंचमार्क विकलांगता के कारण ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने में असमर्थ हैं। न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की पीठ ने पिछले महीने इस याचिका पर सीबीएसई और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले महीने राज्य के निजी स्कूलों को अनुमति दी थी कि वह छात्रों से कुल फीस का 70 प्रतिशत वसूल सकते हैं।

वहीं राजस्थान सरकार ने 15 मार्च, 2020 को देय निजी स्कूलों की फीस के भुगतान को तीन महीने के लिए टाल दिया था। इसी तरह की याचिका पर सुनवाई करने के दौरान हाईकोर्ट को यह बात बताई गई थी।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को बच्चों के माता-पिता से ट्यूशन शुल्क की मांग करने से रोक दिया था। साथ ही कहा था कि इस शुल्क का भुगतान उनकी स्वेच्छा पर निर्भर करता है। हालाँकि, इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी और यह मामला विचाराधीन है।

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