वीडियो कॉलिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई से समय की बचत, हर मामले की परिस्थिति का विश्लेषण करने में मददगार : मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
14 April 2020 5:40 PM IST
COVID-19 महामारी के कारण वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो रही मामलों की सुनवाई को मद्रास हाईकोर्ट ने सही माना है और इसके फ़ायदे गिनाए हैं।
दो कोरियाई नागरिकों की याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन ने व्हाट्सएप वीडियो कॉलिंग के माध्यम से तमिलनाडु में डिटेंशन शिविरों का जायज़ा लिया। कोरियाई नागरिकों ने काफ़ी भीड़भाड़ होने के कारण इस शिविर से बाहर निकाले जाने का अनुरोध किया है।
न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन ने इस सुनवाई के क्रम में कहा,
"व्हाट्सएप वीडियो कॉलिंग के माध्यम से मामलों की सुनवाई करने के फ़ायदे हैं और इसमें कम समय लगता है और इससे हर मामले की वास्तविक स्थिति का विश्लेषण करने में मदद मिलेगी ताकि इनके बारे में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके, जैसे कि वर्तमान मामले में हुआ है।"
पीठ ने सुझाव दिया कि ऐसे मामले जिनमें किसी जगह की जांच की जानी की ज़रूरत है, वीडियो कॉलिंग की व्यवस्था को जारी रखना चाहिए।
अदालत ने कहा,
"विवादित स्थल जैसे सड़कों, जलाशयों, पोरामबोके द्वीपों, तालाबों, ग़ैरक़ानूनी निरमान, ओएसआर, पार्क आदि पर अतिक्रमण को व्हाट्सएप या किसी अन्य वीडियो कॉलिंग व्यवस्था के ज़रिए देखने की व्यवस्था को बनाए रखने चाहिए ताकि अधिकारी बाह्य प्रभावों से प्रभावित हुए बिना अपना काम कर सकें।"
अदालत ने सुनवाई के बाद कहा, "…विशेष शिविर का रख-रखाव बहुत ही अच्छा है और इसके शौचालयों में किसी तरह की गंदगी नहीं है।"
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से आग्रह किया था कि महामारी का ख़तरा रहने तक उन्हें कांचीपुरम ज़िले के अपने आवासों पर रहने दिया जाए। उन्होंने शिविर के कुछ फ़ोटो भेजे थे जिसमें वहां ख़राब रख-रखाव और सोशल डिस्टन्सिंग को नहीं मानने की बात दिखाई गई थी।
पर व्हाट्सएप वीडियो कॉलिंग के बाद अदालत ने कहा,
"जब तिरुचिरपल्ली ज़िले के विशेष शिविर में 80 लोगों को रखे जाने के लिए पर्याप्त जगह है, अभी वहां सिर्फ़ 73 लोग ही रह रहे हैं, अदालत का मानना है कि याचिकाकर्ता ने जो एक कमरे में अनुमति से ज़्यादा लोगों को रखने कि तस्वीर भेजी है और सोशल डिस्टन्सिंग को नहीं माना जा रहा है, इस बारे में भेजे गए फ़ोटो इसी उद्देश्य से लिए गए हैं।
ऐसा करके याचिकाकर्ता बीमारियों को आमंत्रित कर रहे हैं इसके लिए उन्हें ही ज़िम्मेदार माना जाएगा। उस कमरे का क्लस्टर वहां रहे रहे लोगों की वजह से है न कि प्रतिवादियों के कारण।"
अदालत ने यह भी कहा कि इस समय शिविर में रह रहे लोगों को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने से क़ानूनी पेचीदगी का रास्ता खुल जाएगा और इससे कोरोना वायरस के संक्रमण को बढ़ावा मिलेगा।
अदालत ने कहा,
"तिरुचिरपल्ली ज़िला के शिविर में याचिकाकर्ताओं के साथ अन्य लोग भी हैं और सिर्फ़ उनके साथ ही अलग तरह का व्यवहार नहीं किया जा सकता। (उनको कोई विशेष सुविधा देना) इससे न केवल एक अनुचित उदाहरण स्थापित होगा बल्कि दूसरे लोग भी इसी तरह की सुविधा के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाएंगे।"
इसे देखते हुए अदालत ने इस याचिका ख़ारिज कर दी। याचिककर्ताओं को सरकार को जीएसटी की राशि जमा नहीं करने के कारण शिविर में रखा गया है। यह देय राशि लगभग 40 करोड़ रुपए की है।
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