यौन उत्पीड़न के आरोपों पर न्यायिक अधिकारी के खिलाफ हाईकोर्ट अनुशासनात्मक कार्रवाई की शुरुआत कर सकती है, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

24 Aug 2019 6:14 AM GMT

  • यौन उत्पीड़न के आरोपों पर न्यायिक अधिकारी के खिलाफ हाईकोर्ट अनुशासनात्मक कार्रवाई की शुरुआत कर सकती है, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली उच्चतर न्यायिक सेवा के एक न्यायिक अधिकारी की तरफ से दायर याचिका को खारिज कर दिया। न्यायिक अधिकारी के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई चल रही है।

    एक कनिष्ठ न्यायिक सहायक ने न्यायिक अधिकारी के खिलाफ शिकायत दायर करते हुए उन पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। जब मामला फुल कोर्ट के पास पहुंचा तो उसके खिलाफ लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही पर विचार करते हुए न्यायिक अधिकारी को तुरंत प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया। न्यायिक अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि उसके खिलाफ आंतरिक शिकायत समिति के पास लंबित कार्रवाई व उसके खिलाफ दायर आरोप पत्र को रद्द किया जाए।

    एक दलील यह दी गई कि कार्यस्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न (निवारण,प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम के मद्देनजर धारा 11 व 13 के तहत आंतरिक शिकायत समिति की जांच रिपोर्ट की परिकल्पना की गई थी। उच्च न्यायालय उस रिपोर्ट पर न्यायिक अधिकारी के खिलाफ जांच करने या उसे निलंबित करने का फैसला नहीं दे सकता है।

    इस मामले पर जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ ने विचार किया और कहा कि-

    क्या हाईकोर्ट याचिकाकर्ता के लिए अनुशासनात्मक अधिकारी है, क्या हाईकोर्ट उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने में सक्षम है? और दिल्ली उच्चतर न्यायिक सेवा नियम 1970 और अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम 1969 के तहत उसे निलंबित कर सकते है?

    क्या फुल कोर्ट द्वारा 13 जुलाई 2016 को लिया गया वह निर्णय जिसके तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच शुरू की गई है और उसे निलंबित किया गया,उनके अधिकारक्षेत्र से बाहर था ?

    क्या आंतरिक शिकायत समिति की तरफ से 5 नवम्बर 2016 को दी गई प्राथमिक जांच रिपोर्ट की कॉपी याचिकाकर्ता को दी गई है और अगर ऐसा नहीं किया गया है तो क्या इससे पूरी कार्रवाई विकृत या खराब या खत्म हो गई है ?

    पहले दो मुद्दों पर जवाब देते हुए पीठ ने कहा कि धारा 11 व 13 के प्रावधान किसी भी तरह से हाईकोर्ट को अनुच्छेद 235 के तहत मिले अधिकार या नियंत्रण को प्रभावित नहीं करती है। जो कि ऊपर लिखित न्यायिक अधिकारियों के संबंध में है।

    "हाईकोर्ट के पास एक न्यायिक अधिकारी को निलंबित करने का अधिकार है। हाईकोर्ट की फुल कोर्ट को पेश तथ्यों से संतुष्ट होने के बाद किसी भी तरह से याचिकाकर्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की शुरुआत करने व उसे निलंबित करने से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने 19 जुलाई 2016 को हुई बैठक में यह निर्णय लिया था कि कर्मचारी की शिकायत को आंतरिक शिकायत समिति के पास भेज दिया जाएगा और आंतरिक शिकायत समिति ने यह माना कि जांच की जरूरत है और अधिनियम 2013 के अनुसार आगे की कार्रवाई की गई।"

    जहां तक तीसरे मुद्दे की बात है तो पीठ ने कहा कि दूसरे नियम की धारा 11(1) के तहत विचार करने के बाद ही निष्कर्ष की कॉपी उपलब्ध कराई जा सकती है, जिस रिपोर्ट में अभी कोई निष्कर्ष ही नहीं निकाला गया है तो पक्षकारों की उसकी प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है।



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