हैबियस कार्पस याचिकाओं का इस्तेमाल पुलिस पर जांच में तेजी लाने का दबाव बनाने के लिए नहीं किया जाना चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Manisha Khatri

3 Aug 2022 2:45 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में पुलिस पर अपनी जांच में तेजी लाने का दबाव बनाने के लिए दायर की जाने वाली बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिकाएं की प्रथा की कड़ी निंदा की है।

    जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने इस प्रकार कहाः

    ''बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को केवल पुलिस पर याचिका का घमंड (वैनिटी) पूरा करने के लिए पुलिस अधिकारियों पर चाबुक के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।''

    अदालत ने यह भी नोट किया कि ऐसे मामलों में जहां अपहरण, अवैध कारावास, या फिरौती के कथित कृत्य के संबंध में एफआईआर दर्ज की गई है और पुलिस कर्मी अपने स्तर पर मामले को आगे बढ़ा रहे हैं, ऐसे मामलों में समानांतर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने को अभिप्रेरित और उद्देश्यपूर्ण कहा जा सकता है।

    संक्षेप में मामला

    इस मामले में हैबियस कार्पस की याचिका एक 25 वर्षीय लड़की के पिता द्वारा दायर की गई थी। जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी बेटी का प्रतिवादी नंबर 4 (मनीष कुमार शर्मा) ने अपहरण कर लिया है। इसलिए, उसने मांग की थी कि अदालत आधिकारियों को निर्देश दे कि उसकी बेटी को शर्मा की कस्टडी से निकालकर कोर्ट के समक्ष पेश किया जाए।

    याचिका में, पिता ने आगे आरोप लगाया कि प्रतिवादी नंबर 4 (शर्मा) ने प्रेम जाल बिछाकर उसकी बेटी (कार्पस) का अपहरण कर लिया था और वह पहले ही कई अन्य युवा लड़कियों के जीवन को महिला तस्करी के लिए इस्तेमाल करके खराब कर चुका है।

    दूसरी ओर, राज्य ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता (कार्पस के पिता) ने प्रतिवादी नंबर 4 (मनीष कुमार शर्मा) के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत इस मामले में एक एफआईआर दर्ज करवाई थी और उसकी जांच अभी भी जोरों पर चल रही है।

    गौरतलब है कि कोर्ट को यह भी बताया गया कि जांच के दौरान यह पता चला है कि कार्पस और प्रतिवादी नंबर 4 (मनीष कुमार शर्मा) ने प्रयागराज के किसी मंदिर में शादी कर ली है और हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर कर सुरक्षा की मांग की थी,जिसे न्यायालय द्वारा अनुमति दे दी गई है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने नोट किया कि कार्पस ने एसपी बांदा को अपने ही पिता के खिलाफ विशिष्ट आरोप लगाते हुए एक आवेदन दिया था,जिसमें उसने आरोप लगाया था कि उसका पिता उसकी शादी उसकी उम्र से दोगुनी उम्र के व्यक्ति से कराने की योजना बना रहा है।

    इस बीच, अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि उसने खुद ही प्रतिवादी नंबर 4 से संपर्क किया और दोनों ने अपनी मर्जी से बिना किसी दबाव के शादी कर ली है और अब वे खुशहाल वैवाहिक जीवन जी रहे हैं।

    तथ्यों की इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, कोर्ट इस बात पर अचंभित हुआ कि जब बालिग लड़की/ कार्पस ने अपनी मर्जी से शादी की है और वह प्रतिवादी नंबर 4 के साथ खुशी से रह रही है, तो उसे प्रतिवादी नंबर 4 की अवैध कस्टडी के तहत कैसे माना जा सकता है।

    इसके अलावा, मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि,

    ''...ऐसा लगता है कि माता-पिता इस शादी के खिलाफ हैं और इसलिए मामले के तथ्यों को गढ़ने के बाद, पुलिस पर दबाव बनाने के लिए एक व्यर्थ की कवायद करते हुए हाईकोर्ट को शामिल करना चाहते हैं ... तत्काल हैबियस कार्पस याचिका में इस बात की कोई कानाफूसी भी नहीं है कि कार्पस को प्रतिवादी नंबर 4 ने उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरन अपने साथ रखा है। याचिका में बुनियादी दलीलों का अभाव होने के कारण इसमें कोई मैरिट नहीं है और अकेले इस स्कोर पर खारिज किए जाने योग्य है।''

    हालांकि कोर्ट ने संबंधित जिले के एस.एस.पी. और संबंधित पुलिस थाने के थाना प्रभारी को निर्देश दिया है कि वह अपने सभी पेशेवर कौशल और क्षमता के साथ इस मामले पर जल्द से जल्द विचार करें। लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता अपनी शिकायत के निवारण के अन्य वैकल्पिक रास्ते तलाश सकता है, लेकिन निश्चित रूप से यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका नहीं हो सकती है।

    कोर्ट ने कहा कि,''मेरे विचार से, वर्तमान बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करना एफआईआर दर्ज करने के बाद पहले से ही अपने काम में लगे हुए स्थानीय पुलिस अधिकारियों की बांह मरोड़ने जैसा है। इस न्यायालय को लगता है कि लड़की के अपने माता-पिता की संरक्षकता से दूर भाग जाने के बाद यह उनकी व्यक्तिगत धारणा है कि उनके बेटे या बेटी को अवैध रूप से अपराध की कैद में रखा गया है। लेकिन, ज्यादातर मामलों में, जब नोटिस जारी करने के बाद इन कपल को अदालत के सामने पेश किया जाता है तो ये कपल बेरहमी से अपने माता-पिता की इस धारणा की धज्जियां उड़ाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप, बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बड़े शून्य और व्यर्थ की कवायद के साथ समाप्त हो जाएगी।''

    इस प्रकार, तत्काल मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और इस संबंध में तय कानून को ध्यान में रखते हुए तत्काल हैबियस कार्पस याचिका को स्वीकार करने के चरण में ही खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल- पूनम कुशवाहा बनाम यूपी राज्य व तीन अन्य (हैबियस कार्पस रिट याचिका संख्या- 402/2022)

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एबी) 353

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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