गुजरात 'एंटी-लव जिहाद' कानून: हाईकोर्ट ने आरोपी-पति और उसके रिश्तेदारों को उसकी और शिकायतकर्ता-पत्नी की संयुक्त समझौता याचिका पर अंतरिम जमानत दी

LiveLaw News Network

18 Oct 2021 4:11 AM GMT

  • गुजरात एंटी-लव जिहाद कानून: हाईकोर्ट ने आरोपी-पति और उसके रिश्तेदारों को उसकी और शिकायतकर्ता-पत्नी की संयुक्त समझौता याचिका पर अंतरिम जमानत दी

    गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार को एक आरोपी/पति, उसके रिश्तेदारों को उसकी और उसकी शिकायतकर्ता-पत्नी द्वारा दायर एक संयुक्त समझौता याचिका पर अंतरिम जमानत दी, जिसमें गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 [एंटी लव जिहाद कानून] के तहत प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी।

    न्यायमूर्ति इलेश जे. वोरा की खंडपीठ अंतरधार्मिक जोड़े की संयुक्त याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि मुद्दों को सुलझा लिया गया है और वे अपने वैवाहिक संबंधों को जारी रखना चाहते हैं।

    पहले तीन आरोपियों को जमानत मिल चुकी है, लेकिन चार अभी न्यायिक हिरासत में हैं, जिन्हें अब हाईकोर्ट ने जमानत दी।

    कोर्ट के समक्ष याचिका

    प्राथमिकी की सामग्री के अनुसार महिला ने पहले आरोप लगाया कि उसके पति, उसके माता-पिता और विवाह समारोह करने वाले पुजारियों ने शादी के माध्यम से जबरन उसका धर्म परिवर्तन किया।

    हालांकि, जून 2021 में प्राथमिकी रद्द करने के लिए एक याचिका के साथ उच्च न्यायालय में जाते हुए उसने / पत्नी ने दावा किया कि उसने छोटी वैवाहिक कलह की रिपोर्ट करने के लिए वडोदरा के एक स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क किया था। हालांकि, पुलिस ने इस मामलो को खुद ही लव जिहाद का मामला बना दिया गया। शिकायतकर्ता-पत्नी ने आगे आरोप लगाया कि एफआईआर जो भी आरोप लगाए गए हैं उन्होंने ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया था।

    महत्वपूर्ण बात यह है कि शिकायतकर्ता-महिला ने अदालत के समक्ष स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किय कि पुलिस द्वारा लव-जिहाद को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई और इसमें विशेष रूप से जबरन धर्मांतरण के आरोपों के संबंध में पूरी तरह से गलत और असत्य तथ्य हैं।

    न्यायमूर्ति इलेश जे वोरा की खंडपीठ से महिला ने कहा कि वह अपने पति के साथ एक विवाहित जोड़े के रूप में रहना चाहती है और इसलिए उसके पति के खिलाफ 'एंटी लव-जिहाद' कानून के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द की जाए।

    याचिका में यह भी कहा गया कि महिला ने कभी भी आईपीसी, धार्मिक की स्वतंत्रता अधिनियम और अत्याचार अधिनियम से संबंधित अपराधों की शिकायत नहीं की थी और फिर भी आईपीसी की धारा 323, 498 (ए), 376 (2) (एन), 377, 312, 313, 504, 506 (2), 120 बी और 419 और गुजरात धार्मिक की स्वतंत्रता (संशोधन) ) अधिनियम, 2021 की धारा 4, 4 (ए), 4 (2) (ए), 4 (2) (बी) और 5 औऱ अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत कुछ अपराध के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

    वास्तव में याचिका में इस तथ्य का भी उल्लेख किया गया कि वह और उसका पति, दोनों 2 साल से रिश्ते में हैं और इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार एक-दूसरे से शादी करने का फैसला करने से पहले एक-दूसरे के धर्म से अवगत थे।

    याचिका में यह भी कहा गया कि उसकी शादी को पहले नोटरीकृत किया गया और बाद में इसे विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था और लड़की के पिता उनकी शादी में गवाह के रूप में उपस्थित थे।

    कोर्ट का आदेश

    अदालत ने जमानत देते हुए कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय ने हाल ही में अंतरिम आदेश के रूप में गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है।

    कोर्ट ने 19 अगस्त को फैसला सुनाया था कि आगे की सुनवाई तक, धारा 3, 4, 4A से 4C, 5, 6, और 6A की कठोरता केवल इसलिए संचालित नहीं होगी क्योंकि बल या प्रलोभन या कपटपूर्ण साधनों के बिना विवाह एक धर्म के व्यक्ति द्वारा दूसरे धर्म के साथ किया गया है और ऐसे विवाहों को गैरकानूनी धर्मांतरण के प्रयोजनों के रूप में नहीं माना जा सकता है।

    इसके अलावा, मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए विशेष रूप से पति और पत्नी यानी शिकायतकर्ता और आरोपी नंबर 1 के बीच समझौता हुआ, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अंतरिम राहत के रूप में जमानत का प्रथम दृष्टया मामला बनाया है।

    न्यायालय ने इस प्रकार मामले के मैरिट में प्रवेश किए बिना कहा कि राहत प्रदान करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विवेक का प्रयोग करने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है।

    कोर्ट ने आरोपी पति और उसके कुछ रिश्तेदार को जमानत देते हुए कहा कि विवाद की प्रकृति, सजा की गंभीरता और समान प्रकृति के किसी भी पिछले पूर्ववृत्त के अभाव में और न्याय से दूर जाने की कोई संभावना नहीं होने के कारण विवेक का प्रयोग करने की आवश्यकता है।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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