गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात रियल एस्टेट अपीली ट्रिब्यूनल के कोरम को लेकर दायर पीआईएल पर जारी किया नोटिस

LiveLaw News Network

2 Jan 2020 4:30 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात रियल एस्टेट अपीली ट्रिब्यूनल के कोरम को लेकर दायर पीआईएल पर जारी किया नोटिस

    गुजरात रियल एस्टेट अपीली अथॉरिटी के कोरम को दी गई चुनौती पर गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य का पक्ष जानने के लिए उसको नोटिस जारी किया है। इस अथॉरिटी में सिर्फ़ एक ही न्यायिक सदस्य है और कोई तकनीकी या प्रशासनिक सदस्य नहीं है।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और एजे शास्त्री ने राज्य सरकार और गुजरात रियल एस्टेट अपीली अथॉरिटी को एक पीआईएल पर नोटिस जारी किया है जिसमें कहा गया है कि गुजरात रियल इस्टेट अपीली ट्रिब्यूनल की न्यायिक समीक्षा की मांग की गई है।

    यह पीआईएल निपुण प्रवीण सिंघवी ने दायर किया है जो पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। उन्होंने ट्रिब्यूनल की स्थिति को 'न्याय का त्रिब्यूनलाइज़ेशन एवं ब्यूरोक्रेटाईजेशन'बताया।

    पीआईएल में कहा गया है :

    "गुजरात रीयल इस्टेट अपीली ट्रिब्यूनल में सिर्फ़ एक ही न्यायिक सदस्य है और इसमें किसी भी प्रशासनिक या तकनीकी सदस्य की नियुक्ति नहीं की गई है और इसलिए सम्पूर्ण आदेश या कोई भी कार्यवाही निरर्थक हो जाएगी और इस वजह से क़ानूनी रुकावट पैदा करेगा और ऐसे हर आदेश को अदालत में तकनीकी आधार पर आलोचना होगी और इससे मुक़दमे की बाढ़ आ जाएगी।"

    सिंघवी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के हाल के एक निर्णय का इस मामले में संदर्भ दिया।यह मामला था 'मैन ग्लोबल लिमिटेड बनाम भारत प्रकाश जौकानी का जिसमें अदालत ने कहा कि एकमात्र सदस्य द्वारा दिया गया कोई भी निर्णय अधिकारक्षेत्र के बाहर का माना जाएगा।

    पीआईएल के लिए विशाल दवे और हिरल यू मेहता ने दलील पेश की। सिंघवी ने कहा, "गुजरात रीयल इस्टेट अपीली ट्रिब्यूनल के पास व्यापक अधिकार हैं ताकि वह रीयल एस्टेट जटिल मामलों का फ़ैसला कर सके। आज रियल एस्टेट किसी भी संगठन और उपभोक्ता के लिए एक बहुत ही मूल्यवान व्यावसायिक ऐसेट है और उनके अधिकारों का प्रभावी संरक्षण संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत आता है…इन परिस्थितियों में एक ऐसी संस्था जिसमें तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है उसे रियल एस्टेट की सुरक्षा के बारे में निर्णय लेने का कार्य नहीं सौंपा जा सकता है।"

    पीआईएल में ट्रिब्यूनल को वित्तीय संसाधनों की कमी की भी बात कही गई है क्योंकि खाद्य सुरक्षा अपीली ट्रिब्यूनल के प्रिज़ाइडिंग ऑफ़िसर और स्टाफ़ को गुजरात रीयल एस्टेट अपीली ट्रिब्यूनल का भी अतिरिक्त कार्य सौंपा गया है जबकि इसके लिए उन्हें किसी भी तरह का अतिरिक्त भत्ता या अतिरिक्त स्टाफ़ नहीं दिया गया है।

    पीआईएल में कहा गया है कि गुजरात रेरा अथॉरिटी में 6200 से अधिक परियोजनाओं को पंजीकृत किया गया है और इनका संभावित निवेश ₹1.85 लाख करोड़ है। इसके तहत कुल शिकायत पिछली रिपोर्ट के अनुसार 1768 रही है जिसमें से 1302 का निपटारा हो गया है पर 466 अभी भी लंबित हैं।

    सिंघवी ने आग्रह किया कि गुजरात रियल एस्टेट अपीली ट्रिब्यूनल का के कामकाज को गुजरात सरकार के क़ानून और न्याय मंत्रालय के अधीन लाया जाए न कि इसे शहरी आवास विभाग के अधीन रहने दिया जाए। इस बारे में एनसीएलटी और स्विस रिबन मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी हवाला दिया गया जिसमें कहा गया है कि ट्रिब्यूनल को स्पॉन्सर करने वाला मंत्रालय ट्रिब्यूनल को सहयोग देने के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो सकता।



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